अभौतिक खाता

समाज-वैज्ञानिकों में एक सामान्य सहमति है कि संस्कृति में मनुष्यों द्वारा प्राप्त सभी अभौतिक खाता आन्तरिक और बाह्य व्यवहारों के तरीके समाहित हैं। ये चिह्नों द्वारा भी स्थानान्तरित किए जा सकते हैं, जिनमें मानवसमूहों की विशिष्ट उपलब्धियाँ भी समाहित हैं। इन्हें शिल्पकलाकृतियों द्वारा मूर्त रूप प्रदान किया जाता है। वास्तुतः, संस्कृति का मूल केन्द्रबिन्दु उन सूक्ष्म विचारों अभौतिक खाता अभौतिक खाता में निहित है जो एक समूह में ऐतिहासिक रूप से उनसे सम्बद्ध मूल्यों सहित विवेचित होते रहे हैं।
संस्कृति का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं विशेषता | Culture - Meaning, Definition, Types and Characteristics
संस्कृति भाब्द का प्रयोग हम दिन-प्रतिदिन के जीवन में (अक्सर) निरन्तर करते रहते हैं। साथ ही संस्कृति शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न अथों में भी करते हैं। उदाहरण के तौर पर हमारी संस्कृति में यह नहीं होता तथा पश्चिमी संस्कृति में इसकी स्वीकृति है। समाजशास्त्र विज्ञान के रूप में किसी भी अवधारणा का स्पष्ट अर्थ होता है जो कि वैज्ञानिक बोध को दर्शाता है। अतः " संस्कृति का अर्थ समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में सीखा हुआ व्यवहार होता है। अर्थात कोई भी व्यक्ति बचपन से अब तक जो कुछ भी सीखता है , उदाहरण के तौरे पर खाने का तरीका बात करने का तरीका भाषा का ज्ञान , लिखना-पढना तथा अन्य योग्यताएँ , यह संस्कृति है।
प्रसिद्ध मानवशास्त्री एडवर्ड बनार्ट टायलर ( 1832 1917) के द्वारा सन 1871 में प्रकाशित पुस्तक Primitive Culture में संस्कृति के संबंध में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है। टायलर मुख्य रूप से संस्कृति की अपनी परिभाषा के लिए जाने जाते हैं , इनके अनुसार , संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान विश्वास , कला आचार , कानून , प्रथा और अन्य सभी क्षमताओं तथा आदतों का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज के नाते प्राप्त कराता है। "
संस्कृति की विशेषताएं
● संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है। इसे व्यक्ति अपने पूर्वजों के वंशानुक्रम के माध्यम से नहीं प्राप्त करता , बल्कि समाज में समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा सीखता है। यह सीखना जीवन पयन्त अर्थात जन्म से मृत्य तक अनवरत चलता रहता है। संस्कृति के अंतर्गत वे आदतें और व्यवहार के तरीके आते हैं , जिन्हें सामान्य रूप से समाज के सभी सदस्यों द्वारा सीखा जाता है।
संस्कृति सामाजिक होती है। संस्कृति में सामाजिकता का गुण पाया जाता है। संस्कृति के अन्तर्गत पूरे समाज एवं सामाजिक सम्बन्धों का प्रतिनिधित्व होता है । कोई भी व्यवहार जब तक समाज के अधिकतर व्यक्तियों द्वारा नहीं सीखा जाता है तब तक वह संस्कृति नहीं कहलाया जा सकता ।
संस्कृति हस्तान्तरित होती है अभौतिक खाता संस्कृति के इसी गुण के कारण ही संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती है तो उसमें पीढ़ो-दर-पीढ़ी के अनुभव एवं सूझ जुड़ते जाते हैं। इससे संस्कृति में थोड़ा-बहुत परिवर्तन एवं परिमार्जन होता रहता है। संस्कृति के इसी गुण के कारण मानव अपने पिछले ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर आगे नई-नई चीजों का अविष्कार करता है।
संस्कृति के प्रकार
ऑगर्बन एवं निमकॉफ ने संस्कृति के दो प्रकारों की चर्चा की है- भौतिक संस्कृति एवं अभौतिक संस्कृति
1. भौतिक संस्कृति- भौतिक संस्कृति के अर्न्तगत उन सभी भौतिक एवं मूर्त वस्तुओं का समावे " होता है जिनका निर्माण मनुष्य के लिए अभौतिक खाता किया है , तथा जिन्हें हम देख एवं छू सकते हैं। प्रो. बीयरस्टीड ने भौतिक संस्कृति के समस्त तत्वों को मुख्य 13 वर्गों में विभाजित करके इसे और स्पष्ट करने का प्रयास किया है-
8 कलात्मक वस्तुएँ
2. अभौतिक संस्कृति अभौतिक संस्कृति का तात्पय संस्कृति के उस पक्ष में होता है , जिसका कोई मूर्त रूप नहीं होता , बल्कि विचारों एवं विश्वासों कि माध्यम से मानव व्यवहार को नियन्त्रित नियमित एवं प्रभावी करता है । अभौतिक संस्कृति समाजीकरण एवं सीखने की प्रक्रिया द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी अभौतिक खाता में हस्तान्तरित होती रहती है। प्रो. बीयरस्टीड ने विचारों के कुछ समूह प्रस्तुत किय हैं-
चित्त : ‘मन का सबसे भीतरी हिस्सा’, यहां जानें ये किससे जुड़ता है
मन का अगला आयाम चित्त कहलाता है। चित्त का मतलब हुआ विशुद्ध प्रज्ञा व चेतना, जो स्मृतियों से पूरी तरह से बेदाग हो। यहां कोई स्मृति नहीं होती है। हर तरह की बातें कही गई हैं, ‘ईश्वर बड़ा दयालु है, ईश्वर प्रेम है, ईश्वर यह है, ईश्वर वह है।’
मान लीजिए कि किसी ने भी ये सारी बातें आपसे न कहीं होतीं और आप बिना कुछ सुने या माने बस अपने आसपास की सृष्टि को ध्यान से देखते कि कैसे एक फूल खिलता है, कैसे एक पत्ती निकलती है, कैसे एक चींटी चलती है। अगर आप इन सारी चीजें पर पूरा ध्यान देते तो इस नतीजे पर आपका पहुंचना तो तय था कि इस सृष्टि का स्रोत जो भी है, उसमें अद्भुत इन्टेलिजेन्स है, वह प्रज्ञावान है। सृष्टि की हर चीज में एक जबरदस्त इन्टेलिजेन्स है, जो हमारे काफी तेज़ दिमाग से बहुत परे है।
संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा |मानव संस्कृति का निर्माण |Meaning and definitions of culture in Hindi
- संस्कृति शब्द का प्रयोग हम दिन-प्रतिदिन के जीवन में (अक्सर ) निरन्तर करते रहते हैं। साथ ही संस्कृति शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में भी करते हैं। उदाहरण के तौर पर हमारी संस्कृति में यह नहीं होता तथा पश्चिमी संस्कृति में इसकी स्वीकृति है। समाजशास्त्र विज्ञान के रूप में किसी भी अवधारणा का स्पष्ट अर्थ होता है जो कि वैज्ञानिक बोध को दर्शाता है।
- अतः "संस्कृति" का अर्थ समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में सीखा हुआ व्यवहार होता है। अर्थात् कोई भी व्यक्ति बचपन से अब तक जो कुछ भी सीखता है, उदाहरण के तौरे पर खाने का तरीका , बात करने का तरीका , भाषा का ज्ञान लिखना पढना तथा अन्य योग्यताएँ , यह संस्कृति है।
मनुष्य का कौन सा व्यवहार संस्कृति है ?
मनुष्य के व्यवहार के कई पक्ष हैं
( अ) जैविक व्यवहार ( Biological behaviour) जैसे- भूख , नींद , चलना , दौड़ना ।
( ब) मनोवैज्ञानिक व्यवहार ( Psychological behaviour ) जैसे- सोचना , डरना , हँसना आदि
( स) सामाजिक व्यवहार ( Social behaviour ) जैसे- नमस्कार करना , पढ़ना-लिखना , बातें करना आदि ।
क्या आप जानते हैं कि मानव अभौतिक खाता संस्कृति का निर्माण कैसे कर पाया ?
लेस्ली ए व्हाईट ( Leslie A White) के अनुसार मानव संस्कृति का निर्माण
लेस्ली ए व्हाईट ( Leslie A White) ने मानव में पाँच विशिष्ट क्षमताओं का उल्लेख किया हैं , जिसे मनुष्य ने प्रकृति से पाया है और जिसके फलस्वरूप वह संस्कृति का निर्माण कर सका है :
मानव में पाँच विशिष्ट क्षमता जिससे मानव अभौतिक खाता संस्कृति का निर्माण हुआ
पहली विशेषता है-
- मानव के खड़े रहने की क्षमता , इससे व्यक्ति दोनों हाथों द्वारा उपयोगी कार्य करता है।
- मनुष्य के हाथों की बनावट है , अभौतिक खाता जिसके फलस्वरूप वह अपने हाथों का स्वतन्त्रतापूर्वक किसी भी दिशा में घुमा पाता है और उसके द्वारा तरह-तरह की वस्तुओं का निर्माण करता है ।
- मानव की तीक्ष्ण दृष्टि , जिसके कारण वह प्रकृति तथा घटनाओं का निरीक्षण अवलोकन कर पाता है और तरह-तरह की खोज एवं अविष्कार करता है।
संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा
प्रसिद्ध मानवशास्त्री एडवर्ड बनार्ट टायलर ( 1832-1917 ) के द्वारा सन् 1871 में प्रकाशित पुस्तक Primitive Culture में संस्कृति के संबंध में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है।
टायलर द्वारा दी गयी संस्कृति की परिभाषा
टायलर मुख्य अभौतिक खाता रूप से संस्कृति की अपनी परिभाषा के लिए जाने जाते हैं , इनके अनुसार ,
संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान , विश्वास , कला आचार , कानून , प्रथा और अन्य अभौतिक खाता सभी क्षमताओं तथा आदतों का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज के नाते प्राप्त कराता है। "
- टायलर ने संस्कृति का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है। इनके अनुसार सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति अपने पास जो कुछ भी रखता है तथा सीखता है वह सब संस्कृति है। इस परिभाषा में सिर्फ अभौतिक तत्वों को ही सम्मिलित किया गया है।
रिटायरमेंट के बाद सोने में निवेश करने के तरीके
यदि आप हाल ही में सेवा-निवृत्त हुए हैं और आपको आय का एक स्रोत नहीं रहने की चिंता सता रही है, आप सोने को निवेश का एक विकल्प मान सकते हैं, जिससे आपके जीवन का यह स्वर्णिम दौर वित्तीय रूप से सुरक्षित हो जाएगा।
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स्वर्ण मुद्रीकरण योजना
सम्भव है आपके पास कुछ सोना बेकार रखा हो, जिसका आप प्रयोग नहीं कर रहे हों और जो पिछले कई वर्षों से त्यौहारों, पारिवारिक उत्सवों, उपहारों और क्रय के तौर पर इकट्ठा हुआ हो। आइए जानिए उसका समुचित लाभ कैसे उठाया जाए।
स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (जीएमएस) की शुरुआत 2015 में हुई थी ताकि आप अपने भौतिक सोने – छड़ , सिक्के या गहने - को एक स्वर्ण बचत खाते (गोल्ड सेविंग्स अकाउंट) में जमा करके उसे आय की एक सम्पत्ति के रूप अभौतिक खाता में बदल सकें।
भारतीय लोक संस्कृति Indian Folk Culture
भारतीय लोक संस्कृति Bhartiya Lok Sanskriti बहुआयामी है जिसमें भारत का महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिन्धु घाटी की सभ्यता के दौरान बनी और आगे चलकर वैदिक युग में विकसित हुई, बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरुआत और उसके अस्तगमन के साथ फली-फूली अपनी खुद की प्राचीन विरासत शामिल हैं। पिछली पाँच सहस्राब्दियों से अधिक समय से भारत के रीति-रिवाज़, भाषाएँ, प्रथाएँ और परम्पराएँ इसके एक-दूसरे से परस्पर सम्बंधों में महान विविधताओं का एक अद्वितीय उदाहरण देती हैं।