मुद्रा पूर्ण

विश्व के मुद्रा प्रतीकों की खोज (प्रतीकों तक स्क्रॉल करने के लिए यहां क्लिक करें)
जैसा कि आप शायद जानते हैं, लगभग हर देश की अपनी मुद्रा होती है, और इसके साथ एक निर्दिष्ट “शोर्टकोड“ होता है जिसका उपयोग खुले बाजार (जैसे मुद्रा विनिमय) पर किया जाता है। इस संक्षिप्त कोड का उपयोग अक्सर तब भी किया जाता है जब सामान का मूल्य निर्धारण ऑन और ऑफलाइन दोनों तरह से किया जाता है।
हालांकि इनमें से कुछ निश्चित रूप से आपके परिचित हैं (जैसे कि यूएसडी या जीबीपी), अन्य संभवतः आपके रडार से बाहर हो गए हैं। चाहे आप काम या खेलने के लिए किसी अन्य देश की यात्रा कर रहे हों, आप अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों के साथ एक ऑनलाइन साइट का प्रबंधन या संचालन करते हैं, या आप अक्सर अंतरराष्ट्रीय वेबसाइटों से आइटम या सेवाएं खरीदते हैं, हमने आपको कवर किया है।
यह मार्गदर्शिका आपको दुनिया के मुद्रा प्रतीकों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगी कि उनका उपयोग कैसे किया जाता है, और एक मुद्रा के दूसरी मुद्रा में स्थानांतरण या रूपांतरण में क्या शामिल है।
अपनी पसंद का पसंदीदा पेय लें, वापस किक करें, और चलो सही में गोता लगाएँ…
दुनिया के मुद्रा संकेत और प्रतीक
मुद्रा प्रतीकों को प्रासंगिक मुद्रा प्रकार को ऑन और ऑफलाइन प्रदर्शित करने के लिए एक त्वरित और आसान शॉर्टहैंड विधि के रूप में विकसित किया गया था। ये प्रतीक पूर्ण मुद्राओं के नाम को लिखने की आवश्यकता को समाप्त करते हैं, और इसके बजाय आपको पूर्ण नामकरण को एक संक्षिप्त और/या अद्वितीय प्रतीक के साथ बदलने की अनुमति देते हैं।
निम्नलिखित उदाहरण में, आप दो अलग-अलग मुद्रा चिह्न/प्रतीक देखेंगे: “USD“ और “$“।
एक सौ अमेरिकी डॉलर के रूप में व्यक्त किया जा सकता है:
- एक सौ डॉलर
- एक सौ अमरीकी डालर
- $100
आइए एक और नजर डालते हैं। नीचे दिए गए उदाहरण में, हम ब्रिटिश पाउंड के लिए मुद्रा चिह्न और प्रतीक की जांच करेंगे।
ब्रिटिश पाउंड (ब्रिटिश स्टर्लिंग या स्टर्लिंग के रूप में भी जाना जाता है):
मुद्रा चिन्ह क्यों महत्वपूर्ण हैं?
मुद्रा संकेत और प्रतीक विभिन्न मुद्राओं को शीघ्रता से और आसानी से पहचानने के लिए एक मानकीकृत और सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त तरीका प्रदान करते हैं। प्रत्येक मुद्रा के बीच “विनिमय दर“ के कारण, यह जानना महत्वपूर्ण है कि आप किस प्रकार की मुद्रा में भुगतान कर रहे हैं।
USD बनाम GBP के उपरोक्त उदाहरण को जारी रखते हुए, जब तक यह मार्गदर्शिका लिखी गई थी, $1 केवल 0.80 स्टर्लिंग के बराबर था। यदि आप यूएसए से हैं, यूएसडी लेकर, और एक कैफे में गए हैं, तो यह नोट करना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। इसी तरह, ऑनलाइन खरीदारी करते समय आपको ऐसी साइटें मिल सकती हैं जो विभिन्न मुद्राओं में भुगतान स्वीकार करती हैं और यह जानकर कि आप किसके साथ काम कर रहे हैं, भुगतान की गणना करना और कीमतों की तुलना करना बहुत आसान हो मुद्रा पूर्ण जाएगा।
क्या मुझे न्यूमेरिक वैल्यू से पहले या बाद में करेंसी सिंबल लिखना चाहिए?
यह एक सामान्य प्रश्न है जिसे हम देखते हैं, और अच्छे कारण के साथ। उत्तर यह है कि यह निर्भर करता है। स्थानीय रीति-रिवाजों के साथ-साथ मुद्रा ही आम तौर पर तय करती है कि उचित अभ्यास क्या है।
उदाहरण के लिए, कुछ यूरोपीय मुद्राओं को सांख्यिक मान के अंत में प्रतीक के साथ ठीक से व्यक्त किया जाता है। इसका एक अच्छा उदाहरण जर्मनी और फ्रांस (यानी 100€) हैं।
अधिकांश अंग्रेज़ी-भाषी देशों में, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका या कनाडा, प्रतीक और/या संक्षिप्त नाम आम तौर पर संख्यात्मक मान (यानी $75 USD या CAD 125.00) के सामने होता है।
अन्य मुद्राओं के साथ, आप उस मुद्रा प्रतीक का भी सामना कर सकते हैं जहां “दशमलव“ सामान्य रूप से आपकी मूल मुद्रा (यानी 50$00) में होगा।
ठीक है, लेकिन मैं माइक्रोसॉफ्ट वर्ड में करेंसी सिंबल कैसे टाइप करूं?
आप पाते हैं कि आपको अपने वर्ड डॉक्स में अक्सर विभिन्न मुद्रा प्रतीकों को सम्मिलित करने की आवश्यकता होती है? अगर ऐसा है तो आपने शायद एक निराशा का अनुभव किया है जिसे हम में से कई लोगों ने भी सहा है।
अच्छी खबर यह है कि एक बार जब आप इसे करना जानते हैं तो वर्ड में मुद्रा प्रतीकों को सम्मिलित करना इतना मुश्किल नहीं है।
वर्ड में करेंसी सिंबल कैसे डालें
विकल्प एक
Word में विभिन्न मुद्रा प्रतीकों को सम्मिलित करने का पहला (और संभावित रूप से सबसे कुशल) तरीका एक मुद्रा शॉर्टकट शीट का उपयोग करना है जैसे: https://www.webnots.com/alt-code-shortcuts-for-currency-symbols/
विकल्प दो (चरण दर चरण)
- वह दस्तावेज़ खोलें जिस पर आप काम करने में रुचि रखते हैं
- दस्तावेज़ के शीर्ष पर मुख्य मेनू में, “सम्मिलित करें“ पर क्लिक करें
- इस नए मेनू के सबसे दाईं ओर, आपको “प्रतीक“ दिखाई देगा
- “प्रतीक“ पर क्लिक करने से आपको कुछ सामान्य मुद्रा चिह्न दिखाई देंगे। यदि आपका वांछित प्रतीक प्रदर्शित होता है, तो उस पर क्लिक करने से वह दस्तावेज़ में सम्मिलित हो जाएगा।
- यदि आपका प्रतीक प्रदर्शित नहीं होता है, तो “प्रतीक मेनू“ के नीचे “अधिक प्रतीकों“ पर क्लिक करें।
- ऐसा करने से एक बड़ा डायलॉग बॉक्स सामने आएगा जिसमें से आपको अन्य प्रतीकों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ प्रस्तुत किया जाएगा
- जिसे आप चाहते हैं उसे ढूंढें, उस पर क्लिक करें, और आप दौड़ के लिए तैयार हैं
प्रो प्रकार: जब आप सही प्रतीक चुनते हैं, तो Word आपको सूचित करेगा कि यह संबंधित कीबोर्ड शॉर्टकट क्या है ताकि आप ध्यान दें और भविष्य में इस प्रक्रिया को तेज कर सकें।
Microsoft Excel में मुद्रा चिह्न जोड़ने के बारे में क्या?
यदि आप संख्याओं और मुद्रा के साथ काम कर रहे हैं, तो संभावना है कि आपको इन मानों को एक एक्सेल स्प्रेडशीट में इनपुट करने की आवश्यकता हो सकती है। लेकिन Word के समान, यह पता लगाना कि यह कहाँ करना है, हमेशा बहुत स्पष्ट नहीं होता है।
एक्सेल के साथ, आपके पास दो विकल्प हैं।
विकल्प एक
उपरोक्त वर्ड के निर्देशों के समान चरणों का उपयोग करें, लेकिन इस बार एक्सेल में।
विकल्प दो
एक्सेल में “सेल“ को फॉर्मेट करें। ऐसा करने से, आपके द्वारा उस सेल में टाइप किया गया कोई भी नंबर मान स्वचालित रूप से चयनित उचित मुद्रा प्रतीक के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
सेल को प्रारूपित करने के चरण Step
- वह एक्सेल शीट खोलें जिस पर आप काम कर रहे हैं Open
- उस सेल पर क्लिक करें जिसे आप फॉर्मेट करना चाहते हैं
- दाएँ क्लिक करें
- दिखाई देने वाले मेनू में, “प्रारूप कक्ष“ चुनें
- संवाद बॉक्स ड्रॉप-डाउन से, “मुद्रा“ चुनें
- वांछित मुद्रा प्रतीक का पता लगाएँ
- ओके पर क्लिक करें“
इतना ही! वहां से बस कोई भी संख्यात्मक मान टाइप करें और रिटर्न हिट करें। ऐसा करने से वह नंबर उचित मुद्रा प्रारूप (प्रतीक और सभी) में बदल जाएगा।
मज़बूत सरकार का कमज़ोर रुपया, आख़िर क्यों?
नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो केंद्र की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार पर अर्थव्यवस्था और नीतियों को लेकर तीखे हमले बोलते थे.
मोदी कहते थे कि इस सरकार में अनिर्णय की स्थिति है. वो भारतीय मुद्रा रुपए में डॉलर की तुलना में गिरावट को भी सरकार की कमज़ोरी बताते थे. अब जब केंद्र में मोदी की मजबूत सरकार है तो रुपया कमज़ोर क्यों है?
इस बात का ज़िक्र अक्सर होता है कि 1947 में जब देश आज़ाद हुआ तो रुपए और डॉलर की क़ीमत में कोई फ़र्क़ नहीं था. आज़ादी के बाद से अमरीकी डॉलर की तुलना में रुपए में गिरावट आती रही और आज की तारीख़ में एक डॉलर की क़ीमत क़रीब 73 रुपए के बराबर हो गई है.
भारतीय राजनीति में रुपए के गिरने को अब सरकार की प्रतिष्ठा से जोड़ा जाने लगा है. अगस्त 2013 में रुपया डॉलर की तुलना में हिचकोले खा रहा था तो तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने कहा था, ''रुपए ने अपनी क़ीमत खोई और प्रधानमंत्री ने अपनी प्रतिष्ठा.''
तब मई 2013 से सितंबर तक में रुपए में 17 फ़ीसदी की गिरावट आई थी.
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मोदी ने जुलाई 2013 में रुपए में गिरावट पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर तंज कसते हुए कहा था कि गिरता रुपया मनमोहन सिंह की उम्र से होड़ कर रहा है. आज जब 68 साल के मोदी पीएम हैं तो रुपया उनकी उम्र से भी आगे निकल चुका है.
मनमोहन सिंह की सरकार गठबंधन की सरकार थी मुद्रा पूर्ण और कहा जाता है कि गठबंधन की सरकार में कड़े फ़ैसले लेना आसान नहीं होता, इसलिए अनिर्णय की स्थिति रहती है.
अब जब केंद्र में मोदी की मज़बूत सरकार है तो रुपया क्यों कमज़ोर हो रहा है? किसी देश की मुद्रा का कमज़ोर या मज़बूत होना वहां की सरकार से कितना नियंत्रित होता है?
मोदी सरकार भी लाचार
2018 में अब तक रुपए में 15 फ़ीसदी की गिरावट आ चुकी है. बिज़नेस इंडिया मैगज़ीन के अनुसार रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने रुपए की क़ीमत को काबू में करने के लिए इस साल 25 अरब डॉलर बाज़ार में डाला फिर भी कोई असर नहीं हुआ.
इस मैगज़ीन का कहना है कि अब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी 400 अरब डॉलर हो गया है और इससे नीचे जाता है तो एक किस्म का मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ेगा.
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दो देश,दो शख़्सियतें और ढेर सारी बातें. आज़ादी और बँटवारे के 75 साल. सीमा पार संवाद.
वैश्विक अर्थव्यवस्था में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत केवल घरेलू कारणों से ही प्रभावित नहीं होती है. अगर भारतीय मुद्रा रुपया कमज़ोर हो रहा है तो इसका कारण वैश्विक भी है.
एक सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की बढ़ती क़ीमतें. अमरीका ने ईरान और वेनेज़ुएला के तेल निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया है जिससे तेल मुद्रा पूर्ण की क़ीमत और बढ़ रही है.
2014 के बाद अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की क़ीमत मंगलवार को सबसे ऊंचे स्तर 80 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई.
भारत अपनी ज़रूरत का 80 फ़ीसदी तेल आयात करता है. आरबीआई के अनुसार 2017-18 में भारत ने 87.7 अरब डॉलर तेल आयात पर खर्च किया. ज़ाहिर है तेल की क़ीमत बढ़ती है तो भारत के तेल का आयात बिल भी बढ़ता है और इसका सीधा असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ता है.
मतलब डॉलर की मांग बढ़ती है तो घरेलू मुद्रा का कमज़ोर होना लाजिमी है. कमज़ोर रुपया और अंतरराष्ट्रीय मार्केट में तेल की बढ़ती क़ीमत का असर ये होता है कि देश के भीतर पेट्रोल और डीज़ल महंगे हो जाते हैं. भारत के कई शहरों में अभी पेट्रोल की क़ीमत 90 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गई है.
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मजबूत होता डॉलर या कमज़ोर होता रुपया?
रुपए कमज़ोर होने पर जब सरकार निशाने पर आई तो वित्त मंत्री अरुण जेटली के उस बयान की ख़ूब खिल्ली उड़ाई गई, जिसमें उन्होंने कहा था कि रुपया कमज़ोर नहीं हुआ है बल्कि डॉलर मज़बूत हुआ है.
कई आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि अमरीकी अर्थव्यवस्था में तेज़ी आई है इसलिए डॉलर मज़बूत हुआ है. यूएस फेडरल रिज़र्व ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है ताकि अमरीका में निवेश को आकर्षक बनाया जा सके.
इसका नतीजा यह हो रहा है कि भारत जैसे उभरते बाज़ार से लोग पैसे निकाल रहे हैं. अमरीका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर का असर भी विकासशील देशों की मुद्राओं पर पड़ रहा है. केवल भारत ही नहीं बल्कि तुर्की और अर्जेंटीना की मुद्रा में भी गिरावट थम नहीं रही है.
भारत का चालू खात घाटा भी लगातार बढ़ा रहा है. मतलब भारत निर्यात से ज़्यादा आयात कर रहा है. भारतीय बाज़ार से एफ़पीआई निकालने का सिलसिला भी थम नहीं रहा है.
एफ़पीआई का मतलब फॉरन पोर्टफ़ोलियो इन्वेस्टर्स से है. मतलब विदेशी निवेशक अपना पैसा निकाल रहे हैं. नेशनल सिक्यॉरिटीज डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार सिंतबर में 15,366 करोड़ की एफ़पीआई निकाली गई और 2018 में कुल 55,828 करोड़ रुपए की एफ़पीआई निकाल ली गई.
कमज़ोर होते रुपए का असर आम आदमी पर भी पड़ता है. पेट्रोल और डीज़ल महंगे हो जाते हैं. आयातित सामान महंगे हो जाते हैं. विदेशों से आयात किए जाने वाले कच्चे माल महंगे हो जाते हैं. हालांकि कमज़ोर मुद्रा के बारे में कहा जाता है कि इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है. ऐसे में रुपया का कमज़ोर होना ठीक है या मज़बूत?
रुपए की सेहत कैसी होगी यह विदेशी मुद्रा की आपूर्ति और मांग पर भी निर्भर करता है. मिसाल के तौर पर अगर कोई भारतीय कंपनी एक करोड़ डॉलर की कंप्यूटर सॉफ्टवेयर अमरीका से ख़रीदती है तो उसे डॉलर में ही भुगतान करना होगा.
इसके लिए आयातक को वर्तमान दर के आधार पर 72.8 करोड़ रुपए देकर एक करोड़ डॉलर लेना होगा. इस साल जनवरी में एक करोड़ डॉलर के लिए उस कंपनी को सिर्फ़ 63.50 करोड़ रुपए ही देने पड़ते. मतलब कमज़ोर रुपए के कारण क़रीब नौ करोड़ रुपए ज़्यादा देने पड़े.
देश में विदेशी मुद्रा यानी डॉलर की मांग बढ़ी है. ऐसा इसलिए है कि वस्तुओं और सेवाओं के आयात, विदेशी यात्रा, विदेश में निवेश, क़र्ज़ों का भुगतान और विदेशों में इलाज कराने वालों की तादाद बढ़ी है. इसकी भारपाई निर्यात से की जाती है, लेकिन भारत का निर्यात कम हुआ है.
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अभी मुश्किल यह है कि व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है. आरबीआई के अनुसार जून 2018 में ख़त्म हुई तिमाही में व्यापार घाटा बढ़कर 45.7 अरब डॉलर हो गया जो पिछले साल 41.9 अरब डॉलर था.
विदेश जाने वाले भारतीयों की तादाद बढ़ी
विदेशों में जाने वाले भारतीयों की संख्या भी बढ़ी है. अगर एक स्टू़डेंट अमरीका में एडमिशन लेता है तो हज़ारों डॉलर ख़र्च करने पड़ते हैं और ज़ाहिर है रुपए को देकर ही ये डॉलर मिलते हैं.
मतलब डॉलर की मांग बढ़ेगी तो रुपए कमज़ोर होगा. यानी डॉलर महंगा होगा तो रुपए ज़्यादा देने होंगे. आरबीआई के अनुसार 2017-18 में विदेशों में पढ़ने जाने वाले भारतीयों ने 2.021 अरब डॉलर ख़र्च किए.
आरबीआई के अनुसार 2017-18 में विदेशों में घूमने पर भारतीयों ने चार अरब डॉलर ख़र्च किए. अभी रुपया कमज़ोर है इसलिए विदेशों का सैर और महंगा हो गया है. सरकार का कहना है कि विदेशों से ग़ैरज़रूरी आयात को कम करना चाहिए ताकि डॉलर की मांग कम की जा सके.
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अतीत के झटके
1966 में इंदिरा गांधी की सरकार ने डॉलर की तुलना में रुपए में 4.76 से 7.50 तक का अवमूल्यन किया था. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने कई एजेंसियों के दबाव में ऐसा किया था ताकि रुपए और डॉलर का रेट स्थिर रहे. यह अवमूल्यन 57.5 फ़ीसदी का था. सूखे और पाकिस्तान-चीन से युद्ध के बाद उपजे संकट के कारण यह इंदिरा गांधी ने यह फ़ैसला किया था.
1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने डॉलर की तुलना में रुपए का 18.5 फ़ीसदी से 25.95 फ़ीसदी तक अवमूल्यन किया था. ऐसा विदेशी मुद्रा के संकट से उबरने के लिए किया गया था. इसके बाद रुपए में गिरावट किसी भी सरकार में नहीं थमी. वो चाहे अटल बिहारी वाजपेयी पीएम रहे हों या अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह. और अब मज़बूत मोदी सरकार में भी यह सिलसिला थम नहीं रहा.
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सोच को पूर्ण करती है- सहयोग (कुबेर) मुद्रा
यह मुद्रा आत्मविश्वास पैदा करती है। यह मुद्रा लगाने के बाद सांस भरने से साईनस समस्या में बहुत लाभ मिलता है। बार-बार गहरे लम्बे श्वास लेने से साईनस में जमा श्लेष्मा दूर होता है। बन्द नाक भी खुल जाती है और साईनूसाईटिस के कारण होने वाले सिर दर्द, सिर का भारीपन भी समाप्त होता है।
इस मुद्रा के करने से तनाव दूर होता है। मुद्रा लगाने के साथ मन में यह सोचें कि मुझे क्या चाहिए? मेरे लिये क्या अच्छा है? ऐसे सकारात्मक विचार लाएं। जैसा आप सोचेंगे वैसा होना शुरु हो जाएगा। अग्नि, वायु और आकाश तत्त्वों के मिलने से तथा मुद्रा पूर्ण पृथ्वी तत्त्व और जल तत्त्वों को दबाने से आत्म विश्वास बढ़ता है और तनाव में कमी आती है।
अंतर्यात्रा और गहरे जाने के लिए, अपने आप में पूर्ण विज्ञान है मुद्राएं। इसमें हमारा कुछ लगता भी नहीं और मिलता बहुत कुछ है। इस मुद्रा से आध्यात्मिक यात्रा सहज होती है। प्यारे-प्यारे अनुभव होने लगते हैं।
कैसे करें?
पहली दोनों उंगलियों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाएं। बाकी दोनों उंगलियों को सीधा न रखते हुए उन्हें मोड़कर हथेली से लगा लें। बार-बार गहरी लंबी श्वास लें। आयुर्वेद के अनुसार जल और पृथ्वी तत्त्वों के मिलने से ही कफ बनता है। अतः जब पृथ्वी और जल तत्त्वों को कम कर देते हैं, तो कफ के दोष दूर होते हैं।
लगातार सातवीं बार गिरावट के साथ सामने आए विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार के आंकड़े
राज एक्सप्रेस। देश में जितना भी विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार जमा होता है, उसके आंकड़े समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए जाते हैं। इन आंकड़ों में उतार-चढ़ाव होता रहता है, लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें लगातार गिरावट ही दर्ज की जा रही है। हालांकि, बीच में विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) में कुछ बढ़त दर्ज की गई थी। वहीं, एक बार फिर इसमें बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। उधर स्वर्ण भंडार में भी इस बार गिरावट दर्ज हुई है। इस बात का खुलासा RBI द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों से हुआ है। बता दें, यदि विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज की जाती है तो, कुल विदेशी विनिमय भंडार में भी मुद्रा पूर्ण बढ़त दर्ज होती है।
विदेशी मुद्रा भंडार के ताजा आंकड़े :
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 22 अप्रैल 2022 समाप्त सप्ताह में 3.271 अरब डॉलर घटकर 600.423 अरब डॉलर पर आ गिरा है। जबकि, इससे पहले 15 अप्रैल 2022 समाप्त सप्ताह में 31.1 करोड़ डॉलर घटकर 603.694 अरब डॉलर पर आ गिरा था। वहीं, उससे पहले भी 8 अप्रैल 2022 को समाप्त सप्ताह में इसमें 2.471 करोड़ डॉलर की गिरावट ही देखने मिली थी और महीने की शुरुआत में यानी 1 अप्रैल, 2022 को समाप्त सप्ताह में 11.173 अरब डॉलर घटकर 606.475 अरब डॉलर पा आ गिरा है। जबकि, 25 मार्च 2022 को समाप्त सप्ताह में 2.03 अरब डॉलर घटकर 617.648 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। बता दें, विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार सातवीं बार गिरावट दर्ज हुई है।
गोल्ड रिजर्व की वैल्यू :
बताते चलें, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत के गोल्ड रिजर्व की वैल्यू में भी पिछले कुछ समय से गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन अब समीक्षाधीन सप्ताह में गोल्ड रिजर्व की वैल्यू 3.77 करोड डॉलर घटकर42.768 अरब डॉलर पर जा पहुंची हैं। हालांकि, इससे पहले भी गोल्ड रिजर्व में गिरावट ही दर्ज की गई थी। रिजर्व बैंक (RBI) ने बताया कि, आलोच्य सप्ताह के दौरान IMF के पास मौजूद भारत के भंडार में मामूली वृद्धि हुई। बता दें, विदेशी मुद्रा संपत्तियों (FCA) में आई गिरावट के चलते विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है। आंकड़ों के अनुसार, शुक्रवार को समाप्त सप्ताह में FCA 2.835 अरब डॉलर घटकर 533.933 अरब डॉलर रह गया। RBI के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज होने की वजह से कुल विदेशी विनिमय भंडार में बढ़त हुई है और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का एक अहम भाग मानी जाती हैं।
आंकड़ों के अनुसार IMF :
रिजर्व बैंक (RBI) के साप्ताहिक आंकड़ों पर नजर डालें तो, विदेशीमुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती हैं। बता दें, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में बढ़कर होने की वजह से मुद्रा भंडार में बढ़त दर्ज की गई है। इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) में देश का मुद्रा भंडार 1.6 करोड़ डॉलर घटकर 5.086 अरब डॉलर पर पहुंच गया। जबकि, IMF में देश का विशेष आहरण अधिकार (SDR) 3.3 करोड़ डॉलर घटकर 18.662 अरब डॉलर पर आ पंहुचा है।
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार ?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। इसका उपयोग आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में भी किया जाता है। कई लोगों को मुद्रा पूर्ण विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का मतलब नहीं पता होगा तो, हम उन्हें बता दें, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी अच्छी बात होती है। इसमें करंसी के तौर पर ज्यादातर डॉलर होता है यानि डॉलर के आधार पर ही दुनियाभर में कारोबार किया जाता है। बता दें, इसमें IMF में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे :
विदेशी मुद्रा भंडार से एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति आसानी से की जा सकती है।
अच्छा विदेशी मुद्रा आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है।
यदि भारत के पास भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है तो, सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीदी का निर्णय ले सकती है।
विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभाव पूर्ण भूमिका होती है।
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