कैसे सफल लोग सोचते हैं और काम करते हैं

Long Story in Hindi With Moral – नैतिकता के साथ हिंदी में लंबी कहानी
Long Story in Hindi With Moral: कई लोग है, जिन्हें लंबी लंबी कहानियां (100+ Hindi Moral Stories) पढ़ना काफी पसंद है. इस लिए आज हम आपके लाए है Long Story in Hindi With Moral. यानि लंबी कहानियों के साथ साथ हम आपको Long Story in Hindi की नैतिक शिक्षा भी देंगे.
जिससे ये सभी Long Story in Hindi With Moral और भी मजेदार बन जाती है. इस लिए हमारे इस Long Story in Hindi With Moral पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़े.
सूरत : उद्यमियों में हठ और साहस हो तो ही ऊंचाइयों पर पहुंचा जा सकता है : परिमल शाह
चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित फिल्म आधारित प्रशिक्षण सत्र में फिल्म गुरु की सामग्री पर आधारित 'अनस्टॉपेबल' के बारे में उद्यमियों को जागरूक किया गया
सूरत सदर्न गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने शनिवार को फिल्म आधारित प्रशिक्षण सत्र का आयोजन किया। समृद्धि, नानपुरा, सूरत में 'अनस्टॉपेबल' पर एक प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया गया। जिसमें सूरत के ट्रेनर और जिनी कंसल्टेंसी के फाउंडर परिमल शाह फिल्म गुरु से उद्योगपति स्व. धीरूभाई अंबानी की जीवनी से आवश्यक सामग्री लेकर उद्यमियों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने उद्यमियों को तेज पर्यवेक्षक, निडर, आत्म विश्वास, आत्मसम्मान, बड़ा सपना बड़ा सोचो, तेजी से सोचो, तेजी से काम करो, कभी 'ना' मत कहो, स्मार्ट श्रोता बनो, स्मार्ट कम्युनिकेटर बनो और खुद को कभी सीमित मत करो जैसी महत्वपूर्ण चीजों के बारे में बताया।
कई फिल्में समाज को अच्छा संदेश देती हैं और उद्यमी भी प्रेरणा लेते हैं
चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष हिमांशु बोड़ावाला ने कहा कि कई फिल्में समाज को बहुत अच्छा संदेश देती हैं और उद्यमी भी उनसे प्रेरणा लेते हैं और व्यापार और उद्योग में कदम रखते हुए कारोबार में नई ऊंचाइयों को छूते हैं।
फिल्म गुरु में उद्यमियों के सीखने के लिए बहुत कुछ
परिमल शाह ने कहा कि धीरूभाई अंबानी पर आधारित फिल्म गुरु में उद्यमियों के सीखने के लिए बहुत कुछ है। पहले जब कोई बड़ा लक्ष्य हासिल करने की बात करता था तो लोग उसे कहते थे कि 'शेख चिल्ली न विदर न खरे' या 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने।' लेकिन इन कहावतों को बड़े सपने के पीछे रखकर उसे हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करना सार्थक होता है। दिया था धीरूभाई अंबानी का अवलोकन भारी था। अवलोकन करके उन्होंने स्थिति को समझा और उचित निर्णय लिया और व्यवसाय में आगे बढ़े।
अगर आपको खुद पर भरोसा नहीं है तो आप कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएंगे
उन्होंने आगे कहा कि एक उद्यमी के तौर पर आप बिजनेस शुरू करने के बारे में सोचते हैं और अगर आपको खुद पर भरोसा नहीं है तो आप कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। जैसा कि फिल्म गुरु में दिखाया गया है, जब धीरूभाई को प्रमोशन मिलता है, तो वे अपने लिए काम करने और आगे बढ़ने का फैसला करते हैं। जब आपको अपने आप पर विश्वास कैसे सफल लोग सोचते हैं और काम करते हैं हो और आप उस विश्वास को वास्तविकता बनाने की कोशिश करें तो केवल उन्हीं लोगों के आसपास रहें जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। मनोबल गिराने वाले व्यक्ति की संगति में रहने से आपका आत्मविश्वास भी खत्म हो जाएगा।
व्यापार में कठिनाइयाँ तो आती ही रहेंगी, समस्या का समाधान निकाले
बिजनेस में कुछ बड़ा करने की जिद्द होनी चाहिए। जुनून होना और फिर जुड़ाव होना जरूरी है। व्यवसाय में संलिप्तता होने पर ही व्यापारी निर्भय होता है। व्यापार में कठिनाइयाँ तो आती ही रहेंगी, लेकिन आपको पता होना चाहिए कि हर समस्या का समाधान कैसे निकाला जाए। इसके लिए उद्यमियों को निडर और कभी-कभी निर्भीक होने की आवश्यकता होती है। व्यवसाय में लिए गए निर्णयों के बारे कैसे सफल लोग सोचते हैं और काम करते हैं में भागीदारों और अन्य लोगों को समझाने की क्षमता विकसित करनी होगी। अंत में उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण बात के बारे में कहा, बिजनेस में सफल होने के लिए रिस्क लेने के लिए तैयार रहना होगा।
चेंबर के ग्रुप चेयरमैन मृणाल शुक्ल ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। चैंबर की सॉफ्ट स्किल डेवलपमेंट कमेटी के अध्यक्ष चिराग देसाई ने वक्ताओं का परिचय कराया और पूरे सत्र का संचालन किया। सदन के मानद कोषाध्यक्ष भावेश गढ़िया ने सभी के लिए धन्यवाद दिया और फिर सत्र समाप्त हुआ।
विशेष : घर के कामों तक सीमित कर दी गई हैं किशोरियां
घरेलू हिंसा न केवल भारत की समस्या है, बल्कि पूरा विश्व इस भयावह स्थिति से गुजर रहा हैं. दुनिया की सबसे गंभीर सामाजिक समस्याओं में घरेलू हिंसा भी शामिल है. शायद ही कोई देश इससे अछूता होगा। यह सभी समाजों, जातियों और वर्गों में आम है. डब्लूएचओ के रिपोर्ट के अनुसार विश्व की एक तिहाई महिलाएं किसी ना किसी प्रकार के घरेलू हिंसा की शिकार हैं. यह हिंसा केवल मारपीट ही नहीं है बल्कि इसमें मानसिक प्रताड़ना भी है. किसी को उसके अधिकार से वंचित करना भी हिंसा है. दुख की बात यह है कि कड़े कानूनों के बावजूद ये घटनाएं पूरे देश में फैली हुई हैं.
इसका शिकार केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि किशोरियां भी हैं. शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत सुविधाओं से वंचित करना भी उनके खिलाफ हिंसा है. ऐसी घटनाएं देश के अधिकांश ग्रामीण इलाकों में देखने को मिलती हैं, जहां पढ़ने-लिखने की उम्र में लड़कियों का स्कूल छुड़वा दिया जाता है और उन्हें घर के काम में लगा दिया जाता है. यह न केवल उनके चेतना के विकास, और आर्थिक अवसरों को सीमित कर देता है, बल्कि उनके मानवीय अधिकारों का उल्लंघन भी है। हालांकि उन्हें पढ़ना अच्छा लगता है, लेकिन उनके माता-पिता इसके महत्व को नहीं समझते हैं. उन्हें यह नहीं पता होता है कि अगर एक लड़की शिक्षित होगी तो पूरा समाज शिक्षित हो जाएगा. देश के अन्य हिस्सों की तरह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के सीमावर्ती जिला पुंछ के सुरनकोट तहसील स्थित सीरी चौहाना गांव में भी किशोरियों के खिलाफ हिंसा की ऐसी घटनाएं आम हैं. यहां ऐसे कई घर हैं जहां किशोरियां स्कूल छोड़ चुकी हैं. उन्हें इससे वंचित कर घर के कामों में लगा दिया जाता है. इस संबंध में गांव की एक 17 वर्षीय किशोरी हफ़ीज़ा बी कहती है कि 'मुझे 11वीं में दाखिला नहीं मिल सका क्योंकि मेरे परिवार ने मुझे आगे पढ़ने की इजाजत नहीं दी. मुझे पढ़ाई कराने के बजाय घर का सारा काम करवाया जाता है. स्कूल जाने का नाम लेती हूं तो कहा जाता है कि पढ़ने-लिखने से क्या तुम्हें मिलेगा? यदि घर का काम करती हो, तो अपने ससुराल में सम्मान से रहोगी. पढ़ाई तुम्हारे काम नहीं आएगी. हफ़ीज़ा कहती है कि मेरी दो और बहनें भी हैं. हम तीनों बहनें घर का सारा काम करती हैं. जंगल से घास और लकड़ियां काट कर लाती हैं. पानी लाने के लिए तीन किमी दूर जाती हैं.
वह कहती है कि "जब मैं बाकी लड़कियों को स्कूल जाते देखती हूं तो मेरा दिल बैठ जाता है. जिस समय मेरे सिर पर गोबर की टोकरी होती है उनके पास किताबों से भरा बैग होता है. मेरा भी सपना था कि मैं डॉक्टर बनकर अपने गांव के लोगों की सेवा करूं. लेकिन मेरे सारे सपने अधूरे रह गए." वह कहती हैं कि मैं यह कभी समझ नहीं पाई कि लोग लड़कियों की शिक्षा को महत्व क्यों नहीं देते है? क्यों उन्हें लगता है कि केवल लड़कों के शिक्षित हो जाने से समाज विकसित हो जाएगा और लड़कियों के पढ़ लेने से समाज में बिगाड़ आ जायेगा? जबकि देश और दुनिया में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां शिक्षित महिलाओं ने घर से लेकर बाहर तक की व्यवस्था को बखूबी संभाला है. इस संबंध में गांव की उप सरपंच जमीला बी, उम्र 35 वर्ष का भी मानना है कि हमारे गांव में लड़कियों की साक्षरता दर बहुत कम है. उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के बहुत कम अवसर मिलते हैं. इसके पीछे वह तर्क देती हैं कि कई ऐसे घर हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, वहीं कुछ परिवार शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होते हैं. इस वजह से लड़कियों को बहुत कम उम्र में ही घर के काम तक सीमित कर दिया जाता है. वे प्रतिदिन लकड़ी इकट्ठा करती हैं, घर के सभी सदस्यों के लिए खाना बनाती हैं, उनके कपड़े धोती हैं, चक्की से आटा पिसवाने जाती हैं, धान कूटने का काम करती हैं. इसके अलावा किशोरियां घर के कामों में भी पुरुषों की मदद करती हैं. वह बताती हैं कि पांच से नौ साल की उम्र के बीच 30 फीसदी जबकि चौदह साल की उम्र तक पचास प्रतिशत से अधिक किशोरियां हमेशा के लिए स्कूल छोड़कर घर के कामकाज में लग जाती हैं. जमीला बी के अनुसार किशोरियों का जंगल में लकड़ी इकट्ठा करने जाना उनके लिए यौन हिंसा के जोखिम का कारण भी बनता है. उनका मानना है कि आज के दौर में लड़कियां अपने परिवार के दबाव में शिक्षा छोड़ देती हैं. परिवार वालों को लगता है कि अगर आज लड़की स्कूल जाएगी तो रास्ते में बहुत दिक्कतें आएंगी और मां-बाप को डर है कि कहीं हमारी बदनामी न हो जाए. इसलिए उन्हें स्कूल नहीं भेजा जाता है.
इस संबंध में 40 वर्षीय एक स्थानीय निवासी फैज़ुल हुसैन समाज की संकीर्ण सोच को उजागर करते हुए कहते हैं कि कुछ लोग सोचते हैं कि लड़कियां घरेलू काम के लिए बनी एक मशीन होती है. उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है. उन्हें पांव की जूती समझा जाता है. घर के किसी भी अहम फैसले में उन्हें शामिल नहीं किया जाता है. उनके भविष्य के फैसले भी पुरुषों द्वारा तय किए जाते हैं. एक लड़की यह भी तय नहीं कर सकती कि उसे भविष्य में क्या बनना है? वह समाज की संकीर्ण सोच की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहते हैं कि नारी कोई निर्जीव वस्तु नहीं, बल्कि हमारी तरह इंसान है. फैज़ुल हुसैन का मानना है कि महिलाएं और लड़कियां तब तक अपनी आवाज नहीं बनेंगी, जब तक वह अपनी चुप्पी नहीं तोड़तीं हैं. वहीं 25 वर्षीया गुलनाज अख्तर कहती हैं कि कई लोग सोचते हैं कि हिंसा का मतलब शरीर को नुकसान पहुंचाना है. जबकि हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं मानसिक भी होती है. महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता है और उनसे घर के काम करवाए जाते हैं. यहां लड़कियां भी कंधे पर पत्थर, सीमेंट और बजरी लेकर चलती हैं. वह कहती हैं कि आजकल लगभग हर घर में महिलाएं हर तरह की हिंसा का शिकार होती हैं. इसका मुख्य कारण आर्थिक समस्याएं और शिक्षा की कमी है. छोटी सी उम्र में ही लड़कियों से किताबें छीन कर भारी काम करवाया जाता है जो बाद में उनमें बीमारियों का कारण बनता है. वह सवाल करती है कि "आखिर किशोरियां कब तक यह अत्याचार सहती रहेगी?" बहरहाल, समाज में महिलाओं के स्थान और उनके महत्व को खुले दिल और दिमाग से पहचानने की आवश्यकता है. उन क़दमों को रोकना होगा जो किशोरियों के खिलाफ कैसे सफल लोग सोचते हैं और काम करते हैं हिंसा के लिए उठते हैं. उन्हें शिक्षा से वंचित कर घर के कामों तक सीमित कर देते हैं.
यह लेख संजय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के तहत लिखा गया है। (चरखा फीचर)
बचपन में कई बार नहीं होता था घर में खाना, अब US में वैज्ञानिक बना महाराष्ट्र का आदिवासी लड़का
हलामी ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में अपने बचपन के शुरुआती दिनों को याद किया कि किस तरह उनका परिवार बहुत थोड़े में गुजारा करता था. 44 वर्षीय वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘हमें एक वक्त के भोजन के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था. मेरे माता-पिता हाल तक सोचते थे कि जब भोजन या काम नहीं था तो परिवार ने उस समय कैसे गुजारा किया.’’
हलामी की एक सफल वैज्ञानिक बनने की यात्रा बाधाओं से भरी रही है.
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के एक सुदूर गांव में बचपन में एक समय के भोजन के लिए संघर्ष करने से लेकर अमेरिका में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक बनने तक, भास्कर हलामी का जीवन इस बात का एक उदाहरण है कि कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से कुछ भी हासिल किया जा सकता है. कुरखेड़ा तहसील के चिरचडी गांव में एक आदिवासी समुदाय में पले-बढ़े हलामी अब अमेरिका के मेरीलैंड में बायोफार्मास्युटिकल कंपनी सिरनामिक्स इंक के अनुसंधान और विकास खंड में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं. कंपनी आनुवंशिक दवाओं में अनुसंधान करती है और हलामी आरएनए निर्माण और संश्लेषण का काम देखते हैं.
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हलामी की एक सफल वैज्ञानिक बनने की यात्रा बाधाओं से भरी रही है और उन्होंने कई जगह पहला स्थान हासिल किया है. वह विज्ञान स्नातक, स्नातकोत्तर डिग्री और पीएचडी करने वाले चिरचडी गांव के पहले व्यक्ति हैं. हलामी ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में अपने बचपन के शुरुआती दिनों को याद किया कि किस तरह उनका परिवार बहुत थोड़े में गुजारा करता था. 44 वर्षीय वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘हमें एक वक्त के भोजन के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था. मेरे माता-पिता हाल तक सोचते थे कि जब भोजन या काम नहीं था तो परिवार ने उस समय कैसे गुजारा किया.''
उन्होंने कहा कि वर्ष में कुछ महीने विशेष रूप से मानसून, अविश्वसनीय रूप से कठिन रहता था क्योंकि परिवार के पास जो छोटा खेत था उसमें कोई फसल नहीं होती थी और कोई काम नहीं होता था. हलामी ने कहा, ‘‘हम महुआ के फूल को पकाकर खाते थे, जो खाने और पचाने में आसान नहीं होते थे. हम परसोद (जंगली चावल) इकट्ठा करते थे और पेट भरने के लिए इस चावल के आटे को पानी में पकाते थे. यह सिर्फ हमारी बात नहीं थी, बल्कि गांव के 90 प्रतिशत लोगों के लिए जीने का यही जरिया होता था.''
चिरचडी 400 से 500 परिवारों का गांव है. हलामी के माता-पिता गांव में घरेलू सहायक के रूप में काम करते थे, क्योंकि उनके छोटे से खेत से होने वाली उपज परिवार का भरण पोषण करने के लिए पर्याप्त नहीं थी. हालात तब बेहतर हुए जब सातवीं कक्षा तक पढ़ चुके हलामी के पिता को करीब 100 किलोमीटर दूर कसनसुर तहसील के एक स्कूल में नौकरी मिल गई. हलामी ने कक्षा एक से चार तक की स्कूली शिक्षा कसनसुर के एक आश्रम स्कूल में की और छात्रवृत्ति परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने यवतमाल के सरकारी विद्यानिकेतन केलापुर में कक्षा 10 तक पढ़ाई की.
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पिता शिक्षा के मूल्य को समझते थे और उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मैं और मेरे भाई-बहन अपनी पढ़ाई पूरी करें.'' गढ़चिरौली के एक कॉलेज से विज्ञान स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद हलामी ने नागपुर में विज्ञान संस्थान से रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की. 2003 में हलामी को नागपुर में प्रतिष्ठित लक्ष्मीनारायण इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एलआईटी) में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया.
उन्होंने महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग (एमपीएससी) की परीक्षा पास की, लेकिन हलामी का ध्यान अनुसंधान पर बना रहा और उन्होंने अमेरिका में पीएचडी की पढ़ाई की तथा डीएनए और आरएनए में बड़ी संभावना को देखते हुए उन्होंने अपने अनुसंधान के लिए इसी विषय को चुना. हलामी ने मिशिगन टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. हलामी अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं, जिन्होंने उनकी शिक्षा के लिए कड़ी मेहनत की. हलामी ने चिरचडी में अपने परिवार के लिए एक घर बनाया है, जहां उनके माता-पिता रहना चाहते थे. कुछ साल पहले हलामी के पिता का निधन हो गया.
Weight Loss Drink: खुल गया करीना कपूर की पतली कमर का राज?, रोज पीती हैं ये होम मेड स्पेशल ड्रिंक!
Weight Loss Drink: एक्ट्रेस के दो बेटे हैं जिनका नाम तैमूर अली खान और जैह (जहांगीर अली खान) है। एक्ट्रेस की तरह ही उनके बेटों की भी खूब चर्चा होती रहती है। जब भी एक्ट्रेस के बेटों की कोई नई तस्वीर सामने आती है तो सोशल मीडिया पर छा जाती है। बच्चों की मां होने के बाद भी करीना कपूर अपनी परफेक्ट बॉडी की बदौलत फिल्मी दुनिया में अपनी जगह बनाई हुई है।
November कैसे सफल लोग सोचते हैं और काम करते हैं 24, 2022
नई दिल्ली। करीना कपूर (Kareena Kapoor) बॉलीवुड की ऐसी एक्ट्रेस है जिन्होंने सिने जगत को एक से बढ़कर एक फिल्में दी है। करीना सफल एक्ट्रेस तो हैं ही साथ ही अपनी शादी-शुदा लाइफ को खूब इंजॉय करती है। एक्ट्रेस के दो बेटे हैं जिनका नाम तैमूर अली खान और जैह (जहांगीर अली खान) है। एक्ट्रेस की तरह ही उनके बेटों की भी खूब चर्चा होती रहती है। जब भी एक्ट्रेस के बेटों की कोई नई तस्वीर सामने आती है तो सोशल मीडिया पर छा जाती है। बच्चों की मां होने के बाद भी करीना कपूर अपनी परफेक्ट बॉडी की बदौलत फिल्मी दुनिया में अपनी जगह बनाई हुई है।
कई बार आपके मन में भी ये ख्याल आता होगा कि दो बच्चों को जन्म देने के बाद भी एक्ट्रेस (Kareena Kapoor Fitness) का फिगर इतना फिट और कर्वी कैसे हैं तो इस राज का सच सामने आ गया है। जी हां, एक्ट्रेस की पतली कमर का राज एक होममेड स्पेशल ड्रिंक है। अगर आप भी उनकी तरह ही स्लिम फिट बेली चाहते हैं तो नीचे हम उस ड्रिंक के बारे में बता रहे हैं…
इस तरह बनाएं होममेड ड्रिंक
करीना कपूर जैसी फिट और पतली कमर पाने के लिए आपको जो होममेड ड्रिंक बनाना है उसके लिए 2 गिलास पानी लें। अब इस पानी में 7 से 8 करी पत्ता, 3 अजवाइन के पत्ते, एक चम्मच धनिया, एक छोटी चम्मच पिसी इलायची और थोड़ा अदरक घिस कर डालें। इस ड्रिंक के सेवन से आपको करीना जैसी पतली कमर मिलेगी।
इन चीजों का भी रखें ख्याल
करीना कपूर जैसी पतली कमर पाने के लिए आपको इस ड्रिंक के साथ कैसे सफल लोग सोचते हैं और काम करते हैं ही खाने में ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन वाली चीजें जैसे की अंडे, पनीर, टोफू और ड्राई फ्रूट्स के साथ सुबह की शुरुआत करनी चाहिए। अगर आपने पेट की चर्बी कम करने का ठान लिया है तो बाहर का तला-भुना और पैकेट की चीजें बिलकुल बंद कर दें। जो लोग ये सोचते हैं कि खाना कम करने से या फिर एक टाइम का खाना बंद करने से वजन कम होता है तो ऐसा नहीं है। अगर आप वजन कम करना चाह रहे हैं तो आपको समय से और जरूरत के मुताबिक खाना खाना चाहिए। वजन कम करने की चाह रखने वाले लोग शुगर को अलविदा कह दें और कोल्ड ड्रिंक्स-पेस्ट्री से भी दूरी बना लें। इसके अलावा दिन भर में खूब पानी पीएं, फलों और सब्जियों का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें, 8 घंटे की नींद लें। इन बातों का ख्याल रखेंगे तो आपका वजन तेजी से कम होने लगेगा।