क्या होगा विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का असर?

Rupee Vs Dollar: रुपया हुआ धराशायी, जानें क्या होगा आपकी जेब पर असर
डीएनए हिंदी: भारतीय रुपया (Indian Currency) आज यानी कि सोमवार को अमेरिकी डॉलर (USD) के मुकाबले अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. आज भारतीय रुपया 77.42 प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. रॉयटर्स के मुताबिक शंघाई में कड़े लॉकडाउन से वैश्विक मार्केट बुरी तरह प्रभावित हुआ है. वहीं अमेरिका में फेडरल रिजर्व नीतियों में परिवर्तन करने से अमेरिकी शेयर वायदा में गिरावट देखने को मिली. इसका असर भारतीय बाजार में भी गिरावट देखने को मिली.
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया और भी ज्यादा कमजोर हो गया है जिसके बाद यह अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. सोमवार को रुपया 0.3% की गिरावट के साथ 77.1825 डॉलर प्रति डॉलर पर आ गया, जो मार्च में पिछले रिकॉर्ड निचले 76.9812 को छू गया था. इसके पहले शुक्रवार को रुपया 55 पैसे टूटकर 76.90 रुपये के स्तर पर बंद हुआ था.
विदेशी मुद्रा भंडार पर प्रभाव
देश का विदेश मुद्रा भंडार (foreign exchange reserves) भी बुरी तरह प्रभवित हुआ है. लगातार इसमें भी कमी दर्ज की जा रही है. वर्तमान समय में यह घटकर 600 अरब डॉलर के नीचे पहुंच गया है. मालूम हो क्या होगा विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का असर? कि इसमें लगातार 8 हफ्तों से गिरावट देखी जा रही है. 29 अप्रैल के आंकड़ों पर नजर डालें तो फोरेक्स रिजर्व 2.695 अरब डॉलर गिरकर 597.73 अरब डॉलर के स्तर पर आ गया है.
रुपये में क्यों आई गिरावट
विदेशों फंडों ने इस साल भारतीय इक्विटी से रिकॉर्ड तोड़ 17.7 बिलियन डॉलर की बिकवाली की है. मुद्रा को चालू खाते के बढ़ते घाटे और वैश्विक कच्चे तेल (CRUDE OIL) की कीमतों में उछाल सहित अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों से भी प्रभावित किया गया है. यहां तक कि पिछले हफ्ते रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की आउट-ऑफ-साइकिल दर वृद्धि रुपये की गिरावट को रोकने में सक्षम नहीं है.
बीएनपी परिबास के रणनीतिकार सिद्धार्थ माथुर और चिदु नारायणन ने एक नोट में लिखा, "नीति को सामान्य बनाने में तात्कालिकता की आवश्यकता की आरबीआई की मान्यता समर्थन का एक स्रोत है." "हालांकि इक्विटी प्रवाह ब्याज-दर संवेदनशील प्रवाह पर हावी हो सकता है, घरेलू वित्तीय स्थितियों में तेजी से सख्त होने के परिणामस्वरूप इक्विटी बाजार (stock maket) की सेंटिमेंट में गिरावट से रुपये के लिए एक उच्च नकारात्मक जोखिम है."
आम नागरिकों की जेब पर पड़ेगा असर
रुपये में गिरावट होने से सबसे ज्यादा असर आम नागरिकों की जेब पर पड़ेगा. इसका असर आयात करने वाले क्षेत्रों पर खासकर पड़ेगा. कच्चे तेल को ही ले लें, भारत अपनी जरुरत का लगभग 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है. ऐसी स्थिति में रुपया और गिर सकता है और विदेशी मुद्रा में और अधिक कमी आ सकती है. कुल मिलाकर ज्वेलरी, इलेक्ट्रॉनिक गुड्स जैसी चीजें महंगी (INFLATION) हो जाएंगी.
गूगल पर हमारे पेज को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें. हमसे जुड़ने के लिए हमारे फेसबुक पेज पर आएं और डीएनए हिंदी को ट्विटर पर फॉलो करें.
विदेशी मुद्रा भंडार में सात साल बाद सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट
नई दिल्ली। डॉलर की तुलना में रुपए को कमजोर होने से बचाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की कोशिशों का भारतीय खजाने पर बुरा असर पड़ रहा है। 12 अक्टूबर को खत्म हुए सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 37.8 हजार करोड़ रुपए घट गया। विदेशी मुद्रा भंडार में यह गिरावट नवंबर 2011 के बाद यानी सात साल बाद की सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट है। केंद्रीय बैंक भारतीय मुद्रा को कमजोर होने से बचाने के लिए अमरीकी डॉलर की बिक्री करता है।
विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के अन्य कारणों में विदेशी निवेशकों का भारतीय इक्विटी और बांड बाजार से मोहभंग और देश के चालू खाते के घाटे का बढ़ना भी है। इसके अलावा भारत की ओर से विदेशों से लिए जा रहे कर्ज और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से भी विदेशी मुद्रा भंडार कम होता है। हालांकि, कोटक सिक्योरिटीज लिमिटेड के मुताबिक केंद्रीय बैंक की ओर से बाजार में हस्तक्षेप से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट में तेजी आई है। विदेशी निवेशकों ने इस साल अब तक भारतीय बांड और स्टॉक्स से 95.5 हजार करोड़ रुपए की निकासी की है।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और चालू खाते के बढ़ते घाटे व महंगाई से रुपए में लगातार छह महीने गिरावट का दौर रहा। यह वर्ष 2002 के बाद से सबसे लंबा गिरावट का दौर रहा है। 11 अक्टूबर को रुपए ने ऐतिहासिक तौर पर निचले स्तर को छू लिया था। 11 अक्टूबर को एक डॉलर की तुलना में रुपया 74.48 के स्तर पर पहुंच गया था। इस साल रुपए में अब तक 13 फीसदी की गिरावट आ चुकी है।
विदेशी मुद्रा भंडार घटा, भुगतान संतुलन का संकट तो नहीं?
विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। डॉलर के मुक़ाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। भुगतान संतुलन में भी कुछ गड़बड़ी दिख रही है। तो क्या ये किसी आर्थिक संकट की ओर इशारा करते हैं?
भुगतान संतुलन को किसी देश की आर्थिक स्थिति को पता लगाने की अहम नब्ज माना जा सकता है। अब यदि इस आधार पर देखें तो भारत की आर्थिक स्थिति कितनी ख़राब या कितनी बढ़िया दिखती है? इस हालात को समझने से पहले यह समझ लें कि भुगतान संतुलन क्या है। तकनीकी भाषा में कहें तो किसी देश के भुगतान संतुलन उसके शेष विश्व के साथ एक समय की अवधि में किये जाने वाले मौद्रिक लेन-देन का विवरण है। लेकिन मोटा-मोटी समझें तो भुगतान संतुलन का मतलब है कि किसी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में अपने आयात के बिल को चुकाने की क्षमता कितनी है।
छँटनी के बीच वाट्सऐप इंडिया प्रमुख, मेटा इंडिया के अफ़सर का इस्तीफा
श्रद्धा मर्डर केस: आफताब के परिवार ने 15 दिन पहले ही घर छोड़ा
श्रद्धा के पिता को 'लव जिहाद' का शक, बीजेपी को मिला मुद्दा
दिल्ली नगर निगम चुनाव में क्या आप दे पायेगी बीजेपी को मात?
मोरबी हादसा: बिना टेंडर के अजंता कंपनी को ठेका क्यों दिया- कोर्ट
गुजरात चुनाव: क्या कांग्रेस के लिए खतरा बनेगी AIMIM?
श्रद्धा मर्डर केस: जानिए, रिश्ते बनने से हत्या तक की पूरी कहानी
कर्नाटक में 'भगवा' के जवाब में कांग्रेस का 'सीएम अंकल' कैंपेन
हेमंत सोरेन के डेट बदलने के अनुरोध को ईडी ने ठुकराया
भारत को 1991 में अपने सबसे बड़े भुगतान संतुलन संकट का सामना करना पड़ा था। उसी संकट के बाद भारत ने आर्थिक सुधार कार्यक्रम को गति दी। उस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अपने आयात बिल के एक महीने से भी कम समय के लिए भुगतान कर सकता था। इसे ख़तरे के निशान में माना जाता है। क्योंकि यदि किसी देश के पास एक महीने से भी कम भुगतान करने के लिए पैसे न हों तो वह देश कंगाल हो सकता है। इसकी मिसाल श्रीलंका में मौजूदा संकट में भी मिलती है। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार खाली था और उसके पास सामान आयात करने पर उसके चुकाने के भी पैसे नहीं थे। वह पेट्रोल-डीजल भी नहीं खरीद पा रहा था। बिजली संकट पैदा हो गया था। कई ज़रूरी चीजें आयात नहीं हो पा रही थीं। इसी वजह से वह देश कंगाल घोषित हो गया।
बहरहाल, भारत का भुगतान संतुलन 1991 के बाद से लगातार सुधरा। कभी-कभार उतार-चढ़ाव को छोड़ दिया जाए तो विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ता गया। 1991 के बाद से आयात के बिल को चुकाने के लिए भारत के पास विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई के आँकड़ों से पता चलता है कि मार्च 1992 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इतना था कि तब के 4.8 महीने के आयात का भुगतान किया जा सकता था।
2000 के पहले दशक में यह विदेशी मुद्रा भंडार इतना हो गया कि 16 महीने से भी ज़्यादा के आयात का भुगतान किया जा सका था। अप्रैल 2020 में तो यह 28.1 महीने तक पहुँच गया। लेकिन उसके बाद से यह लगातार कम होता गया।
अगस्त 2022 के महीने में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 8.8 महीने के आयात के लिए भुगतान के बराबर है। यह आँकड़ा अप्रैल 2020 के बाद भारी गिरावट को दिखाता है।
वैसे, क्या होगा विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का असर? आर्थिक मामलों के जानकार इस गिरावट को ख़तरे के निशान के तौर पर नहीं देखते हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि 2 साल से लगातार स्थिति ख़राब होती दिख रही है। सवाल है कि क्या आगे स्थिति सुधरेगी?
विदेशी मुद्रा भंडार 16 सितंबर को समाप्त सप्ताह में कम होकर 545.65 अरब डॉलर पर आ गया है। यह मार्च 2022 में 607.31 अरब डॉलर था। इधर, आज के शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले घरेलू मुद्रा 40 पैसे गिरकर 81.93 रुपये के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गई। आरबीआई ने पिछले कुछ महीनों में रुपये के मूल्य को स्थिर करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इस्तेमाल किया है।
पहले दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक तंगी से गुजरने के बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था की सेहत अच्छी बताई जा रही थी। लेकिन अब कहा जा रहा है कि भारत पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। और इसी वजह से भारत की आर्थिक वृद्धि की दर के पूर्वानुमानों को अब पहले से कम किया जा रहा है।
बता दें कि मशहूर अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी ने हाल ही में 2022 में भयावह आर्थिक मंदी की चेतावनी दी है। रूबिनी को संदेह है कि अमेरिका और वैश्विक मंदी पूरे 2023 तक चलेगी और यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपूर्ति के झटके और वित्तीय संकट कितने गंभीर होते हैं।
नूरील रूबिनी वो अर्थशास्त्री हैं जिन्होंने 2008 के आर्थिक संकट की सटीक भविष्यवाणी की थी। कहा जाता है कि जब उन्होंने आर्थिक संकट के बारे में सबसे पहले बात की थी, तब किसी ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन उनकी सारी बातें सही साबित हुईं। तब अमेरिका गंभीर आर्थिक संकट से गुजरा था। नूरील रूबिनी को उनकी 2008 की सटीक भविष्यवाणी के लिए डॉ. डूम का उपनाम दिया गया था।
कहा जा रहा है कि दुनिया भर की आर्थिक अनिश्चितताओं, बढ़ती महंगाई ने आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया है। जब दुनिया की अर्थव्यवस्थाएँ तंग होंगी तो भारत भी प्रभावित होगा। ऐसे हालात में कहा जा रहा है कि सरकार को राजकोषीय घाटा को काबू में रखना मुश्किल होगा। हालाँकि सरकार चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 6.4 प्रतिशत रखने के लक्ष्य पर कायम है। लेकिन क्या यह इस लक्ष्य को पाने में सफल होगी?
2 साल के निचले स्तर पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, जानिए देश की सेहत पर क्या असर डालेगा?
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 19 अगस्त को समाप्त सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में आई गिरावट का मुख्य कारण फॉरेन रिजर्व असेट्स (एफसीए) और गोल्ड रिजर्व्स का कम होना है.
देश का विदेशी मुद्रा भंडार 19 अगस्त को समाप्त सप्ताह में 6.687 अरब डॉलर घटकर 564.053 अरब डॉलर रह गया. यह अक्टूबर, 2020 के बाद पिछले दो साल का निम्नतम स्तर है. हालांकि, एक वैश्विक रेटिंग एजेंसी का कहना है यह पिछले 20 सालों के रिजर्व की तुलना में अधिक ही है.
इससे पहले 12 अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.238 करोड़ डॉलर घटकर 570.74 अरब डॉलर रहा था. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार, 19 अगस्त को समाप्त सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में आई गिरावट का मुख्य कारण फॉरेन रिजर्व असेट्स (एफसीए) और गोल्ड रिजर्व्स का कम होना है.
साप्ताहिक आंकड़ों के मुताबिक, आलोच्य सप्ताह में एफसीए 5.77 अरब डॉलर घटकर 501.216 अरब डॉलर रह गयी. डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाली फॉरेन रिजर्व असेट्स में यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं में मूल्यवृद्धि अथवा मूल्यह्रास के प्रभावों को शामिल किया जाता है.
आंकड़ों के अनुसार, आलोच्य सप्ताह में स्वर्ण भंडार का मूल्य 70.4 करोड़ डॉलर घटकर 39.914 अरब डॉलर रह गया. समीक्षाधीन सप्ताह में, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 14.6 करोड़ डॉलर घटकर 17.987 अरब डॉलर पर आ गया. जबकि आईएमएफ में रखे देश का मुद्रा भंडार भी 5.8 करोड़ डॉलर गिरकर 4.936 अरब डॉलर रह गया.
वहीं, विदेश में अमेरिकी मुद्रा की मजबूती और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के चलते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया सोमवार को शुरुआती कारोबार में 31 पैसे टूटकर अब तक के सबसे निचले स्तर 80.15 रुपये पर आ गया है. रुपया शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले 79.84 पर बंद हुआ था. इससे पहले रुपये का ऑल टाइम लो 80.06 था.
जबकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने 1 अगस्त से 26 अगस्त तक भारतीय बाजार में 55,031 करोड़ रुपये का निवेश किया है. इक्विटी बाजार में, विदेशी फंड का प्रवाह 49,254 करोड़ रुपये रहा. यह एफपीआई की इस साल की अब तक की सबसे बड़ी मासिक खरीदारी होगी.
क्या होता है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार को किसी देश की हेल्थ का मीटर माना जाता है. इस भंडार में विदेशी करेंसीज, गोल्ड रिजर्व्स, ट्रेजरी बिल्स सहित अन्य चीजें आती हैं जिन्हें किसी देश की केंद्रीय बैंक या अन्य मौद्रिक संस्थाएं संभालती हैं. ये संस्थाएं पेमेंट बैलेंस की निगरानी करती हैं, मुद्रा की विदेशी विनिमय दर देखती हैं और वित्तीय बाजार स्थिरता बनाए रखती हैं.
विदेशी मुद्रा भंडार में क्या-क्या आता है?
आरबीआई अधिनियम और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 विदेशी मुद्रा भंडार को नियंत्रित करते हैं. इसे चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है. पहला और सबसे बड़ा घटक विदेशी मुद्रा संपत्ति है जो कि यह कुल पोर्टफोलियो का लगभग 80 फीसदी है. भारत अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में भारी निवेश करता है और देश की विदेशी मुद्रा संपत्ति का लगभग 75 फीसदी डॉलर मूल्यवर्ग की सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता है.
इसके बाद गोल्ड में निवेश और आईएमएफ से स्पेशल ड्राइंग राइट्स (एसडीआर) यानी विशेष आहरण अधिकार आता है. सबसे अंत में आखिरी रिजर्व ट्रेंच पोजीशन है.
विदेशी मुद्रा भंडार का उद्देश्य क्या है?
फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व्स का सबसे पहला उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि रुपया तेजी से नीचे गिरता है या पूरी तरह से दिवालिया हो जाता है तो आरबीआई के पास बैकअप फंड है. दूसरा उद्देश्य यह है कि यदि विदेशी मुद्रा की मांग में वृद्धि के कारण रुपये का मूल्य घटता है, तो आरबीआई भारतीय मुद्रा बाजार में डॉलर को बेच सकता है ताकि रुपये के गिरने की रफ्तार को रोका जा सके. तीसरा उद्देश्य यह है कि विदेशी मुद्रा का एक अच्छा स्टॉक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए एक अच्छी छवि स्थापित करता है क्योंकि व्यापारिक देश अपने भुगतान के बारे में सुनिश्चित हो सकते हैं.
क्या होगा असर?
अमेरिका स्थित रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स (S&P Global Ratings) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उभरते बाजारों को खाद्य पदार्थों की अधिक कीमतों, अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व और टाइट फाइनेंशियल कंडीशंस से बड़े पैमाने पर बाहरी दबाव का सामना करना पड़ रहा है.
उसने कहा है कि इस मामले में भारत कोई अपवाद नहीं है. इन संकटों के साथ ही बड़े पैमाने पर राजकोषीय घाटे और घरेलू स्तर पर महंगाई की अधिक दर का भी सामना करना है. हालांकि, इन सबके बावजूद उसने भारत के हालात को अन्य देशों की तुलना में बेहतर करार दिया है.
सॉवरेन एंड इटरनेशनल पब्लिक फाइनेंश रेटिंग के डायरेक्टर एंड्र्यू वूड ने कहा कि हमने देखा है कि कोविड-19 महामारी शुरुआती दौर के बाद से भारत दुनिया का नेट क्रेडिटर यानी कर्जदाता बन गया है. इसका मतलब यह है कि भारत ने उन जै कठिनाइयों के खिलाफ स्टॉक तैयार कर लिया है, जिसका हम अभी सामना कर रहे हैं.
वहीं, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी पर वह कहते हैं कि अगर इन रिजर्व्स को पिछले 20 सालों के रिजर्व्स से तुलना करेंगे तो मामूल अंतर से यह अधिक ही है. इसके अलावा, वुड ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस साल के अंत तक विदेशी मुद्रा भंडार मामूली रूप से लगभग 600 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा और अगले कुछ वर्षों में इसी के आसपास बरकरार रहेगा.
एक बार फिर रिकॉर्ड निचले स्तर पर लुढ़का रुपया, आप पर होगा ये असर
Rupee at Record Low: शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों ने शुक्रवार को शुद्ध रूप से 2,250.77 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे।
Updated Oct 10, 2022 | 01:22 PM IST
Rupee at Record Low: भारतीय रुपये ने बनाया गिरने का नया रिकॉर्ड
नई दिल्ली। सोमवार को भारतीय रुपये ने गिरने का नया रिकॉर्ड (Rupee at Record Low) बनाया। आज क्या होगा विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का असर? शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारीय मुद्रा (Rupee vs Dollar) 39 पैसे फिसलकर 82.69 के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई थी। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में आज अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 82.68 के स्तर पर खुला था। इसके बाद इसमें गिरावट दर्ज की गई और यह 82.69 के स्तर पर आ गया। यह पिछले बंद भाव की तुलना में 39 पैसे की गिरावट को दर्शाता है। मालूम हो कि पिछले सत्र में यानी शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 13 पैसे की गिरावट के साथ 82.30 पर बंद हुआ था।
दरअसल क्रूड ऑयल की कीमत (Crude Oil Price) में तेजी की वजह से रुपये में गिरावट देखी जा रही है। निवेशकों की ओर से रिस्क लेने से परहेज करने के कारण रुपया फिसल गया है। इसके अलावा सोमवार को घरेलू शेयर बाजार में जोरदार गिरावट का सिलसिला देखा जा रहा है। साथ ही अमेरिकी मुद्रा की मजबूती की वजह से भी रुपये पर अतिरिक्त दबाव बना है।
Share Market Today, 10 Oct 2022: बड़ी गिरावट के साथ खुला बाजार,695 क्या होगा विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का असर? अंक फिसला सेंसेक्स
सितंबर में कम हुआ भारत का निर्यात, आयात में आया उछाल, इतना रहा व्यापार घाटा
पिछले हफ्ते भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कहा था कि 30 सितंबर को भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 4.854 अरब डॉलर घटकर 532.664 अरब डॉलर रह गया था। डॉलर की बात करें, तो छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक (Dollar Index) 0.02 फीसदी की बढ़त के साथ 112.81 के स्तर पर पहुंच गया।
रुपये का गिरना भारत के कई सेक्टर्स के लिए मुसीबत भरी खबर है। मुद्रा के गिरने से आप पर बड़ा असर देखने को मिल सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे ना सिर्फ तेल की कीमत, बल्कि रोजमर्रा का सामन भी महंगा हो सकता है। भारत में जिन भी प्रोडक्ट्स का इम्पोर्ट किया जाता है, वो सब महंगा होने की उम्मीद है। अब इम्पोर्ट के लिए आयातकों को ज्यादा पैसों का भुगतान करना होगा।