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लिंगायत के रूप में हिंदू समाज का विभाजन
ब्रिटिश सरकार ने हिंदू समाज में विभाजन पैदा करने के लिए कम्यूनल एवार्ड योजना के तहत मुसलमानों की तरह दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र बनाने का प्रस्ताव किया तो महात्मा गांधी ने यह कहते हुए इसका विरोध किया कि समाज का यह विभाजन अंतत: देश में विभाजन के बीज बोएगा। गांधी जी ने इसके खिलाफ सत्याग्रह किया। इस पर 26 सितंबर, 1932 को पुणे की यावरदा जेल में गांधी जी व बाबा साहिब भीमराव अंबेदकर के बीच समझौता हुआ। इस तरह हिंदू समाज के विभाजन को रोक दिया गया। गांधी जी की ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल ने देश की 5 सौ से अधिक रियासतों को एकजुट कर सशक्त राष्ट्र का निर्माण किया परंतु आज वही कांग्रेस लिंगायतों के रूप में हिंदू समाज में विभाजन की रेखा खींच कर देश में बिखराव का नया बखेड़ा खड़ा करने के प्रयास में है।
कांग्रेस के नेतृत्व वाली सिद्धारमैया सरकार ने हिंदू समाज के अभिन्न घटक लिंगायत समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का फैसला किया है और अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी है। लिंगायतों में इसाई मिशनरियों द्वारा काफी समय से अलगाव के बीज बोए जा रहे थे जिसको कांग्रेस ने खाद-पानी देकर विषबेल का रूप दिया और अब इस पर विभाजन के फलों की खेती के प्रयास फलीभूत होते दिख रहे हैं। अगर अलगाव को नहीं रोका गया तो भविष्य में इस विभाजन की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। हिंदू समाज अपने भीतर विभाजन कदापि स्वीकार नहीं करेगा और इस तरह के प्रयास करने वाले राजनीतिक दल में शत्रु की छवि के दर्शन करेगा। आओ जानें कौन हैं लिंगायत, वीरशैव संप्रदाय या लिंगायत मत, हिन्दुत्व के अंतर्गत दक्षिण भारत में प्रचलित एक मत है। इसके उपासक लिंगायत कहलाते हैं। यह शब्द कन्नड़ शब्द लिंगवंत से व्युत्पन्न है।
ये लोग मुख्यत: पंचाचार्यगणों एवं बसव की शिक्षाओं के अनुगामी हैं। वीरशैव का शाब्दिक अर्थ है- जो शिव का परम भक्त हो। किंतु समय बीतने के साथ वीरशैव का तत्वज्ञान दर्शन, साधना, कर्मकांड, सामाजिक संघटन, आचार-नियम आदि अन्य संप्रदायों से भिन्न होते गए। यद्यपि वीरशैव देश के अन्य भागों-महाराष्ट्र, आंध्र, तमिलनाडू में भी पाए जाते हैं किंतु उनकी सबसे अधिक संख्या कर्नाटक में है। शैव लोग अपने धार्मिक विश्वासों और दर्शन का उद्गम वेदों तथा 28 शैवागमों से मानते हैं। वीरशैव भी वेदों में अविश्वास नहीं प्रकट करते किंतु उनके दर्शन, कर्मकांड तथा समाजसुधार आदि में ऐसी विशिष्टताएं विकसित हो गई हैं जिनकी व्युत्पत्ति मुख्य रूप से शैवागमों तथा ऐसे अंतर्दृष्टि योगियों से हुई मानी जाती है जो वचनकार कहलाते हैं। 12वीं से 16 वीं शती के बीच लगभग तीन शताब्दियों में कोई 300 वचनकार हुए हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध नाम बासव का है जो कल्याण के 12 शताब्दी के राजा विज्जल के प्रधानमंत्री थे। वह योगी महात्मा ही न थे बल्कि कर्मठ संगठनकर्ता भी थे जिसने वीरशैव संप्रदाय की स्थापना की।
वासव का लक्ष्य ऐसा आध्यात्मिक समाज बनाना था। जिसमें जाति, धर्म या स्त्रीपुरुष का भेदभाव न रहे। वह कर्मकांड संबंधी आडंबर का विरोधी था और मानसिक पवित्रता एवं भक्ति की सच्चाई पर बल देता था। वीरशैवों का संप्रदाय शक्ति विशिष्टाद्वैत कहलाता है। वीरशैवों ने एक तरह की आध्यात्मिक अनुशासन की परंपरा स्थापित कर ली है जिसे शतस्थल शास्त्र कहते हैं। यह मानव की साधारण चेतना का अंगस्थल के प्रथम प्रक्रम से लिंगस्थल के सर्वोच्च क्रम पर पहुँच जाने की स्थिति का सूचक है। साधना अर्थात् आध्यात्मिक अनुशासन की समूची प्रक्रिया में भक्ति और शरण याने आत्मार्पण पर बल दिया जाता है।
वीरशैव महात्माओं की कभी कभी शरण या शिवशरण कहते हैं याने ऐसे लोग जिन्होंने शिव की शरण में अपने आपको अर्पित कर दिया है। उनकी साधना शिवयोग कहलाती है। इसमें संदेह नहीं कि वीरशैवों के भी मंदिर, तीर्थस्थान आदि वैसे ही होते हैं जैसे अन्य संप्रदायों के, अंतर केवल उन देवी देवताओं में होता है जिनकी पूजा की जाती है। जहाँ तक वीरशैवों का सबंध है, देवालयों या साधना के अन्य प्रकारों का उतना महत्व नहीं है जितना इष्ट लिंग का जिसकी प्रतिमा शरीर पर धारण की जाती है। आध्यात्मिक गुरु प्रत्येक वीरशैव को इष्ट लिंग अर्पित कर उसके कान में पवित्र षडक्षर मंत्र ओम् नम: शिवाय फूँक देता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रत्येक वीरशैव में सत्यपरायणता, अहिंसा, बंधुत्वभाव जैसे उच्च नैतिक गुणों के होने की आशा की जाती है। वह निरामिष भोजी होता है और शराब आदि मादक वस्तुओं से परहेज करता है।
बासव ने इस संबंध में जो निदेश जारी किए थे, उनका सारांश यह है-चोरी न करो, हत्या न करो और न झूठ बोलो, न अपनी प्रशंसा करो न दूसरों की निंदा, अपनी पत्नी के सिवा अन्य सब स्त्रियों को माता के समान समझो। इन शिक्षाओं से स्पष्ट होता है कि लिंगायत समाज किसी भी दृष्टि से हिंदुत्व से अलग नहीं है। अलगाववादी तर्क देते हैं कि लिंगायत वैदिक संस्कृति में विश्वास नहीं रखते तो उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि हिंदुत्व में इसकी बाध्यता भी नहीं है। लिंगायत समाज के हिंदुत्व से अलग होने के कोई तर्क नहीं बल्कि केवल राजनीतिक चालबाजियां व हिंदुत्व को कमजोर करने की कवायद है जो कांग्रेस, इसाई मिशनरियां व जिहादी ताकतें मिल कर इनको अंजाम दे रही है। देश में चल रही अल्पसंख्यकवाद की राजनीति ने पहले सिख पंथ, बौद्ध संप्रदाय व जैन समाज को हिंदुत्व की मुख्यधारा से अलग किया और अब लिंगायत समाज का विच्छेद करने का प्रयास हो रहा है जिसे हिंदू समाज किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगा।
भारत को मैन्युफैक्चरिंग डेस्टिनेशन बनाने के लिए हमने रखी है मजबूत नींवः पीएम मोदी
मोदी ने कहा कि इंटरनेशनल रेटिंग एजेंसी मूडीज के मुताबिक 2020 में अमेरिका से 154 ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट भारत आए जबकि चीन की झोली में 86 प्रोजेक्ट पहुंचे. मलेशिया को 15 और वियतनाम के 12 प्रोजेक्ट मिले. पीएम मोदी ने कहा कि यह भारत की विकास की संभावनाओं में दुनिया के बढ़ते भरोसे का संकेत है.
Published: October 29, 2020 11:41 AM IST
कोरोना काल में भारत ने एक मामले में चीन को पछाड़ दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इकोनॉमिक टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में यह बात कही. मोदी ने कहा कि इंटरनेशनल रेटिंग एजेंसी मूडीज के मुताबिक 2020 में अमेरिका से 154 ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट भारत आए जबकि चीन की झोली में 86 प्रोजेक्ट पहुंचे. मलेशिया को 15 और वियतनाम के 12 प्रोजेक्ट मिले. पीएम मोदी ने कहा कि यह भारत की विकास की संभावनाओं में दुनिया के बढ़ते भरोसे का संकेत है. हमने भारत को अग्रणी मैन्युफैक्चरिंग डेस्टिनेशन बनाने के लिए मजबूत नींव रखी है.
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उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट टैक्स में कटौती, कोल सेक्टर में कॉमर्शियल माइनिंग की शुरुआत, स्पेस सेक्टर को निजी क्षेत्र के लिए खोलने और सिविल एविएशन यूज के लिए डिफेंस पाबंदियों को हटाने के फैसलों से विकास की गति तेज करने में मदद मिलेगी. लेकिन हमें यह समझना होगा कि हम उतना ही तेज विकास कर सकते हैं जितना हमारे राज्य करेंगे.
निवेश आकर्षित करने के लिए राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा की जरूरत है. राज्य भी ईज ऑफ डूइंग बिजनस रैंकिंग में एक दूसरे से होड़ कर रहे हैं. निवेश आकर्षित करने के लिए इंसेंटिव ही काफी नहीं है, राज्यों को इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना होगा और विकास के अनुकूल अच्छी नीतियां बनानी होंगी.
पीएम मोदी ने कहा कि देश इकोनॉमिक रिकवरी के रास्ते पर है. सारे संकेत यही इशारा करते हैं. कृषि में हमारे किसानों ने सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए हैं. सरकार ने भी रेकॉर्ड खरीद की है. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आय बढ़ने से मांग बढ़ेगी. देश में रिकॉर्ड एफडीआई आया है जो इस बात का संकेत है कि इनवेस्टर फ्रेंडली देश के रूप में भारत की छवि बदल रही है. महामारी के बावजूद इस साल अप्रैल से अगस्त के बीच 35.13 अरब डॉलर का रिकॉर्ड निवेश आया. यह पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 13 फीसदी अधिक है.
पीएम मोदी ने कहा कि ट्रैक्टर सहित वाहनों की बिक्री पिछले साल के स्तर पर पहुंच रही है या उसे पार कर गई है. यह मांग में तेजी का सूचक है. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी रिकवरी से भारत सितंबर में उभरते बाजारों में दो स्थान सुधरकर चीन और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर आ गया. ई-वे बिल्स और जीएसटी कलेक्शन भी ठीकठाक है. ये सारे संकेत इस बात का प्रमाण है कि देश रिकवरी के रास्ते पर है.
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जागरूकता से ही रूकेंगी पराली जलाने की घटनाएं
पंजाब और हरियाणा को छोड़कर देश भर में धान की पराली कहीं भी नहीं जलाई जाती। पश्चिम उत्तर प्रदेश में तो अधिकांश धान हाथ से काटा जाता है और फिर हाथ से ही झाड़ कर निकाला जाता है। हाथ से काटने और झाड़ने में एक तो कोई प्रदूषण नहीं होता, डीजल का खर्चा बचता है और दूसरे ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों को खूब रोजगार भी मिलता है। वास्तव में, कृषि में मानव श्रम की भागीदारी कम होने और कृषि मशीनरी के अधिक उपयोग से पराली की समस्या विकट हुई है।
राष्ट्रीय राजधानी के आसपास के राज्यों में पराली जलाने के समाचार आने लगे हैं। हर वर्ष धान की कटाई के बाद ये समस्या मुंह बायें खड़ी हो जाती है। सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कई वर्षों के प्रयासों के उपरांत भी इस समस्या का कोई समुचित समाधान नहीं हो पाया है। पराली जलाने वाले किसानों के अपने तर्क और समस्याएं हैं। तमाम तर्कों और उपायों के उपरांत, हर वर्ष दिल्ली-एनसीआर में पड़ोसी प्रदेशों से पराली के धुएं से उठती जहरीली हवाएं दमघोंटू वातावरण निर्मित कर देती हैं। ऐसे में अहम प्रश्न यह है कि अन्तत: इस विकट समस्या का निदान क्या है? वो कौन से उपाय है जिनकों अपनाकर इस समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है? वास्तव में, कृषि में मानव श्रम की भागीदारी कम होने और कृषि मशीनरी के अधिक उपयोग से पराली की समस्या विकट हुई है।
प्रदूषण का आंकलन करने वाली सरकारी संस्था ‘सफर’ के अध्ययन के अनुरूप बीते वर्ष दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी अधिकतम 46 प्रतिशत पर रही, जो दिवाली से पहले सामान्यत: 15 प्रतिशत से नीचे थी। जिसमें अन्य कारक मिलकर समस्या को और जटिल बना देते हैं। किसान स्वयं भी पराली जलाने के दुष्परिणाम जानते हैं पराली की समस्या का आखिर उचित हल क्या है और क्या इसे जलाने के लिए केवल किसान जिम्मेदार हैं? कृषि एक आर्थिक गतिविधि है। लाभ-हानि किसान के निर्णय को प्रभावित करते हैं। किसान स्वयं भी पराली जलाने के दुष्परिणाम जानते हैं और इनके प्रति सचेत हो रहे हैं।
वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञों की चिंता का कारण यह है कि पराली जलाने की प्रक्रिया में कॉर्बनडाइआॅक्साइड व घातक प्रदूषण के कण अन्य गैसों के साथ हवा में घुल जाते हैं जो सेहत के लिये घातक साबित होते हैं। निश्चय ही जटिल होती समस्या हवा की गति, धूल व वातावरण की नमी मिलकर और जटिल हो जाती है। पिछले साल आईआईटी, कानपुर ने एक अध्ययन किया था। उस अध्ययन के अनुरूप इन महीनों में दिल्ली के प्रदूषण में अधिकतम 25 प्रतिशत हिस्सा ही पराली जलाने के कारण होता है। राजधानी दिल्ली व एनसीआर का स्थानीय प्रदूषण भी अत्यधिक होता है।
पराली जलाने की समस्या से देश का सर्वोच्च न्यायालय भी चिंतित है। पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने कृषिभूमि में पराली जलाने के विरुद्ध दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए केंद्र व निकटवर्ती राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली सरकारों को जवाब दाखिल करने के निर्देश दिये हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने चेताया कि यदि समय रहते इस दिशा में कोई कार्रवाई न हुई तो स्थिति बिगड़ जाएगी। ऐसे समय में जब जब देश में कोविड-19 की महामारी फैली हुई है, वायु प्रदूषण समस्या को और विकट बना सकता है। अवश्य ही यह कहा जा सकता है कि समस्त प्रयासों व दावों के बावजूद कृषि भूमि में पराली जलाने की समस्या नियंत्रण में नहीं आ रही है। पंजाब में किसानों की शिकायत है कि राज्य सरकार उन्हें अवशेष को न जलाने के प्रतिफल में क्षतिपूर्ति देने में असफल रही है।
वर्तमान परिस्थितियों में वे पराली के निस्तारण के लिये क्रय की जाने वाली मशीनरी हेतु ऋण भुगतान करने में भी सक्षम नहीं हैं। वहीं मुख्यमंत्री का दावा है कि उन्होंने पराली प्रबंधन की लागत कम करने के लिये केंद्र सरकार के साथ मिलकर कार्य किया है। पराली जलाने वाले प्रदेशों पंजाब और हरियाणा में एक तो मजदूरी महंगी है और दूसरे धान की कटाई के वक्त पर्याप्त संख्या में मजदूर उपलब्ध भी नहीं हो पाते। दरअसल मनरेगा जैसी योजनाओं के चलते किसानों को सस्ते मजदूर नहीं मिलते। पंजाब और हरियाणा में पहले बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से मजदूर आया करते थे परन्तु अब स्थानीय स्तर पर अपने राज्यों में ही मनरेगा के माध्यम से मजदूरी मिलने के चलते कम संख्या में ही ये पलायन करते हैं। इस बार कोविड के कारण मजदूरों का पलायन भी बड़ी समस्या बनकर सामने आया है।
जमीनी सच्चाई यह भी है कि किसानों को अक्टूबर में खेत खाली करने की जल्दी भी रहती है क्योंकि उन्हें अपनी रबी की फसल आलू, मटर, सरसों, गेंहंू आदि की बुवाई के लिए भी खेत तैयार करने के लिए बहुत कम समय मिलता है। मशीन से कटाई तेज भी होती है और ज्यादा महंगी भी नहीं पड़ती परन्तु इसमें डीजल के प्रयोग से प्रदूषण जरूर होता है। पंजाब और हरियाणा को छोड़कर देश भर में धान की पराली कहीं भी नहीं जलाई जाती। पश्चिम उत्तर प्रदेश में सीसीआई सूचक तो अधिकांश धान हाथ से काटा जाता है और फिर हाथ से ही झाड़ कर निकाला जाता है। हाथ से काटने और झाड़ने में एक तो कोई प्रदूषण नहीं होता, डीजल का खर्चा बचता है और दूसरे ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों को खूब रोजगार भी मिलता है।
मशीन से कटाई के बाद पराली जलाने से केवल प्रदूषण ही नहीं होता बल्कि जमीन से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, सल्फर, पोटैशियम जैसे पोषक तत्वों और जमीन की उर्वरता का भी नुकसान होता है। इस कारण अगली फसल में और अधिक मात्रा में रासायनिक खादों का प्रयोग करना पड़ता है। इससे देश पर खाद सब्सिडी का बोझ भी बढ़ता है और किसानों की लागत भी। धरती का तापमान भी बढ़ता है, जिसके बहुत से अन्य गंभीर दुष्परिणाम होते हैं। आग में कृषि में सहायक केंचुए, अन्य सूक्ष्म जीव भी नष्ट हो जाते हैं। इससे भविष्य में फसलों की पैदावार बड़ी मात्रा में घट सकती है और देश में खाद्य संकट खड़ा हो सकता है। पराली से बिजली बनाने या उसका कोई अन्य प्रयोग करने वाले सुझाव भी सीधे या परोक्ष रूप से प्रदूषण को ही बढ़ाते हैं। मशीनों से पराली प्रबंधन के लिए जो उपाय सुझाये गये सीसीआई सूचक हैं उनकी अपनी समस्यायें भी हैं।
सुझाव दिया जाता रहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ उन्हीं किसानों को मिले जो पराली का निस्तारण ठीक ढंग से करते हैं। ऐसे वक्त में जब दीवाली का त्योहार भी करीब है, समस्या के विभिन्न कोणों को लेकर गंभीरता दिखाने की जरूरत है। साथ ही किसानों को जागरूक करने की भी जरूरत है कि भले ही किसान को पराली जलाना आसान लगता हो, मगर वास्तव में यह खेत की उर्वरता को नुकसान ही पहुंचाता है। लेकिन समस्या यह भी है कि छोटे व मझोले किसान पराली निस्तारण के लिये महंगी मशीन खरीदने में सक्षम नहीं हैं। इस दिशा में सब्सिडी बढ़ाने की भी आवश्यकता अनुभव की जा रही है। निस्संदेह खेतों में पराली जलाने से रोकने के लिये किसानों को जागरूक करने की भी जरूरत है। किसानों को दंडित किये जाने के बजाय उनकी समस्या के निस्तारण में राज्य तंत्र को सहयोग करना चािहए।
पराली जलाने की घटनाएं हर वर्ष होती हैं। विडंबना ही है कि पराली के कारगर विकल्प के लिये केंद्र व राज्य सरकारों की तरफ से समस्या विकट होने पर ही पहल की जाती है, जिससे समस्या का कारगर समाधान नहीं निकलता। कारण यह भी है कि साल के शेष महीनों में समस्या को गंभीरता से नहीं लिया जाता। हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने एक सस्ता और सरल उपाय तलाशा है। उसने एक ऐसा घोल तैयार किया है, जिसका पराली पर छिड़काव करने से उसका डंठल गल जाता है और वह खाद में परिवर्तित हो जाता है। केंद्र सरकार द्वारा हाल में लाये गये किसान सुधार बिलों के विरोध में जारी आंदोलन के बीच इस समस्या से निपटना भी एक बड़ी चुनौती है।
-आशीष वशिष्ठ
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बिटकॉइन (BTC) – 18 नवंबर बाइनेंस के लिए: BTCUSDPERP readCrypto द्वारा – Technische Analyse – 2022-11-18 21:30:18
में वृद्धि बीटीसी प्रभुत्व की व्याख्या धन की एकाग्रता के रूप में की जा सकती है बीटीसी .
हालांकि, ऐसी स्थिति में जहां यूएसडीटी के माध्यम से धन प्रवाहित हो रहा है, और अगर यूएसडीटी का प्रभुत्व ऊपर की ओर बना रहता है, तो निकट भविष्य में सिक्का बाजार में बड़ी गिरावट आने की संभावना है।
तथ्य यह है कि USDT का प्रभुत्व बढ़ रहा है जबकि USDT का अंतर गिर रहा है, यह इस बात का प्रमाण है कि सिक्का बाजार में सिक्के (टोकन) बेचना USDT के प्रभुत्व में ऊपर की ओर गति दिखा रहा है।
इसलिए, यदि यूएसडीटी के माध्यम से धन का बहिर्वाह बंद हो जाता है या यदि यूएसडीटी प्रभुत्व में गिरावट नहीं दिखाई देती है, तो सिक्का बाजार में गिरावट की प्रवृत्ति में तेजी आने की उम्मीद है।
इसलिए, कुंजी यह है कि क्या यूएसडीटी का प्रभुत्व 7.86 से नीचे गिर सकता है और इसका विरोध किया जा सकता है।
( बीटीसीयूएसडीटीपीईआरपी 1डी चार्ट) सीसीआई सूचक
कॉइन मार्केट में पैसे का फ्लो बहुत अच्छा नहीं है।
इन परिस्थितियों में, ए तीखा वृद्धि के कारण भारी बिकवाली होने की संभावना है।
हमारा मानना है कि हम उस बिंदु पर भी हैं जहां हमें अपने धन को संरक्षित करने के लिए एक व्यापारिक रणनीति की आवश्यकता है।
यदि धन का बहिर्वाह जारी रहता है, तो यह बड़ी उम्मीद है अस्थिरता निकट भविष्य में होगा।
इस पर निर्भर करता है कि आप इसमें कीमत का कितनी अच्छी तरह बचाव कर सकते हैं अस्थिरता मुझे लगता है कि यह इस बात पर ध्यान केंद्रित करने का समय है कि क्या वर्तमान खंड के आसपास का क्षेत्र एक निचला खंड बनाने का अवसर प्रदान कर सकता है।
यदि कीमत बढ़ती है, तो आपको उन सिक्कों (टोकन) के नुकसान को कम करने का तरीका तलाशना चाहिए जिन्हें आपने अपने altcoins में अल्पावधि के दृष्टिकोण से ट्रेड किया था।
यदि आपके पास एक सिक्का (टोकन) है जो लाभदायक है, तो आपको यह भी सोचना चाहिए कि लाभ और हानि का आदान-प्रदान करके नुकसान को कैसे खत्म किया जाए।
जब कीमत गिर रही हो और बग़ल में चल रही हो तो खरीदारी करना, और जब कीमत बढ़ रही हो और रुक रही हो तो बेचना ट्रेडिंग का मूल सिद्धांत है।
हालांकि, उपरोक्त ट्रेडिंग सिद्धांत सही नहीं है जब की कीमत बीटीसी एक ऐसे क्षेत्र में है जहां निरंतर डाउनट्रेंड के दौरान नीचे या गर्त की उच्च संभावना है।
जब कीमत किसी बिंदु पर बग़ल में चलती हुई प्रतीत होती है और फिर इसके ऊपर किसी बिंदु पर फिर से समर्थन पाने के लिए उठती है, तो आपको खरीदारी करने पर विचार करना चाहिए।
इसका मतलब यह है कि जब आप कीमतों में बढ़ोतरी देखें तो आपको खरीदारी करनी चाहिए।
हालाँकि, आपको स्वयं को निर्धारित करने या चार्ट के प्रवाह को देखने की आवश्यकता है कि आप चयनित पर कैसे समर्थित हैं समर्थन और प्रतिरोध अंक या खंड।
जब कीमतें बढ़ रही हों तो खरीदारी के लिए सबसे पहले एक अल्पकालिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है, क्योंकि औसत खरीद मूल्य में वृद्धि जारी रहेगी।
हालांकि, यदि कीमत में वृद्धि जारी रहती है, तो अनुपात में वृद्धि होगी, इसलिए औसत खरीद मूल्य में वृद्धि घट जाएगी।
मेरा मानना है कि इस तरह से खरीदारी करना और नीचे या निचले बिंदु से बाहर निकलना आपको खरीदारी को अधिक मज़बूती से पूरा करने की अनुमति देगा।
जब आप व्यापार करते हैं, तो बड़ा लाभ प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण होता है।
हालांकि, बड़ा लाभ कमाने के लिए, आपको अपने घाटे को कम करने की आवश्यकता है, और आपको अपनी मनोवैज्ञानिक स्थिति को स्थिर रखने के लिए एक व्यापारिक रणनीति की आवश्यकता है।
यदि नहीं, तो इस बात की अत्यधिक संभावना है कि आप अंत तक होल्ड करने में सक्षम नहीं होंगे और व्यापार को बीच में ही बंद कर देंगे।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कैसे व्यापार करते हैं, आपको यह याद रखना चाहिए कि आपके लिए उपयुक्त व्यापारिक रणनीति के साथ व्यापार करके अपनी मनोवैज्ञानिक स्थिति को स्थिर रखना बड़ा लाभ प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक रणनीति है।
सवाल यह है कि क्या यह 15908.2-17170.0 सेक्शन में बग़ल में जारी रहने से एक तल बनेगा, या यह 13121.7 या लगभग 18K के आसपास बड़े पैमाने पर चलेगा अस्थिरता और एक नई लहर पैदा करो।
अपट्रेंड में बदलने के लिए, कीमत को HA-लो लाइन के ऊपर और MS-सिग्नल इंडिकेटर के ऊपर रहने की जरूरत है।
इसलिए, इसे कम से कम 17170.0 से ऊपर उठकर समर्थन दिखाना चाहिए।
हालांकि, HA-लो पॉइंट और MS-सिग्नल इंडिकेटर पॉइंट बहुत दूर हैं, इसलिए हमें यह देखने की जरूरत है कि क्या MS-सिग्नल इंडिकेटर में गिरावट आने तक कीमत 17170.0 से ऊपर बनी रह सकती है।
अगला अस्थिरता अवधि को यह देखने की जरूरत है कि यह किस तरह की हलचल करेगी अस्थिरता 17-19 नवंबर की अवधि।
(1 ह चार्ट)
चार्ट पर घेरे हुए क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं समर्थन और प्रतिरोध क्षेत्र।
हमें 1D चार्ट पर 5EMA लाइन के चौथे ब्रेकआउट का प्रयास करना बाकी है।
जब 5EMA लाइन के माध्यम से तोड़ने का प्रयास किया जाता है, तो कुंजी यह है कि क्या कीमत 5EMA लाइन से ऊपर रखी जा सकती है।
क्योंकि ऐसा नहीं होने पर और बड़ी गिरावट आ सकती है।
यदि कीमत 1डी चार्ट पर एम-सिग्नल लाइन के नीचे है, तो मुख्य स्थिति ‘शॉर्ट’ है।
इसलिए, ‘लंबी’ स्थिति में प्रवेश करते समय त्वरित प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।
यह देखा जाना बाकी है कि क्या बड़ा अस्थिरता ऊपर वर्णित इस दौरान होगा अस्थिरता अवधि।
यह नहीं भूलना चाहिए कि जब मूल्य आंदोलन धीमा हो रहा है, तो यह आपके स्वामित्व वाले सीसीआई सूचक सिक्के (टोकन) की व्यापारिक रणनीति को संशोधित करने या पूरक करने का एक महत्वपूर्ण समय है।
– बड़ी तस्वीर
मुझे लगता है कि उठने की ताकत पाने के लिए आपको 13K-15K सेक्शन में सपोर्ट करने की जरूरत है।
इसलिए, चाहे वह अपनी वर्तमान स्थिति से उठ रहा हो या गिर रहा हो, एक अल्पकालिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।
ऊपर उठने पर एक पूर्ण अपट्रेंड शुरू होने की उम्मीद है -29 .
** सभी विवरण केवल संदर्भ के लिए हैं और निवेश में लाभ या हानि की गारंटी नहीं देते हैं।
** यदि आप इस चार्ट को साझा करते हैं, तो आप संकेतकों का सामान्य रूप से उपयोग कर सकते हैं।
** एमआरएचएबी-टी सूचक में संकेतक शामिल हैं जो बिंदुओं को इंगित करते हैं समर्थन और प्रतिरोध .
** SR_R_C संकेतक स्टोचआरएसआई (लाइन) के रूप में प्रदर्शित होते हैं, आरएसआई (स्तंभ), और सीसीआई (बीजी रंग)।
** द सीसीआई संकेतक ओवरबॉट सेक्शन में प्रदर्शित होता है ( सीसीआई > +100) और ओवरसोल्ड सेक्शन ( सीसीआई