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विदेशी मुद्रा विकल्प क्या है

विदेशी मुद्रा विकल्प क्या है

एचईसी : वेतन के लाले, फिर भी अधिकारियों ने दीपक जलाए, उजाले की कामना की

रांची, वरीय संवाददाता। भारी अभियंत्रण निगम एचईसी के अधिकारियों का वेतन भुगतान की मांग को लेकर मुख्यालय में आंदोलन मंगलवार को 12 वें दिन भी जारी रहा। एचईसी के स्थापना दिवस पर अधिकारियों ने मुख्यालय के मुख्य द्वार पर दीपक जलाया और निगम और उनके जीवन में उजाला की कामना की। इसके बावजूद प्रबंधन की ओर से स्थापना दिवस को लेकर पहले की तरह किसी तरह से का सर्कुलर नहीं आया। अधिकारियों ने कर्तव्य निर्वहन करते हुए दीपक प्रज्वलित किए।

देश को समर्पित होने के 59 सालों विदेशी मुद्रा विकल्प क्या है के इतिहास में भले ही भारत के मातृ उद्योग ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन कभी भी कंपनी को ऐसे गर्त में नहीं छोड़ा गया, जिसके लिए केवल कमजोर प्रबंधन और मंत्रालय की उदासीनता जिम्मेदार है। अधिकारियों ने कहा कि स्थापना काल 15 नवम्बर 1963 को स्वदेशी रूप से इस्पात संयंत्र उपकरणों के निर्माण की सुविधा के लिए एचईसी देश को समर्पित हुआ था। एचईसी ने विभिन्न क्षेत्रों में विविधीकरण किया और आयात-विकल्प उत्पादों के निर्माण और आपूर्ति के लिए सराहनीय योगदान दिया। निगम के बूते देश को विदेशी मुद्रा की बचत हुई।

प्रोजेक्ट भवन मार्ग को जाम कर 28 को प्रदर्शन करेंगे एचईसी के कामगार

बकाया वेतन भुगतान की मांग को लेकर एचईसी के कामगार 28 नवम्बर को एचईसी मुख्यालय के मुख्य द्वार का घेराव कर सड़क जाम करेंगे। हटिया मजदूर यूनिनय सीटू के आह्वान पर कामगार विरोध प्रदर्शन के क्रम में प्रोजेक्ट भवन सचिवालय मार्ग को जाम कर सड़क पर विरोध-प्रदर्शन करेंगे। इससे पूर्व सभी कामगार अपने प्लांट से निकल कर दिन के दस बजे मुख्यालय पहुंचेंगे। वहीं बी और सी शिफ्ट के कामगार दिन के दस बजे धुर्वा गोलचक्कर पर एकत्र होंगे। वहां से सभी रैली के रूप में मुख्यालय पहुंचेंगे।

इधर, संगठन की ओर से मंगलवार को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती व एचईसी और झारखंड राज्य के स्थापना दिवस पर समारोह का आयोजन किया। संगठन के अध्यक्ष भवन सिंह ने भगवान बिरसा मुंडा के तैल चित्र पर और हरेंद्र यादव ने पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इसके बाद संगठन से जुड़े कामगारों ने भी पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। संगठन के भवन सिंह ने कहा कि नौ माह से बकाया वेतन का भुगतान नहीं हुआ है। बोनस का भी अभी तक पता नहीं है।

भारत की विकास गाथा का हिस्‍सा बन बढ़ाएं अपनी कमाई, बेहतर रिटर्न के लिए चुनें ये विकल्‍प

ऊंची महंगाई के वातावरण के शांत पड़ने (ऊंचे बेस की वजह से), एनर्जी कीमतों में नरमी और कंपनियों की कमाई में शानदार बढ़त भारतीय बाजार के लिए अहम संकेतक हैं.

By: ABP Live | Updated at : 09 Nov 2022 05:01 PM (IST)

"यह सबसे अच्छा समय था, यह सबसे बुरा समय था" चार्ल्‍स डिकेंस के अ टेल ऑफ टू सिटीज की यह शुरुआती पंक्ति है और यह संभवत: बाजार के मौजूदा परिदृश्‍य को सटीक तरीके से बताती है. हमारे सामने तरक्‍की का लंबा रास्‍ता है, लेकिन वैश्‍विक सुस्‍ती, भू-राजनीतिक मसलों, ऊंची ब्‍याज दरों जैसे तमाम मसलों का शोर भी है. भारतीय बाजारों में करीब 18 महीने तक विदेशी मुद्रा विकल्प क्या है की तेजी के बाद पिछले एक साल में मिलाजुला रुख देखा गया. बाजार उतार-चढ़ाव वाला रहा है, लेकिन इसके लिए यह कोई असामान्‍य बात नहीं है. एक एसेट क्‍लास के रूप में देखें तो इक्विटीज यानी शेयरों में ऊंचा जोख‍िम रहता है और इसलिए उतार-चढ़ाव तो इक्विटी निवेश का एक हिस्‍सा है. लेकिन इसमें एक अच्‍छी बात यह है कि जितनी लंबी अवध‍ि तक निवेश बनाए रहें, उतार-चढ़ाव का तत्‍व सीमित होता जाता है. इसलिए दीर्घकालिक रूप में इक्विटी सर्वश्रेष्‍ठ एसेट क्‍लास हैं और लॉन्‍ग टर्म के लिए हम भारतीय बाजारों के लिए सकारात्‍मक बने हुए हैं.

यह सिर्फ इसकी वजह से नहीं है कि एक लंबे समय अवध‍ि में उतार-चढ़ाव का असर सीमित हो जाता है, बल्कि इससे भी ज्‍यादा इस वजह से है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था और यहां के कॉरपोरेट में तरक्‍की की बेहतरीन संभावनाएं हैं, स्‍थायी-मजबूत सरकार और नीतियों का दौर है तथा वैश्विक मंच पर पहले से काफी बेहतर स्थिति (जीडीपी के प्रतिशत में निर्यात सात साल के ऊंचे स्‍तर पर) है. इसके अलावा, हम जबरदस्‍त टैक्‍स कलेक्‍शन, बचत दर में सुधार और भारतीय कंपनियों के बहीखातों में सुधार देख रहे हैं. इन सबकी वजह से निवेश और खर्च की दर भी सुधरती है और अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि दर भी. करीब पांच साल के अंतराल के बाद क्षमता इस्‍तेमाल 75 फीसद तक पहुंच गई है, जिसकी वजह से हम मध्‍यम अवध‍ि में पूंजीगत व्‍यय में सुधार की जमीन तैयार होते देख रहे हैं.

विकसित देशों में कम रहेगा आर्थिक मंदी या सुस्‍ती का असर

अब इस पर बहस की जा सकती है कि खासकर विकसित देशों में मंदी या सुस्‍ती का असर कम रहेगा या व्‍यापक रहेगा, या महंगाई टिकने वाला होगा या कुछ समय के लिए. लेकिन कमोडिटीज और एनर्जी की कीमतों (ऊर्जा आयात का हिस्‍सा जीडीपी के 4 फीसद तक होता है) में कमी आई है जो कुछ राहत की बात है. हम पूरे भरोसे से यह नहीं कह सकते कि मार्जिन का दबाव कम हुआ है, लेकिन यह जरूर कह सकते हैं कि अब चीजें सही दिशा में जा रही हैं, कम से कम कमोडिटी उपभोग के मामले में.

हालांकि, कई ऐसे जोख‍िम हैं जिनका हमें ध्‍यान रखना होगा. पहला, अनिश्चित भू-राजनीतिक परिदृश्‍य और सप्‍लाई चेन की निरंतरता के मसले लंबे समय तक बने रहने वाले हैं. दूसरा, अब करीब एक दशक के कम ब्‍याज दरों और आसान नकदी के माहौल से ऊंची ब्‍याज दरों और नकदी में सख्‍ती वाले माहौल की तरफ बढ़ा जा रहा है. पहले जोख‍िम की वजह से महंगाई न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता है और हमने यह देखा है कि केंद्रीय बैंक सख्‍त मौद्रिक नीतियों से इस पर अंकुश के लिए कोशिश में लगे हुए हैं.

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भारत की आर्थिक स्थिति

भारत में हमें कुछ और समस्‍याओं के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं- विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है, व्‍यापार घाटा ऊंचाई पर है और रुपए में काफी कमजोरी है. महंगाई लगातार ऊंचाई पर बनी हुई है और पिछले करीब तीन तिमाहियों से यह रिजर्व बैंक के 6% के सुविधाजनक स्‍तर से ऊपर है. कई दूसरे देशों के मुकाबले हमने बेहतर प्रदर्शन किया है और हमारी ग्रोथ रेट भी बहुत अच्‍छी है, लेकिन अर्थव्‍यवस्‍था की इस अलग राह या बेहतरीन प्रदर्शन से जरूरी नहीं कि बाजार एक-दूसरे से जुड़े नहीं हों, भले ही प्रदर्शन कितना ही बढ़ि‍या हो. इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि शॉर्ट टर्म में हमारे बाजार भी दूसरे बाजारों के साथ ही चलेंगे.

वैश्विक तरक्‍की विदेशी मुद्रा विकल्प क्या है में मौजूदा अनिश्चिचता के माहौल को देखते हुए बाजारों के लिए मौजूदा साल काफी चुनौतियों वाला हो सकता है. वैश्विक स्‍तर पर और भारत में ऊंची ब्‍याज दरों की वजह से शेयरों के विदेशी मुद्रा विकल्प क्या है वैल्‍युएशन में उस बढ़त पर जोख‍िम आ सकता है, जिसका हाल में भारतीय बाजारों को फायदा मिला है. इसके अलावा भारत के कई राज्‍यों में मानसून अनियमित रहने की वजह से खाद्य महंगाई भी ऊंचाई पर रहने की आशंका है.

किन सेक्‍टर्स में दिख रहे हैं मजबूती के संकेत?

किसी फंड हाउस में हर फंड मैनेजर अपने उत्‍पाद के मैंडेट के मुताबिक निवेश का तरीका अपनाता है. इसी तरह देखें तो हम आमतौर पर वित्‍तीय, औद्योगिक और कंज्‍यूमर डिस्क्रेशनेरी (जिसका नेतृत्‍व ऑटो करता है) सेगमेंट के लिए सकारात्‍मक नजरिया रखते हैं. वित्‍तीय सेगमेंट (खासकर बैंक) अब ऐसी स्थिति में हैं जहां कर्ज की मांग और उसकी उठाव बढ़ रही है और इसके साथ ही बैंकों का बहीखाता सुधरा है, बैंक के पास अच्‍छी पूंजी है. कंज्‍यूमर डिस्क्रेशनेरी सेक्‍टर में हम ऑटो जैसे कुछ सेगमेंट के लिए सकारात्‍मक हैं जहां मंदी के एक दौर के बाद अब सुधार देखा जा रहा है. इनमें कई अच्‍छी चीजें हुई हैं- कच्‍चे माल की कीमतों में नरमी आई है, सप्‍लाई चेन की समस्‍याएं कम हुई हैं और खासकर इलेक्ट्रिक/हाइब्रिड प्‍लेटफॉर्म पर कंपनियों ने नए उत्‍पाद लॉन्‍च किए हैं. हम इस सेक्‍टर को लेकर पॉजिटिव हैं, लेकिन आगे हम चुनींदा शेयरों पर ही भरोसा करेंगे और बॉटम-अप रवैया ज्‍यादा अपनाएंगे.
यह देखते हुए कि हाल के दिनों में इस सेक्‍टर ने बाजार की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है. इंडस्ट्रियल सेक्‍टर की बात करें तो स्‍वदेशीकरण पर जोर देने, मेक इन इंडिया/प्रोडक्‍टशन लिंक्‍ड इनवेस्‍टमेंट स्‍कीम जैसी अनुकूल नीतियों का फायदा मिलेगा. भारत मैन्‍युफैक्‍चरिंग के लिए एक वातावरण तैयार कर रहा है और प्रतिस्‍पर्धी लागत ढांचे से भारत को अपने मैन्‍युफैक्‍चरिंग ताकत को विकसित करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा, वैश्विक स्‍तर पर देखें तो मैन्‍यूफैक्‍चरिंग के लिए चीन पर अत्‍यध‍िक निर्भरता रही है, लेकिन हाल के भू-राजनीतिक घटनाओं की वजह से अब इसमें बदलाव आ सकता है. भारत इस संभावित बदलाव का फायदा उठाने के लिए कदम उठा रहा है.
जब बहस वैल्‍यू और ग्रोथ की होती है तो हम ग्रोथ ऐट रीजनेबल प्राइस (GARP) यानी वाजिब कीमत पर वृद्धि के मध्‍यम मार्ग को पसंद करते हैं. यह निवेश का एक सरल लेकिन प्रभावी सिद्धांत है और समय-समय पर इसका परीक्षण किया जा चुका है. जब हम ग्रोथ के लिए शेयरों में निवेश करते हैं, तो उतना ही अहम यह देखना होता है कि हम ग्रोथ के लिए क्‍या कीमत चुकाते हैं. GARP निवेश के इन दो सिद्धांतों के बीच संतुलन बनाता है और इसलिए आपको दोनों का फायदा मिलता है. बाजार आशावाद और निराशावाद के दो किनारों के बीच घूमता रहता है- जिसमें हम किसी कीमत में बढ़त और साथ में वैल्‍यू को लेकर बहुत ज्‍यादा सतर्कता भी देखते हैं. GARP से इस बात में मदद मिलती है कि हम अतिशय ओवरप्राइसिंग और वैल्‍यू के जाल में फंसने से बचें.

वैश्विक सूचकांकों की तुलना में भारत का प्रदर्शन बेहतर

हमारे शेयरों के वैल्‍यूएशन दायरे में नहीं हैं, संभवत: यह कमाई में अच्‍छी अनुमानित बढ़त का असर हो सकता है. भारत ने ज्‍यादातर वैश्विक सूचकांकों से बेहतर प्रदर्शन तो किया ही है, लेकिन पहली बात- पिछले दो साल में कॉरपोरेट की कमाई में अच्‍छी बढ़त और अगले दो साल में भी बेहतरीन प्रदर्शन की उम्‍मीद और दूसरे- रिजर्व बैंक और सरकार के द्वारा वाजिब तरीके से मैक्रो इकोनॉमिक मैनेजमेंट की वजह से विदेशी मुद्रा विकल्प क्या है भारत दुनियाभर में उतार-चढ़ाव और घबराहट के बीच भी टिककर खड़ा रहा.
लेकिन कई ऐसे जोखि‍म हैं जिनसे भारत पूरी तरह से बच नहीं पाया है. हम बाजारों में समय-समय पर गिरावट या तुलनात्‍मक रूप से खराब प्रदर्शन की बात से इंकार नहीं कर सकते. लेकिन ऐसे हालात आते भी हैं तो वे छोटी अवध‍ि के लिए होंगे और क्षणभंगुर प्रकृति के होंगे. हम यह मान सकते हैं कि भारतीय बाजाार लंबे समय के लिए एक मजबूत निवेश विकल्‍प हैं जिनसे ग्रोथ हासिल की जा सकती है. ऊंची महंगाई के वातावरण के शांत पड़ने (ऊंचे बेस की वजह से), एनर्जी कीमतों में नरमी और कंपनियों की कमाई में शानदार बढ़त भारतीय बाजार के लिए अहम संकेतक हैं. वैश्‍विक घटनाओं और भू-राजनीतिक कार्रवाइयों से होने वाले जोख‍िम बने हुए हैं, फिर भी हमारा मानना है कि भारत बेहतर हालात में है.

(लेखक श्रीनिवास राव रावुरी PGIM इंडिया म्‍यूचुअल फंड के CIO हैं. प्रकाशित विचार उनके निजी हैं. निवेश करने से पहले अपने निवेश सलाहकार की राय अवश्‍य ले लें.)

Published at : 09 Nov 2022 05:01 PM (IST) Tags: banking sector auto sector Stock Market Stock To Invest in Growth Story of India हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

वेतन के लाले, फिर भी अधिकारियों ने दीपक जलाए, उजाले की कामना की

भारी अभियंत्रण निगम एचईसी के अधिकारियों का वेतन भुगतान की मांग को लेकर मुख्यालय में आंदोलन मंगलवार को 12 वें दिन भी जारी रहा। एचईसी के स्थापना दिवस पर अधिकारियों ने मुख्यालय के मुख्य द्वार पर दीपक जलाया और निगम और उनके जीवन में उजाला की कामना की। इसके बावजूद प्रबंधन की ओर से स्थापना दिवस को लेकर पहले की तरह किसी तरह से का सर्कुलर नहीं आया। अधिकारियों ने कर्तव्य निर्वहन करते हुए दीपक प्रज्वलित किए।

देश को समर्पित होने के 59 सालों के इतिहास में भले ही भारत के मातृ उद्योग ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन कभी भी कंपनी को ऐसे गर्त में नहीं छोड़ा गया, जिसके लिए केवल कमजोर प्रबंधन और मंत्रालय की उदासीनता जिम्मेदार है। अधिकारियों ने कहा कि स्थापना काल 15 नवम्बर 1963 को स्वदेशी रूप से इस्पात संयंत्र उपकरणों के निर्माण की सुविधा के लिए एचईसी देश को समर्पित हुआ था। एचईसी ने विभिन्न क्षेत्रों में विविधीकरण किया और आयात-विकल्प उत्पादों के निर्माण और आपूर्ति के लिए सराहनीय योगदान दिया। निगम के बूते देश को विदेशी मुद्रा की बचत हुई।

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एकल प्राथमिक डीलरों को विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार की सभी सुविधाओं की पेशकश की अनुमति पर विचार

नयी दिल्ली, पांच अगस्त (भाषा) एकल प्राथमिक डीलर (एसपीडी) विदेशी मुद्रा बाजार में खरीद-बिक्री से संबंधित सभी सुविधाओं की पेशकश कर सकेंगे। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई ने) देश में वित्तीय बाजार के विकास को सुगम बनाने के लिये शुक्रवार को यह प्रस्ताव किया। फिलहाल श्रेणी-1 के अंतर्गत आने वाले अधिकृत डीलरों को इसकी पेशकश की अनुमति है। इस कदम से ग्राहकों को अपने विदेशी मुद्रा जोखिम का प्रबंधन करने के लिये विभिन्न इकाइयों (मार्केट मेकर्स) का विकल्प मिलेगा। साथ ही इससे भारत में विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार भी मजबूत होगा। एसपीडी बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान होते हैं, जिन्हें सरकारी

फिलहाल श्रेणी-1 के अंतर्गत आने वाले अधिकृत डीलरों को इसकी पेशकश की अनुमति है।

इस कदम से ग्राहकों को अपने विदेशी मुद्रा जोखिम का प्रबंधन करने के लिये विभिन्न इकाइयों (मार्केट मेकर्स) का विकल्प मिलेगा। साथ ही इससे भारत में विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार भी मजबूत होगा।

एसपीडी बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान होते हैं, जिन्हें सरकारी प्रतिभूतियों में लेन-देन की अनुमति होती है।

मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद रिजर्व गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘‘एकल प्राथमिक डीलरों ने देश के वित्तीय बाजारों के विकास विदेशी मुद्रा विकल्प क्या है में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसको देखते हुए उन्हें विदेशी मुद्रा बाजार में खरीद-बिक्री से संबंधित सभी सुविधाओं की पेशकश करने की अनुमति देने का प्रस्ताव है. ।’’

उन्होंने कहा कि इस कदम से ग्राहकों को अपने विदेशी मुद्रा जोखिम का प्रबंधन करने के लिये विभिन्न इकाइयों (मार्केट मेकर्स) के साथ काम करने का विकल्प मिलेगा।

व्यापक स्तर पर मौजूदगी से एसपीडी सरकारी प्रतिभूतियों के मामले में प्राथमिक और विदेशी मुद्रा विकल्प क्या है द्वितीयक बाजार गतिविधियों को समर्थन दे पाएंगे।

दास ने बयान में यह भी कहा, ‘‘एकल प्राथमिक डीलरों (एसपीडी) को सीधे प्रवासी भारतीयों और अन्य से विदेशी मुद्रा निपटान ओवरनाइट इंडेक्स्ड स्वैप (एफसीएस-ओआईएस) लेनदेन की अनुमति दे दी है।

वर्तमान में एकल प्राथमिक डीलरों को सीमित उद्देश्यों के लिए विदेशी मुद्रा व्यापार करने की अनुमति है।

इस साल फरवरी में बैंकों को विदेशी एफसीएस-ओआईएसबाजार में प्रवासियों और अन्य से लेनदेन की अनुमति दी गयी थी।

रुपये में विश्व व्यापार!

रुपये में विश्व व्यापार!

इसमें अब कोई दो राय नहीं है कि आर्थिक मोर्चे पर भारत मौद्रिक क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनने के लिए नवीनतम कदम उठाना चाहता है। इसका रास्ता रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जिस तरह खुला है, उसका उपयोग भारत के अर्थ विशेषज्ञों ने इस प्रकार करने का मन बनाया कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा डालर का विदेश व्यापार से चुनौती रहित रुतबा हल्का किया जा सके और अपनी ही मुद्रा रुपये में द्विपक्षीय देशों के कारोबार में भुगतान व खरीद के लिए प्रयोग किया जा सके। युद्ध शुरू होने पर यूरोपीय देशों व अमेरिका द्वारा रूस के खिलाफ जो आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये गये उनमें सबसे प्रमुख रूस स्थित विदेशी बैंकों में रूसी बैंकों के ‘स्विफ्ट अकाऊंट’ बन्द करना था। इनकी मार्फत रूस विदेशों से आयात-निर्यात कारोबार का भुगतान व जमा पावती डालर मुद्रा में किया करता था। मगर ये अकाउंट बन्द किये जाने के बाद भारत और रूस में अपनी-अपनी मुद्रा रुपये व रूबल में कारोबार शुरू किया गया जिसकी शुरूआत रूस से आयातित कच्चे तेल के कारोबार से हुई और डालर में पावती व भुगतान की शर्त समाप्त हो गई।

भारत के अधिकतर बैंकों में रूसी बैंक के एेसे अकाउंटों या खातों को ‘विशेष रुपये वास्त्रो’ या ‘स्पेशल रुपी वास्त्रों अकाउंट’ एसआरवी अकाऊंट कहा गया। यह जानकारी अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस द्वारा रिजर्व बैंक से पूछे गये सूचना के अधिकार के तहत प्रदान की गई है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत व रूस सीधे रुपये या रूबल में अपना लेन- देन कर सकते हैं और उन्हें इसके लिए डालर की जरूरत नहीं है। हालांकि 1991 तक सोवियत संघ के 15 देशों में बिखर जाने से पहले भारत के साथ इसका कारोबार रुपये-रूबल में ही होता था जिसे ‘एस्क्रू अकाउंट’ कहा जाता था। परन्तु इसके बाद यह व्यवस्था समाप्त हो गई। डालर को अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार की मुद्रा बनाने में अमेरिका ने बहुत मेहनत की और इस देश ने पूरी दुनिया में अपनी आर्थिक ताकत की धाक जमाने में डालर का उपयोग भी जम कर किया। मगर 1974 के आसपास तक विश्व कारोबार के भुगतान की मुद्रा स्वर्ण या सोना ही हुआ करती थी। अमेरिका ने सोने को अपनी मुद्रा डालर से बदलने के लिए सिलसिलेवार काम किया और इसे विश्व की सबसे महंगी मुद्रा बना दिया। इसकी प्रक्रिया द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही अमेरिकी राष्ट्रपति रूडवेल्ट ने शुरू कर दी थी। वह लगातार चार बार अमेरिकी राष्ट्रपति चुने गये थे और 1945 में उनकी मृत्यु पद पर विदेशी मुद्रा विकल्प क्या है रहते हुए ही हो गई थी। उन्होंने लन्दन के ‘स्वर्ण वायदा बाजार’ के भावों पर निगाह रखनी शुरू की और बाद में उन्हें डालर के मुकाबले प्रभावित भी करने के प्रयास किये। रूजवेल्ट के बारे में यह प्रसिद्ध था कि वह सुबह नाश्ते की मेज पर ​बैठते ही लन्दन के सर्राफा बाजार के भावों की समीक्षा शुरू कर देते थे। इसके अमेरिका के अन्य राष्ट्रपतियों ने भी डालर के मुकाबले सोने की कीमतों को नियन्त्रित रखने के प्रयास जारी रखे।

दूसरी ओर डालर के भाव मजबूत करने में अमेरिकी अर्थ शास्त्री लगे रहे जिससे विदेशी बाजारों में डालर की स्वीकार्यता बढ़ती गई और 1974 तक आते-आते सोने के दामों में नरमी का दौर चला जिसकी वजह से डालर अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार में सोने का विकल्प बन गया। इसके बाद डालर ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और अमेरिका की डालर अर्थव्यवस्था पूरी दुनिया पर छा गई। एक समय वह भी आ गया जब सोने के भाव डालर की कीमत से प्रभावित होने लगे। पहले यह प्रक्रिया उलटी हुआ करती थी। परन्तु यूक्रेन से युद्ध छिड़ने के बाद रूस ने यूरोपीय देशों से ही अपनी मुद्रा रूबल में कारोबार शुरू किया। इसने डालर को एक तरफ रखते हुए यह जोखिम लिया और इसमें उसे अब सफलता भी मिल रही है। भारत के सन्दर्भ में यह स्पष्ट होना चाहिए कि जब हम आजाद हुए थे तो हमारे एक रुपये की कीमत इंग्लैंड की मुद्रा पौंड के बराबर हुआ करती थी, डालर के बराबर नहीं और उस समय पौंड डालर से महंगा था। मगर अमेरिका ने सोने के भावों को पहले पौंड से तोड़ा व डालर से बांधी और पौंड को नीचे गिरा दिया तथा पौंड को उल्टे डालर से जोड़ दिया। हालांकि पचास के दशक के शुरू में ब्रिटेन ने डालर से अपनी मुद्रा की समरूपता (पैरिटी) तोड़ी भी मगर वह कामयाब नहीं हो सकी जिसकी वजह से पुनः पौंड डालर से बंध गया। जिससे रुपये की कीमत भी स्वतः डालर से बंध गई। यह जानना इसलिए जरूरी है जिससे हम सोने-डालर व पौंड का अन्तः सम्बन्ध समझ सकें। इसलिए यह बेवजह नहीं है कि भारत में सोने के घरेलू दाम डालर की हवाला दर से जुड़े होते हैं। मगर जहां तक रुपये में कारोबार का सवाल है तो भारत रूस समेत पड़ोसी श्रीलंका, मालदीव समेत अधिसंख्य ​दक्षिण एशियाई व अफ्रीकी देशों के साथ आयात-निर्यात का कारोबार द्विपक्षीय आपसी मुद्रा के जरिये भारत में दूसरे देशों के बैंकों के वास्त्रों अकाउंट खोल कर करना चाहता है। इससे दोनों देशों के बीच सीधे रुपये में ही कारोबार हो सकेगा। कई साल पहले भारत सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में ‘मसाला बांड’ जारी किये थे और ‘रुपी बांड’ भी जारी किये थे। मसाला बांड का भुगतान डालर या रुपये में से किसी में भी हो सकता है और निवेश भी इसी प्रकार हो सकता है। रुपी बांड में निवेश व भुगतान केवल रुपये में ही होगा। सोचने वाली बात यह है कि यदि रुपया कारोबार की स्कीम सफल रहती है तो डालर की कीमत का क्या होगा? जब निर्यात व आयात खरीद बेच केवल रुपये में ही कर सकेंगे और इसकी विनिमय सम्बद्ध देश की मुद्रा में वास्त्रों अकाउंट के जरिये होगा तो डालर की कीमत पर इसका असर पड़े नहीं रहेगा और इसकी मांग घटेगी तथा यह सस्ता भी हो जायेगा।

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