उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है

उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है
करेंसी स्वैप समझौतों के अंतर्गत स्थानीय मुद्राओं में व्यापार करने का प्रावधान किया गया है। दोनों देश आयात एवं निर्यात व्यापार के लिए पूर्व निर्धारित विनिमय दर से भुगतान कर सकते हैं और इस विनिमय के लिए किसी तीसरे देश की मुद्रा जैसे अमेरिकी डॉलर का उपयोग नहीं किया जाएगा। इसलिए, दोनों देशों के केंद्रीय बैंक 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के बराबर धन अपनी घरेलू मुद्राओं में लेने के लिए समझौता करेंगे। इसलिए, यह स्पष्ट है कि भारतीय रिज़र्व बैंक की 393 अरब डॉलर के कोष में बढ़ोतरी होगी (पैसे वापस लेने पर ही ब्याज के साथ शुल्क लिया जाएगा) और इससे भारतीय मुद्रा रुपया मजबूत होगा और इस प्रकार रुपये पर सट्टे (जो इसके मूल्यह्रास के कारणों में से एक था) का दबाव कम होगा। इस तंत्र द्वारा वर्तमान खाता घाटे को कम करने में भी मदद मिलेगी (क्योंकि करेंसी स्वैप में स्थानीय मुद्राओं में व्यापार भी शामिल है)।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट-2018
‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट-2018’ के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह रिपोर्ट यूएनईपी (UNEP) द्वारा वार्षिक रूप से उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है आईयूसीएन (IUCN) से इनपुट के सहयोग से जारी की जाती है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार 1970 से 2014 के बीच वन्यजीव आबादी में लगभग 60% की गिरावट दर्ज की गई है।
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यह रिपोर्ट वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) द्वारा प्रत्येक 2 वर्ष पर जारी की जाती है। इसलिए, कथन 1 गलत है।
- हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पृथ्वी पर्यावरण का दबाव पड़ने के कारण वन्यजीव आबादी में 60% तक की गिरावट आई है और 1970 से अब तक जल भराव वाले क्षेत्र में 87% की गिरावट आई है।
- भारत के संदर्भ में मृदा जैव विविधता की स्थिति सबसे खराब है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद
अर्थशास्त्रियों के बीच यह सामान्य धारणा है कि वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (FSDC) वित्तीय प्रबंधन में असफल रही है अन्यथा कमजोर मुद्रा की स्थिति बेहतर हो सकती थी। वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- ‘रघुराम राजन’ समिति की सिफारिश के बाद 2010 में FSDC की स्थापना हुई थी।
- इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और इसके उपाध्यक्ष वित्त मंत्री हैं।
- इसका मुख्य कार्य विभिन्न नियामकों और नियामकों एवं सरकार के बीच समन्वय बढ़ाना है।
निम्नलिखित कोड में से सही कथन / कथनों का चयन करें
वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद बनाने का विचार पहली बार 2008 में वित्तीय क्षेत्र में सुधार के लिए बनाई गयी रघुराम राजन समिति ने दिया था। केंद्र सरकार ने वित्त मंत्री की अध्यक्षता में दिसंबर 2010 में वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (FSDC) की स्थापना की थी। इसलिए, कथन 2 गलत है और कथन 1 सही है। FSDC की स्थापना का मुख्य उद्देश्य विभिन्न नियामकों और नियामकों एवं सरकार के बीच समन्वय को बढ़ाना था, लेकिन निम्नलिखित समस्याओं के कारणों से यह अपने उद्देश्य में विफल रही है:
- 8 वर्षों में केवल 18 बार FSDC की बैठक हुई है जो कमजोर प्रदर्शन को दर्शाता है।
- नियामकों के बीच मतभेदों को हल करने के लिए एक स्वतंत्र शोध दल होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है।
- इसे स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए और वित्त मंत्रालय के अंतर्गत नहीं रखा जाना चाहिए था।
प्रश्न का उद्देश्य
ये जानकारी प्रारम्भिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं साथ ही मुख्य परीक्षा के लिए भी उपयोगी है। वर्तमान खाता घाटा समस्या, मुद्रा के मूल्यह्रास आदि स्थितियों को रोकने के लिए मामूली सुधार का सुझाव देने संबंधी प्रश्न पुछे जा सकते हैं।
नोट: हाल ही में, एफएसडीसी बैठक आयोजित की गई, इसलिए इस प्रश्न पर ध्यान देना चाहिए।
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उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है
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घाटे की भरपाई के लिए विदेशी कर्ज का रास्ता
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विभिन्न चुनौतियों के बीच 2020-21 का केंद्रीय बजट तैयार किया है। अर्थव्यवस्था में अचानक बड़ी सुस्ती आई है। कर राजस्व अनुमान से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.7 फीसदी कम रहने के आसार हैं। हालांकि इसमें आर्थिक मंदी और वस्तु एवं सेवा कर (उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है जीएसटी) का कितना-कितना योगदान है, उसका आसानी से निर्धारण नहीं किया जा सकता है। सरकार के लगातार चुनाव लडऩे की मुद्रा में होने और प्रधानमंत्री कार्यालय की अत्यधिक सक्रियता की वजह से बजट प्रक्रिया पर राजनीतिक दबाव बरकरार है।
हालांकि सीतारमण ने दिखाया है कि उनके पास उन हित समूहों के लिए समय नहीं है, जो विशेष या किसी क्षेत्र को लाभ देने की मांग कर रहे हैं। लेकिन इस पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है कि इस समय बेहतर रणनीति क्या है- मांग को बढ़ाने के लिए कुछ समय राजकोषीय बाधाओं की अनदेखी की जाए या संकट की इस घड़ी में ढांचागत सुधारों को आगे बढ़ाते हुए राजकोषीय स्थिति को नियंत्रण में रखा जाए।
ऐसा लगता है कि वित्त मंत्री ने अपने सामने मौजूद स्थिति को देखते हुए दोनों विकल्पों के बीच का रास्ता चुना है। कागजों में राजकोषीय नियंत्रण की राह में केवल उतना ही बदलाव किया है, जितना राजकोषीय जिम्मेदारी एïवं बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम) इसकी मंजूरी देता है। हालांकि खर्च को नियंत्रित किया गया है, लेकिन उतना नहीं, जितना राजस्व की किल्लत को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए था। ऐसे बजट को बहस के दोनों पक्षों की तरफ से 'निराशाजनक' कहा जाएगा।
निश्चित रूप से ऐसा लगता है कि शेयर बाजारों ने यह निराशा दिखाई है। शेयर बाजार बजट के दिन खुले थे और उनमें कारोबार हो रहा था। हालांकि यह शनिवार का दिन था। कुछ लोगों ने उम्मीद की होगी कि बड़े राजकोषीय प्रोत्साहनों पर काम हो रहा है, जिनसे उपभोक्ता मांग में फिर सुधार आएगा और कंपनियों की आमदनी में इजाफा होगा। हालांकि मैं इस विचारधारा को लेकर अनिश्चित हूं, जो इस उम्मीद की समर्थक हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि नई जीएसटी प्रणाली में कर चोरी बड़े पैमाने पर हो रही है। अगर इस कर चोरी की वजह से जीएसटी जीडीपी के एक फीसदी तक कम बना हुआ है तो इसका क्या मतलब है? निश्चित रूप से अगर जीडीपी के अनुपात में कर 2017-18 से घट रहा है और जिसकी एक वजह जनता के हाथ में ही अप्रत्यक्ष करों का रहना है तो क्या इसे एक उतने ही बड़े प्रोत्साहन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए?
ऐसे कुछ वाजिब सवाल हैं, जो पूछे जा सकते हैं। क्या राजकोषीय घाटे को वास्तव में नियंत्रित किया गया है और उसे लक्ष्य से कम रखा जाएगा। वित्त मंत्री ने बीते वर्षों की तुलना में ज्यादा पारदर्शिता बरती है। उन्होंने कुछ अतिरिक्त बजट उधारी का खुलासा किया है और यह दिखाया है कि इससे वास्तविक राजकोषीय घाटे में कितनी बढ़ोतरी होगी। हालांकि एक तथ्य यह भी है कि अद्र्ध-सरकारी एजेंसियों की उधारी को इसमें प्रदर्शित नहीं किया गया।
हालांकि अब पहले की तुलना में यह ज्यादा साफ हो गया है कि सरकार की राजकोषीय स्थिति क्या है। यही संभवतया एक वजह है, जिससे बॉन्ड बाजार बजट को लेकर इक्विटी बाजारों से बिल्कुल अलग रुख अपना सकता है। बजट अनुमानों के मुताबिक आगामी वर्ष में सरकार की बाजार उधारी संभावित आंकड़े से कम है। सवाल यह है कि क्या बॉन्ड बाजार प्रतिक्रिया दे पाएंगे। उदाहरण के लिए यह उम्मीद करना कि विदेशी निवेशक भारतीय बॉन्डों को लपक लेंगे, असल में सही नहीं है। क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के मुताबिक उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है इस समय विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की सामान्य श्रेणी की भारतीय प्रतिभूतियां खरीदने की सीमा 2.47 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें से केवल 1.74 लाख करोड़ रुपये यानी करीब 70 उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है फीसदी का इस्तेमाल हो रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले महीने इसका समाधान करने की कोशिश की है। केंद्रीय बैंक ने एफपीआई के कुल निवेश में लघु अवधि की प्रतिभूतियों में लगाए जा सकने वाले अनुपात को बढ़ाया है। हालांकि एचएसबीसी के विश्लेषकों ने कहा है कि बजट की वजह से भारतीय बॉन्डों की मांग में निकट भविष्य में सुधार आने के आसार नहीं हैं। हाल के महीनों में विदेशी निवेशकों ने विशेष रूप से भारत सरकार की प्रतिभूतियों की शुद्ध बिक्री की है।
हालांकि अगर भारतीय बॉन्डों को वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल किया जाता है तो बड़ा फायदा मिलेगा। इससे बड़े पैसिव निवेशक भारत सरकार की घाटों की पूर्ति करेंगे। इसके पीछे यह विचार है कि इससे भारतीय घरेलू संसाधनों पर दबाव कम होगा और सरकार के घाटे को पूरा करने के लिए लघु अवधि की नकदी आवक पर निर्भरता के खतरे को टाला जा सकेगा। निश्चित रूप से यह मौजूदा तरीके राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) पर निर्भरता के बजाय घाटे की भरपाई का बेहतर तरीका होगा। एनएसएसएफ का खर्च के लिए पिग्गी बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जो निश्चित रूप से सतत नहीं है। बजट में कुछ ऐसी घोषणाएं शामिल हैं, जो इस प्रयास से संबंधित लगती हैं। सीतारमण के भाषण में यह वादा भी शामिल है उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है कि 'सरकारी प्रतिभूतियों की कुछ खास श्रेणियों को पूरी तरह प्रवासी निवेशकों के लिए खोला जाएगा।' हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि असल में इसका क्या मतलब है।
एक संबंधित उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है सवाल यह है कि क्या कॉरपोरेट बॉन्डों को फायदा मिलेगा। मुख्य आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने बताया कि कैसे बाइलेटरल नेटिंग के लिए जिस कानून का वादा किया गया है, वह क्रेडिट-डिफॉल्ट स्वैप विकसित करने और इस तरह कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार को मजूबत करने में मददगार साबित हो सकता है। कुछ स्तर पर बॉन्ड और इक्विटी बाजारों पर असर एक साथ दिखेंगे। इस समय भारत सरकार अपने संसाधनों से अधिक खर्च कर रही है। वह तेल विपणन कंपनियों, उर्वरक कंपनियों आदि को बिलों का भुगतान नहीं कर रही है। वह राज्यों को भुगतान में देरी कर रही है। सरकार बजटीय विवेकाधीन और पूंजीगत खर्च को नहीं अपना रही है। केंद्र सरकार का दो-तिहाई खर्च बंधा हुआ है, जिसमें कमी करना मुश्किल है। इस उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है तरह राजस्व घटने का बोझ व्यय के शेष तीसरे हिस्से पड़ता है, जो कम हो रहा है। इसका आम तौर पर वित्तीय बाजारों पर भी असर पड़ता है। पिछले साल यह साफ हो गया था कि डॉलर में कर्ज जारी करने को लेकर अहम प्रतिरोध हो रहा है, इसलिए हम घरेलू वित्तीय बाजारों पर निर्भर हैं। घरेलू वित्तीय बाजारों की घाटे की भरपाई करने की क्षमता उनके आकार पर निर्भर करती है। वहीं घरेलू वित्तीय बाजारों का आकार परिवारों की वित्तीय बचत और विदेश से धन की आवक पर निर्भर करती है। अधिक विनिवेश प्राप्तियों का मतलब है कि इक्विटी बाजार के भागीदारों के पास जुटाने के लिए घरेलू वित्तीय बचतें कम होंगी। घरेलू वित्तीय बचतें जीडीपी की 10 फीसदी हैं।
परंपरागत रूप से बॉन्ड बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों के कारण निजी क्षेत्र पैसा नहीं जुटा पाता है। बहुत से लोगों के विचार से इक्विटी बाजारों में विदेशी भागीदारी ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इसलिए वित्त के कोष को बढ़ाने का एकमात्र तरीका यह बचता है कि डेट बाजार में विदेशी भागीदारी बढ़ाई जाए। असल में सरकार के पास अन्य विकल्प बहुत कम हैं। उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है इस तरह संकट का तात्कालिक असर इस तरह भी दिख रहा है कि सरकार अपने घाटे की भरपाई के लिए विदेशी कर्ज की आवक के रास्ते खोल रही है। इसके बाद दो अहम सवाल बचते हैं। पहला, अगर ऐसे धन की आवक होती है तो रुपये के मूल्य और सुधार के एकमात्र टिकाऊ रास्ते निर्यात में वृद्धि पर क्या असर पड़ेगा? दूसरा क्या इस धन की भारत में आवक को बढ़ाने के प्रयासों में सरकारी खर्च के चैनल पर प्रभावी ध्यान दिया गया है?
मुद्रा विनिमय क्या है और अर्थव्यवस्था को क्या लाभ हैं ? | What is a currency swap and what are the benefits to the economy in hindi ?
विनिमय दर का अर्थ: विनिमय दर का अर्थ दो अलग-अलग मुद्राओं की सापेक्ष कीमत है, अर्थात "एक मुद्रा का मूल्य दूसरे के सापेक्ष"। जिस बाजार में विभिन्न देशों की मुद्राओं का आदान-प्रदान होता है, उसे विदेशी मुद्रा बाजार कहा जाता है।
वर्ष 2018 में, भारत और जापान ने दोनों देशों की मुद्राओं की सापेक्ष अस्थिरता को कम करने के लिए $75 बिलियन के मुद्रा विनिमय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस समझौते का मतलब यह है कि भारत जापान से 75 अरब डॉलर तक का आयात कर सकता है और उसके पास भारतीय रुपये में भुगतान करने की सुविधा होगी. जापान के पास भी ऐसी ही सुविधा होगी, यानी जापान भी येन में भुगतान करके भारत से इतने मूल्य का सामान आयात कर सकता है।
करेंसी स्वैप का शाब्दिक अर्थ है "मुद्रा का आदान-प्रदान"। इसके अर्थ के अनुसार, इस समझौते में दो देश, कंपनियां और दो व्यक्ति आपस में अपने देशों की मुद्रा का आदान-प्रदान करते हैं ताकि उनकी वित्तीय जरूरतों को बिना किसी वित्तीय नुकसान के पूरा किया जा सके।
मुद्रा स्वैप को एक विदेशी मुद्रा लेनदेन माना जाता है और एक कंपनी को इस लेनदेन को अपनी बैलेंस शीट पर दिखाने के लिए कानून की आवश्यकता नहीं होती है। एक मुद्रा स्वैप समझौते में, दो देशों द्वारा एक-दूसरे को दी जाने वाली ब्याज दर फिक्स्ड और फ्लोटिंग दोनों हो सकती है।
1. मुद्रा भंडार में कमी रुकेगी: डॉलर को दुनिया की सबसे मजबूत और सबसे विश्वसनीय मुद्रा माना जाता है, इसीलिए दुनिया भर में इसकी मांग हर समय बनी रहती है और कोई भी देश डॉलर में भुगतान स्वीकार करता है।
डॉलर की सार्वभौमिक स्वीकृति के कारण, जब विदेशी पूंजी भारत से बाहर जाती है या विदेशी निवेशक अपना पैसा वापस लेते हैं, तो वे डॉलर मांगते हैं, जिससे भारतीय बाजार में डॉलर की मांग बढ़ जाती है, जिससे इसका मूल्य भी बढ़ जाता है। ऐसे में आरबीआई को देश के विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर निकालकर मुद्रा बाजार में बेचना पड़ता उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है है, जिससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कम हो जाता है।
यदि भारत के विभिन्न देशों के साथ मुद्रा विनिमय समझौते हैं, तो भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी (डॉलर के साथ विनिमय दर में परिवर्तन के मामले में) बहुत कम होगी।
2. मुद्रा स्वैप का एक अन्य लाभ यह है कि यह विनिमय दर में परिवर्तन से उत्पन्न जोखिम को कम करता है और ब्याज दर जोखिम को भी कम करता है। यानी करेंसी स्वैप एग्रीमेंट अंतरराष्ट्रीय बाजार में करेंसी की कीमतों में उतार-चढ़ाव से राहत देता है।
3. वित्त मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भारत और जापान के बीच मुद्रा अदला-बदली समझौता भारत के पूंजी बाजार और विदेशी मुद्रा को स्थिर करेगा. इस समझौते के बाद भारत जरूरत पड़ने पर 75 अरब डॉलर की पूंजी का इस्तेमाल कर सकता है।
4. जिस देश के साथ मुद्रा अदला-बदली का समझौता होता है, संबंधित देश सस्ते ब्याज पर कर्ज ले सकता है। इस दौरान इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस समय संबंधित देश की मुद्रा का मूल्य क्या है या दोनों देशों के बीच मुद्राओं के बीच विनिमय दर क्या है।
मान लीजिए भारत में कारोबार कर रहे एक कारोबारी रमेश को 10 साल के लिए 10 लाख अमेरिकी डॉलर की जरूरत है। रमेश ने एक अमेरिकी बैंक से $1 मिलियन का ऋण लेने की योजना बनाई, लेकिन फिर उसे याद आया कि यदि उसने आज की विनिमय दर ($1 = रु.70) पर 7 करोड़ का ऋण लिया होता और बाद में रु. की विनिमय दर पर। यदि कोई गिरावट आती है और यह विनिमय दर गिरकर $1 = 100 रुपये हो जाती है, तो रमेश को 10 साल के बाद समझौता पूरा होने पर 7 करोड़ रुपये के ऋण के लिए 10 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा। ऐसे में रमेश को कर्ज लेने से बाजार में उतार-चढ़ाव से 3 करोड़ रुपये का उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है नुकसान हो सकता है।
लेकिन तभी रमेश को एक फर्म से पता चलता है कि अमेरिकी बिजनेसमैन एलेक्स को 7 करोड़ रुपये की जरूरत है। अब रमेश और एलेक्स दोनों एक मुद्रा विनिमय समझौते में प्रवेश करते हैं जिसके तहत रमेश एलेक्स को 7 करोड़ रुपये और एलेक्स को 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर रमेश को देता है। दोनों द्वारा निपटान राशि का मूल्य $1 = रु.70 की विनिमय दर पर बराबर है।
अब रमेश 10 साल के लिए अमेरिकी बाजार में प्रचलित ब्याज दर (मान लीजिए 3%) पर एलेक्स को $ 1 मिलियन पर ब्याज का भुगतान करेगा और एलेक्स रमेश को 10 वर्षों के लिए भारतीय बाजार में प्रचलित ब्याज दर (जैसे 6%) का भुगतान करेगा। . इस हिसाब से 7 करोड़ रुपये का ब्याज दिया जाएगा।
समझौते की परिपक्वता तिथि पर, रमेश एलेक्स को $ 1 मिलियन लौटाएगा और एलेक्स भी रमेश को 7 करोड़ रुपये लौटाएगा। इस प्रकार के विनिमय के लिए किए गए उदाहरण के साथ वित्त में स्वैप क्या है समझौते को मुद्रा विनिमय कहा जाता है।
इस प्रकार, मुद्रा स्वैप की मदद से, रमेश और एलेक्स दोनों विनिमय दर में उतार-चढ़ाव की अनिश्चितता से बचकर अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करते हैं।