विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति

स्वर्ण मानक

स्वर्ण मानक

स्वर्ण मानक в английский

The second diagnostic method is culture, which has historically been the "gold standard" in infectious disease diagnosis.

संभवतया यह स्वर्ण मानक के लौटने के कारण प्रेरित था, जब गृहयुद्ध में दौरान कागज़ की मुद्रा को विराम दे दिया गया था।

It was possibly spurred by return to a gold standard, retiring paper money printed during the Civil War.

सोने का मानक या स्वर्ण मानक एक मौद्रिक प्रणाली है, जिसमें सोने का एक तय वजन मानक आर्थिक मूल्य की इकाई होती है।

A gold standard is a monetary system in which the standard economic unit of account is based on a fixed quantity of gold.

वर्तमान "स्वर्ण मानक" परीक्षण में नमूने से आनुवंशिक पदार्थ को निकालना और वायरस के ज्ञात आनुवंशिक चिन्हकों के लिए इसका विश्लेषण करना शामिल है।

The current "gold standard" test involves extracting the genetic material from the sample and analysing it for known genetic markers of the virus.

१९वीं सदी मे जब दुनिया में सबसे सशक्त अर्थव्यवस्थाएं स्वर्ण मानक पर आधारित थीं तब चाँदी से बने रुपये के मूल्य में भीषण गिरावट आई।

This had severe consequences in the nineteenth century when the strongest economies in the world were on the gold standard.

बाद के विश्लेषण के अनुसार, शीघ्रतापूर्वक जिस देश ने स्वर्ण मानक का त्याग किया, उसने महामंदी से अपनी अर्थव्यवस्था के निजात पाने की विश्वसनीय भविष्यवाणी की।

According to later analysis, the earliness with which a country left the gold standard reliably predicted its economic recovery.

अंततः इस मिस्र के 1885 और 1914 के बीच एक वास्तविक स्वर्ण मानक का उपयोग कर, 1 मिस्री पाउण्ड = 7.4375 ग्राम शुद्ध सोने के बराबर रखा गया।

Eventually this led to Egypt using a de facto gold standard between 1885 and 1914, with E£1 = 7.4375 grams pure gold.

बाद में, सिक्कों के विरोध में कागज मुद्रा जारी करने के साथ, सरकारों ने उन्हें सोने या चांदी (एक स्वर्ण मानक) के लिए प्रतिदेय होने का आदेश दिया।

Later, with the issuing of paper currency as opposed to coins, governments decreed them to be redeemable for gold or silver (a gold standard).

1930 के दशक के प्रारंभ में, फेडरल रिजर्व ने डॉलर की मांग बढ़ाने की कोशिश में ब्याज दरें बढ़ाकर स्वर्ण मानक की तुलना में डॉलर की तय कीमत का बचाव किया।

In the early 1930s, the Federal Reserve defended the dollar by raising interest rates, trying to increase the demand for dollars.

रानी एनी की 1704 की घोषणा के बाद, ब्रिटिश वेस्टइंडीज का सोने का मानक, एक 'निजतः' (डि फैक्टो) स्पेनिश स्वर्ण डब्लून (सोने का सिक्का) सिक्के पर आधारित एक स्वर्ण मानक था।

Following Queen Anne's proclamation of 1704, the British West Indies gold standard was a de facto gold standard based on the Spanish gold doubloon.

शुरूआत में मंचुकाउ युआन को 1 मंचुकाउ युआन = 23.91ग्रा चांदी पर निर्धारित किया गया, लेकिन जापान द्वारा स्वर्ण मानक छोड़ने के बाद 1935 में जापानी येन के प्रति 1:1 दर पर क़ीमत को स्थिर किया गया।

The Manchukuo yuan was initially set at 1 Manchukuo yuan = 23.91 g silver, but became pegged to the Japanese yen at 1:1 in 1935 after Japan left the gold standard.

स्वर्ण मानक के तहत उच्च स्तर की मुद्रास्फीति आम तौर पर युद्ध से अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से के जर्जर हो जाने पर देखी जाती है, जब माल का उत्पादन घट जाता है; या फिर जब सोने का एक बड़ा स्रोत उपलब्ध हो जाता है।

High inflation under a gold standard is seen only when warfare destroys a large part of an economy, reducing the production of goods, or when a स्वर्ण मानक major new gold source becomes available.

एक अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण मानक प्रणाली में (जो सबंधित देशों के आंतरिक स्वर्ण मानक पर आवश्यक रूप से आधारित होता है) सोना या कागजी मुद्रा जो कि एक तय कीमत पर सोने में परिवर्तनीय है, का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय भुगतान करने में एक साधन के रूप में होता है।

In an international gold-standard system (which is necessarily based on an internal gold standard in the countries concerned), gold or a currency that is convertible into gold at a fixed price is used to make international payments.

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अमेरिकी ‘डॉलर’ एक मायाजाल है, अब दुनिया को वापस स्वर्ण मानक पर लौट जाना चाहिए

रूस डॉलर से निर्भरता खत्म करने की ओर कदम बढ़ा चुका है!

डॉलर

रूस-यूक्रेन युद्ध दुनिया के लिए कई मायने में सबक है। कैसे अमेरिका और पश्चिमी देश किसी को भी बढ़ा-चढ़ाकर हलाल होने के लिए छोड़ देते हैं, मौजूदा समय में यूक्रेन से बेहतर इस बात को कोई नहीं समझ सकता। रूस से टकराने के बाद अब यूक्रेन की हालत डांवाडोल हो गई है, लेकिन इससे सिर्फ यूक्रेन की स्वर्ण मानक साख पर ही सवाल उठाना नासमझी होगी, क्योंकि अपने आप को महाशक्ति मानने वाला अमेरिका और दुनिया को हर मामले में फिजूल का ज्ञान देने वाले यूरोपीय यूनियन भी इस प्रकरण के बाद पूरी तरह से बेनकाब हो गए हैं। हालांकि, पश्चिमी देश भारत पर रूस विरोधी रवैया अपनाने के लिए दबाव बना रहे हैं, लेकिन भारत तो भई भारत है, उसे घंटा फर्क नहीं पड़ता कि कौन क्या कह रहा है और किसके हिसाब से चलना है। भारत इस मामले पर अपना तटस्थ रूख अपनाये हुए है। ध्यान देने वाली बात है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मध्य अब रूस डॉलर से अपनी निर्भरता समाप्त करने की ओर कदम बढ़ चुका है, जो अमेरिका की मुश्किलें बढ़ा सकता है।

डॉलर का मायाजाल

दरअसल, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव इन दिनों भारत दौरे पर हैं। अमेरिका द्वारा भारत पर रूस विरोधी रवैया अपनाने का दबाव बनाया जा रहा है, किंतु भारत को अपने पक्ष में रखने के लिए रूस हर तरह की शर्ते मानने को तैयार है। रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि “भारत कुछ भी खरीदना चाहता है तो हम चर्चा के लिए तैयार हैं।” इसके साथ ही दोनों देश रूसी करेंसी यानी रूबल में व्यापार की योजना बना रहे हैं, जिससे डॉलर पर निर्भरता समाप्त की जा सके। ध्यान देने वाली बात है कि डॉलर एक मायाजाल के समान है और इसे हाल ही में TFI समूह के संस्थापक अतुल मिश्रा ने अपने एक ट्वीट में समझाया है।

उन्होंने अपने ट्वीट थ्रेड में लिखा, “आज के समय में कोई भी देश पैसे (Money) का उपयोग नहीं करता है। वे जो उपयोग करते हैं वह मुद्रा (Currency) है। और मुद्रा एक झूठ है, एक जटिल झूठ है। पैसे का एक आंतरिक मूल्य होता है। मुद्रा एक वादा है और वादे बाजार के जोखिमों के अधीन हैं।” यह पूर्णतः सत्य है, आपने मुद्रा “मैं धारक को अमुक राशि देने का वचन देता हूँ” ऐसा पढ़ा होगा।

उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “आइए अपनी घड़ियों को द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक वापस घुमाएँ। दुनिया दो सहस्राब्दियों से ‘स्वर्ण मानक’ का पालन कर रही थी, लेकिन बड़े पैमाने पर युद्ध के खर्च ने स्वर्ण मानक यूरोपीय राष्ट्रों की जेब में बड़ा छेद कर दिया था।” स्वर्ण मानक प्रणाली के अंतर्गत एक देश की मुद्रा का मूल्य सोने की निश्चित मात्रा के अनुसार तय होता है। यदि सोने की सबसे छोटी इकाई एक औंस है और उसका मूल्य 1 डॉलर, तो 5 डॉलर का मूल्य 5 औंस हुआ। इस प्रणाली में कोई देश जितनी मुद्रा जारी करता है, उतनी मुद्रा के मूल्य का सोना रिजर्व में रखना होता है। ऐसा करने पर ही मुद्रा से पैसे यानी currency to money में परिवर्तन होता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद धनवान के रूप में उभरा अमेरिका

अतुल मिश्रा के ट्वीट के मुताबिक, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित एक मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन में मित्र देशों के प्रतिनिधि एकत्र हुए। सम्मेलन का लक्ष्य: युद्ध के बाद वैश्विक वित्तीय स्थिरता लाना था। इस सम्मेलन के बाद ब्रेटन वुड्स प्रणाली सामने आई, जिसमें डॉलर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार का माध्यम बना दिया गया। इस प्रणाली में देशों के बीच गोल्ड एक्सचेंज के स्थान स्वर्ण मानक पर डॉलर एक्सचेंज शुरू हुआ और इस डॉलर की कीमत सोने के मूल्य के अनुपात में रखी गई। अमेरिका इस महायुद्ध में शामिल होने वाला एकमात्र ऐसा देश था जिसने उतनी तबाही नहीं देखी जितनी यूरोप ने देखी थी, वह इस युद्ध के बाद धनवान बनकर सामने आया। सभी देशों ने अपनी अपनी मुद्रा को डॉलर से संबद्ध कर दिया और डॉलर को सोने से सम्बद्ध कर दिया गया। तब एक औंस का मूल्य 35 डॉलर था। अमेरिका को अपने द्वारा जारी डॉलर के मूल्य के बराबर सोना रिजर्व रखना पड़ता था।

उसके बाद अमेरिका ने स्वर्ण मानक अपनी शक्ति के मद में कई देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप शुरू किया। अमेरिका वियतनाम युद्ध में कूद पड़ा, उसे उम्मीद थी कि युद्ध जल्द समाप्त होगा लेकिन युद्ध लम्बा खिंच गया। जिससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव दिखने लगे। अमेरिका की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था से फ्रांसीसी घबरा गए और उन्होंने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद डॉलर के अनुसार अमेरिका से सोने की मांग की, जिससे कल को डॉलर का मूल्य गिरे तो फ्रांस का पैसा सुरक्षित रहे और इस प्रक्रिया में धीरे-धीरे दूसरे देश भी कूद पड़े।

TFI के संस्थापक ने अपने ट्वीट में आगे बताय है कि जब अमेरिका पर दबाव बढ़ने लगा तो तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन ने 15 अगस्त 1971 को डॉलर को फिएट (FIAT) मुद्रा में बदल दिया। फिएट मुद्रा वह मुद्रा है, जिसका निर्धारण किसी भौतिक वस्तु के अनुसार नहीं होता। जैसे सोने चांदी के बदले में जो मुद्रा जारी नहीं की जाती हो वह फिएट मुद्रा है, इसका मूल्य सरकार के साख पर निर्भर करता है। पहले की प्रणाली में राष्ट्रों पर यह दबाव था कि वह जितनी मुद्रा जारी करेंगे, उतनी मात्रा में सोना रखना होगा। लेकिन फिएट मुद्रा ने इस संतुलन को समाप्त कर दिया। पहले ऐसा होता था कि यदि कोई अर्थव्यवस्था खराब प्रदर्शन करती थी, तो सोने का देश से बहिर्गमन होता था। जब अच्छा प्रदर्शन करती थी तो सोना देश में आता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब मुद्रा का निर्धारण दूसरे देशों की मुद्रा के अनुपात में होता है। डॉलर आज भी लेनदेन का आधार है और डॉलर के मामले में हुए बदलाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालते हैं।

अपनी साख पर डॉलर निकालता है अमेरिका

अगर डॉलर का मूल्य गिरता है, तो दूसरे देशों के सेंट्रल बैंक बाजार में हस्तक्षेप करते हैं कि उनके देश पर इसका प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। अगर अमेरिका को पैसों की जरूरत होती है, तो वह अपने फेडरल रिजर्व से लोन मांगता है। फेडरल रिजर्व को पैसे की आवश्यकता होती है तो वह डॉलर छापता है। अमेरिका की सरकार को यह डॉलर मिलते हैं तो वह गवर्नमेंट बांड जारी करती है। इनका वास्तविक मूल्य कुछ भी हो लेकिन दूसरे देश इसमें निवेश करते हैं। क्योंकि अमेरिका के बांड खरीदने का अर्थ हुआ उसे ऋण देना, जो दुनिया में निवेश के लिए सम्भवतः सबसे सुरक्षित कार्य है। अमेरिका को अपने बांड के बदले पैसे मिलते हैं, जिनका प्रयोग युद्धों में होता है और दूसरे देशों के आंतरिक मामलों को प्रभावित करने के लिए चलने वाले NGO आदि को अनुदान दिया जाता है।

अमेरिका अपनी साख पर डॉलर निकालता है, जब आवश्यक हो तब, जितना आवश्यक हो उतना। यह देखने में एक जालसाझी लगती है क्योंकि वास्तव में अमेरिकी डॉलर का मूल्य क्या है, यह कैसे निर्धारित होगा। ऐसे में दुनिया को अब इस पोंजी स्किम से हटना चाहिए और दोबारा गोल्ड स्टैंडर्ड वाली प्रणाली अपनानी चाहिए। दुनिया को पुनः अपने मुद्रा को सोने के अनुसार निर्धारित कर व्यापार अपनी मुद्रा में शुरू करना चाहिए। रूस ने यह निर्णय लिया है और अब दुनिया को भी इस पर आगे बढ़ना चाहिए।

कार्डियक सर्जरी आज भी एक स्वर्ण मानक है : डॉ मनजिंदर सिंह संधू

Ranchi: रांची में शनिवार को हृदय विज्ञान पर एक संगोष्ठी हुआ. इसका आयोजन आर्टेमिस हार्ट सेंटर और राज अस्पताल द्वारा संयुक्त रूप से किया गया. संगोष्ठी में रांची और आसपास के क्षेत्रों के विभिन्न विशिष्टताओं के सौ से अधिक डॉक्टरों ने भाग लिया. संगोष्ठी में मुख्य वक्ता आर्टेमिस कार्डियक केयर के कार्डियक साइंसेज के निदेशक डॉ मनजिंदर सिंह संधू थे. डॉक्टर संधू एंजियोप्लास्टी और कार्डियक सर्जरी में से बंद हृदय वाहिकाओं के इलाज पर चर्चा की.

डॉ मनजिंदर सिंह संधू ने कहा कि अवरुद्ध धमनियों से संबंधित अधिकांश समस्याओं के लिए एंजियोप्लास्टी नया मानदंड बन रहा है. हृदय की धमनियों में कई रुकावटों में कार्डियक सर्जरी आज भी एक स्वर्ण मानक है. आर्टेमिस राज हार्ट सेंटर में कार्डियोलॉजी के प्रमुख डॉ राजेश कुमार झा ने भी अपने विचार दिये. डॉ. झा ने अनियमित दिल की धड़कन को लेकर आईसीडी के महत्व के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि एक इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (ICD) एक छोटा बैटरी से चलने वाला उपकरण है. इसे अनियमित दिल की धड़कन (अतालता) का पता लगाने और रोकने के लिए छाती में लगाया जाता है. एक ICD लगातार दिल की धड़कन की निगरानी करता है. एक नियमित हृदय ताल को बहाल करने के लिए जरूरत पड़ने पर बिजली के झटके देता है.

आर्टेमिस राज हार्ट सेंटर के गैर-इनवेसिव कार्डियोलॉजिस्ट डॉ अविनेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि कम ईएफ वाले मरीजों में दिल की विफलता के इलाज के लिए विभिन्न उपचार प्रोटोकॉल अब उपलब्ध हैं. कॉन्क्लेव बहुत संवादात्मक रहा और स्थानीय चिकित्सक समुदाय ने उपलब्ध विशेषज्ञ पैनल के साथ विभिन्न शंकाओं और भ्रांतियों को दूर किया. उन्होंने आज अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा सामना किए जा रहे सबसे बड़े चिकित्सा मुद्दों में से एक पर इस तरह की सूचनात्मक संगोष्ठी आयोजित करने के लिए आर्टेमिस हार्ट सेंटर और राज अस्पताल की सराहना की.

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