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संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है?

संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है?
डायबिटीज के मरीज नेचुरल तरीके से इंसुलिन का उत्पादन करने वाले फूड्स का सेवन करें।photo-freepik

VASTU TIPS TO BE FOLLWOED IN THE MORNING

लापरवाही ले रही जानें

Updated: January 16, 2015 12:10:06 pm

बूंदी। यह तो बस बानगीभर है। पिकनिक मनाने आने वाले लोगों में से कई के लिए आनंद का यह समय बेवक्त मौत की वजह बन रहा है। पिकनिक स्पॉट्स पर सुरक्षा इंतजामों की कमी हादसों का कारण बन रही है।

अपने प्राकृतिक सौंदर्य के मशहूर जिले के कुछ पिकनिक स्पॉट्स पर बूंदी के साथ ही आसपास के जिलों के लोग भी पिकनिक मनाने आते हैं और जानकारी के अभाव में अपनी जान गंवा रहे हंै। रामेश्वर महादेव, भीमलत महादेव, बरधा बांध में संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? ऎसे हादसों की संख्या अधिक है। पुलिस व जिला प्रशासन की ओर से इन स्थानों पर निगरानी के लिए गार्ड की व्यवस्था तो की जाती है, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रही है। लोग लापरवाही से खतरे के मुंह में जाकर अपनी जान गंवा रहे हैं।

नशा बन रहा एक वजह
जानकारी के अनुसार पिकनिक मनाने के लिए पहंुच रहे लोगों में अधिकांश लोग नशा करके यहां आते हंै। नशे की स्थिति में वे कुंड व बांधों की गहराई तक पहंुच जाते है और जान का खतरा हो जाता है। यहां नशा करने से रोकने के लिए कोई इंतजाम नहीं है। लोग चोरी छिपे नशा कर यहां आ रहे हंै। इस तरह की जांच का यहां कोई प्रबंध नहीं है। बरधा बांध पर तो लोग खुलेआम नशा करते हुए देखे जा सकते हैं।

भारत में अब भी 37 करोड़ लोग गरीब, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट

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भारत में गरीबी में कमी के मामले में सर्वाधिक सुधार झारखंड में देखा गया. वहां विभिन्न स्तरों पर गरीबी 2005-06 में 74.9 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 46.5 प्रतिशत पर आ गयी

इस दौरान खाना पकाने का ईंधन, साफ-सफाई और पोषण जैसे क्षेत्रों में मजबूत सुधार के साथ गरीबी सूचकांक मूल्य में सबसे बड़ी गिरावट आयी है. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और आक्सफोर्ड पोवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (ओपीएचआई) द्वारा तैयार वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) 2019 बृहस्पतिवार को जारी किया गया.

101 देशों के 1.3 अरब लोगों पर अध्ययन
रिपोर्ट में 101 देशों में 1.3 अरब लोगों का अध्ययन किया गया. इसमें 31 न्यूनतम आय, 68 मध्यम आय और दो उच्च आय वाले देश शामिल थे. इन देशों में कई लोग विभिन्न पहलुओं के आधार पर गरीबी में फंसे थे. यानी गरीबी का आकलन सिर्फ आय के आधार पर नहीं बल्कि स्वास्थ्य की खराब स्थिति, कामकाज की खराब गुणवत्ता और हिंसा का खतरा जैसे कई संकेतकों के आधार पर किया गया.

क्या टाइप 1 डायबिटीज मरीजों में इंसुलिन से बढ़ सकता है कैंसर का खतरा? जानिये

क्या टाइप 1 डायबिटीज मरीजों में इंसुलिन से बढ़ सकता है कैंसर का खतरा? जानिये

डायबिटीज के मरीज नेचुरल तरीके से इंसुलिन का उत्पादन करने वाले फूड्स का सेवन करें।photo-freepik

डायबिटीज एक क्रोनिक स्थिति है। यानी एक बार अगर किसी को हो जाए तो यह आमतौर पर हमेशा उसके साथ रहती है। डायबिटीज बेहद खतरनाक बीमारी है जिसमें कई अन्य बीमारियों के होने का जोखिम बढ़ जाता है। डायबिटीज में पैनक्रियाज से निकलने वाला हार्मोन इंसुलिन बहुत कम बनाता है या फिर बनाता ही नहीं है। इंसुलिन नहीं होने के कारण खून में ब्लड शुगर जमा होने लगती है जिसके कारण किडनी, हार्ट, नसें और आंखों से संबंधित बीमारियों होती है। चूंकि टाइप 1 डायबिटीज में इंसुलिन बनता ही नहीं है, इसलिए इस बीमारी से पीड़ित लोगों को इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है। अब सवाल यह है कि क्या इंसुलिन लेने से कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।

इंसुलिन लेने वालों में कैंसर का जोखिम बढ़ा:

हाल ही में जामा स्टडी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों में इंसुलिन का इंजेक्शन लेने के बाद कैंसर के जोखिम को देखा गया है, जो चिंता का विषय है। दरअसल, स्टडी में डायबिटीज मरीजों के पुराने रिकॉर्ड को खंगाला गया। इसमें टाइप संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? 1 डायबिटीज के मरीजों में कैंसर के साथ संबंधों की पड़ताल की गई। अध्ययन में टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित 1303 लोगों के रिकॉर्ड से 28 साल का लेखा जोखा संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? निकाला गया।

अध्ययन में देखा गया कि 28 सालों के दौरान इन मरीजों को किन-किन परेशानियों से गुजरना पड़ा। इसमें स्मोकिंग, अल्कोहल, दवाई, पारिवारिक इतिहास जैसे 150 जोखिमों पर भी बारीक नजर डाली गई। अध्ययन के नतीजे चौंकाने वाले थे। अध्ययन में पाया गया कि 1303 मरीजों में से 93 ने कैंसर का इलाज किया। इसका मतलब यह हुआ कि टाइप 1 मरीजों में से प्रत्येक एक हजार में प्रत्येक साल 2.8 प्रतिशत को कैंसर हुआ। इन 93 मरीजों में 57 महिलाएं थीं और 36 पुरुष थे। इनमें से 8 लोगों को टाइप 1 डायबिटीज के होने के 10 साल के अंदर कैंसर हुआ। इसके बाद 31 लोगों को 11 से 20 साल के अंदर और 54 लोगों को 21 से 28साल के अंदर कैंसर हुआ।

अभी इसे मानना जल्दबाजी:

तो क्या यह मान लिया जाए कि टाइप 1 डायबिटीज मरीजों को कैंसर होने का जोखिम ज्यादा है। वोकहार्ट्ड अस्पताल मीरा रोड के इंटरनल मेडिसीन के डॉ. अनिकेत मुले कहते हैं, डायबिटीज और कैंसर क्रोनिक स्थिति है। पिछले कुछ सालों से इन दोनों बीमारियों का बोझ भारत में बढ़ा है। उन्होंने कहा कि मोटापा डायबिटीज और कैंसर के प्रमुख कारकों में से एक है।

इसके कारण आज दुनिया में अधिकांश लोगों की मौत होती है। हालांकि यह बात सही है कि डायबिटीज कैंसर के होने का प्रमुख संकेतक है। इसके कारण मेटोबोलिज्म में परिवर्तन होता है जिससे कई सारी शरीर में जटिलताएं आती हैं। लेकिन जैसा कि स्टडी में कहा गया कि इंसुलिन इंजेक्शन के कारण कैंसर का जोखिम बढ़ा है, इसे पूरी तरह से सच मान लेना जल्दबाजी होगी।

संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है?

सामान्य तौर पर लोग कहते पाये जाते हैं कि अचानक उनकी छठी इंद्री जाग्रत हो उठी और आसन्न खतरे का संकेत मिलते ही सावधानी के कारण बाल-बाल संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? बच गए.लेकिन क्या हर साधारण व्यक्ति में छठी इंद्री वास्तव में जाग्रत की जा सकती है?


इंद्री के द्वारा हमें बाहरी विषयों - रूप , रस , गंध , स्पर्श एवं शब्द - का तथा आभ्यंतर विषयों - सु:ख दु:ख आदि-का ज्ञान प्राप्त होता है. इद्रियों के अभाव में हम विषयों का ज्ञान किसी प्रकार प्राप्त नहीं कर सकते. इसलिए तर्कभाषा के अनुसार इंद्रिय वह प्रमेय है जो शरीर से संयुक्त , अतींद्रिय (इंद्रियों से ग्रहित न होनेवाला) तथा ज्ञान का करण हो (शरीरसंयुक्तं ज्ञानं करणमतींद्रियम्).

कहा जाता है कि पाँच इंद्रियाँ होती हैं- जो दृश्य , सुगंध , स्वाद , श्रवण और स्पर्श से संबंधित होती हैं. किंतु एक और छठी इंद्री भी होती है जो दिखाई नहीं देती , लेकिन उसका अस्तित्व महसूस होता है. वह मन का केंद्रबिंदु भी हो सकता है या भृकुटी के मध्य स्थित आज्ञा चक्र जहाँ संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? सुषुम्ना नाड़ी स्थित है.

सिक्स्थ सेंस से संबंधित कई किस्से-कहानियाँ किताबों में भरे पड़े हैं. इस ज्ञान पर कई तरह की फिल्में भी बन चुकी हैं और उपन्यासकारों ने इस पर उपन्यास भी लिखे हैं. प्राचीनकाल या मध्यकाल में छठी इंद्री ज्ञान प्राप्त कई लोग हुआ करते थे , लेकिन आज कहीं भी दिखाई नहीं देते तो उसके भी कई कारण संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? हैं.

मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है , उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं , वहीं से सुषुम्ना रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है. सुषुम्ना नाड़ी जुड़ी है सहस्रकार से.

इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है. सुषुम्ना संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? मध्य में स्थित है , अतः जब हमारे दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है. इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है।

छठी इंद्री के जाग्रत होने से व्यक्ति के भविष्य में झाँकने की क्षमता का विकास होता है. अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है. मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकते हैं. किसके मन में क्या विचार चल रहा है इसका शब्दश: पता लग जाता है. एक ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही हासिल की जा सकती है. छठी इंद्री प्राप्त व्यक्ति से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता और इसकी क्षमताओं के विकास की संभावनाएँ अनंत हैं.

वैज्ञानिक कहते हैं कि दिमाग का सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत हिस्सा ही काम करता है। हम ऐसे पोषक तत्व ग्रहण नहीं करते जो मस्तिष्क को लाभ पहुँचा सकें . समस्त वायुकोषों,फेफड़ों और हृदय के करोड़ों वायुकोषों तक श्वास द्वारा हवा नहीं पहुँच पाने के कारण वे निढाल से ही पड़े रहते हैं. उनका कोई उपयोग नहीं हो पाता.

चेकोस्लोवाकिया के परामनोवैज्ञानिक डॉ. मिलान रायजल ने सामान्य व्यक्तियों में अतींद्रिय एवं पराशक्ति जागृत करने के बहुत से सफल प्रयोग किये हैं.इन प्रशिक्षण एवं प्रयोगों में ये शक्तियां सामान्यतः वह सम्मोहन क्रिया द्वारा जागृत करते हैं.

अवसाद से हृदय रोग का जोखिम, खासकर बुजुर्ग महिलाओं के लिए ये है कार्डियोवस्कुलर डिजीज का खास संकेतक

इसके आधार पर रोग से बचाव का उपाय करना हो सकता है आसान

इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने स्पेन में चल रहे छह वर्षीय मल्टी सेंटर रैंडेमाइज्ड ट्रायल के डाटा का इस्तेमाल किया है। इस ट्रायल में 55-75 वर्ष उम्र वर्ग के पुरुषों तथा 60-75 वर्ष उम्र वर्ग की महिलाओं पर भोजन का ओवरवेट के संबंधों की पड़ताल की गई।

वाशिंगटन, एएनआइ। मानसिक स्वास्थ्य का संबंध फिजिकल फिटनेस संकेतकों को फिर से निकालने का खतरा क्या है? से होने की बात तो हमेशा से ही कही जाती रही है। समय-समय पर वैज्ञानिक शोधों से भी इसकी पुष्टि भी होती रही है। अब एक नए शोध में भी बताया गया है कि बुजुर्गो में अवसाद से कार्डियोवस्कुलर (धमनी और हृदय संबंधी) रोगों का जोखिम बढ़ता है।

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