प्रवृत्ति के खिलाफ व्यापार

लखनऊ कमिश्नरेट पुलिस का अब तक का सबसे बड़ा एक्शन 152 गुंडे आउट
लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट में अब तक 152 'गुंडोंÓ को जिले से बाहर का रास्ता दिखाया गया हैै। कमिश्नरेट लागू होने के बाद यह अब तक बड़ी कार्रवाई हैै। अभी तक चुनाव के दौरान ही ज्यादातर गुंडे, बदमाशों या फिर शांति व्यवस्था को प्रवृत्ति के खिलाफ व्यापार बिगाडऩे वालों को चिन्हित कर कार्रवाई की जाती थी, लेकिन पहली बार इतनी बड़ी संख्या में समाज में शांति व्यवस्था बनाए रखने व आदतन अपराध करने की प्रवृत्ति वाले लोगों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें तड़ीपार किया गया है। यह सजा 6 माह तक के लिए लागू रहेगी। इस दौरान जिले के बार्डर या अंदर मिलने पर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भी भेजा जाएगा।
लखनऊ (ब्यूरो)। पुलिस कमिश्नरेट लखनऊ ने कड़ी कार्रवाई करते हुए रविार को अपराध करने वाले 3 मनबढ़ व दबंग व्यक्तियों को उप्र गुंडा नियंत्रण अधिनियम 1970 के तहत पुलिस कमिश्नरेट लखनऊ की सीमा से 6 माह के लिए जिला बदर किया गया है। इसमें मुन्ना (21) पुत्र शमशाद निवासी 652/464 सेक्टर सी सबौली विकासनगर, नीरज पांडेय (30) पुत्र रविन्द्र कुमार पांडेय निवासी सरस्वतीपुरम निकट कामाख्या मंदिर खरगापुर थाना गोमतीनगर विस्तार और श्रवण कुमार साहू (35) पुत्र भवानी भीख साहू निवासी केतन बिहार आलमनगर थाना तालकटोरा पुलिस कमिश्नरेट लखनऊ है।
क्या है गुंडा एक्ट
- गंभीर अपराधियों पर नकेल कसने के लिए उत्तर प्रदेश में गुंडा एक्ट लगाया जाता है
- कमिश्नरेट में डीसीपी स्तर के अधिकारी के पास गुंडा एक्ट लगाने की पावर है
- गुंडा एक्ट में पकड़े गए अपराधियों को आसानी से जमानत नहीं मिल पाती है
- इस एक्ट में अपराधियों की संपत्ति जब्त करने का अधिकार होता है
इन लोगों पर होती है कार्रवाई
मानव तस्करी, मनी लॉडिं्रग, गोहत्या, बंधुआ मजदूरी और पशु तस्करी रोकने के लिए ये एक्ट लगाया जाता है। इसके अलावा जाली नोट, नकली दवाओं का व्यापार, अवैध हथियारों का निर्माण और व्यापार, अवैध खनन जैसे अपराधों पर भी गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई का प्रावधान है।
कार्रवाई का मिला था अधिकार
गुंडा और गैंगस्टर एक्ट दोनों में ही पहले डीएम को कार्रवाई का अधिकार होता था। उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण (संशोधन) विधेयक 2021 विधानसभा में पास हुआ। यह कानून यूपी केपुलिस कमिश्नरेट वाले जिलों में लागू किया गया। चारों पुलिस कमिश्नरेट की व्यवस्था लागू है। पुलिस कमिश्नरेट को मजबूत करने के लिए विधेयक विधानसभा में पास हुआ है। पहले केवल पुलिस कमिश्नर को अधिकार था। अब इस विधेयक के पास होने के बाद डीसीपी को भी गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई की ताकत दे दी गई है।
दो वर्षों में हुई कार्रवाई
वर्ष कार्रवाई
2019-20 89 अपराधी जिला बदर
2020-21 152 अपराधी जिला बदर
एनएसए के तहत कार्रवाई
वर्ष कार्रवाई
2019-20 8 के खिलाफ एनएसए
2020-21 10 के खिलाफ एनएसए की कार्रवाई
दो तीन केस में नहीं होती कार्रवाई
पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर के अनुसार गुंडा एक्ट व जिला बदर की कार्रवाई एक दो मामले में नहीं की जाती बल्कि उस व्यक्ति के खिलाफ की जाती है जो लगातार अपराध में लिप्त हो या फिर प्रवृत्ति के खिलाफ व्यापार उसके द्वारा समाज में भय व्याप्त हो रहा है। उसकी अपराधिक प्रवृत्ति के चलते समाज में शांति भंग की आशंका होती है। ऐसे लोगों को चिन्हित कर पहले उन्हें नोटिस दी जाती फिर कार्रवाई की जाती हैै।
6 प्रवृत्ति के खिलाफ व्यापार माह के लिए किया जाता है तड़ीपार
ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर उन्हें जिले से 6 माह के लिए तड़ीपार किया जाता है। इस समय अवधि पर अगर वह व्यक्ति जिला के बार्डर एरिया को पार कर अंदर आता है तो उसकी गिरफ्तारी कर उसे अधिकतम 60 दिन के लिए जेल भेजा जाता है, उसकी जल्द जमानत भी नहीं होती। जेल से वापस लौटने पर जिला बदर की अवधि को दोबारा पूरा करना पड़ता हैै। वहीं प्रवृत्ति के खिलाफ व्यापार प्रवृत्ति के खिलाफ व्यापार इस दौरान अपराधी को अपने रहने के स्थान के बारे में जानकारी देनी होती है ताकि संबंधित थाने को इसकी जानकारी दी जा सके। साथ ही अपराधी को संबंधित थाने में रोज हाजिरी भी लगानी पड़ती है।
इलेक्शन से पहले बड़ा एक्शन
आमतौर पर कई जिलों में गुंडा एक्ट व जिला बदर की कार्रवाई इलेक्शन के दौरान की जाती है, जिसमें शांति पूर्ण चुनाव कराने व चुनाव में गड़बड़ी फैलाने वालों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है। लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट में इलेक्शन से पहले ही बड़े पैमाने पर जिला बदर कर कार्रवाई की गई है। यह कार्रवाई अपराध पर अंकुश लगाने के लिए की गई है। लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट इलेक्शन के दौरान 107, 16 में पांबद करने की तैयारी कर रही हैै।
लखनऊ कमिश्नरेट में अपराध पर अंकुश लगाने के लिए ऐसे लोगों को चिन्हित कर जिला बदर की कार्रवाई की है जो अपराध में शामिल हैं और लगातार अपराध कर रहे हैं। उनकी वजह से समाज में शांति व्यवस्था बिगडऩे की भी आशंका हैै। इस वर्ष बड़े पैमाने पर जिला बदर की कार्रवाई की गई हैै।-
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राह में अडिग बने रहने की जरूरत: मुद्रास्फीति की निगरानी का सवाल
इस सप्ताह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मुद्रास्फीति के खिलाफ भारत की जंग के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने संकेत दिया कि यह अब ‘खतरे के निशान वाली’ प्राथमिकता नहीं है क्योंकि रोजगार सृजित करने, विकास की रफ्तार को बरकरार रखने और धन का समान वितरण सुनिश्चित करने जैसी बड़ी जिम्मेदारियां सामने हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने पिछले कुछ महीनों में मुद्रास्फीति को कुछ हद तक ‘काबू करने लायक’ स्तर पर लाकर इससे निपटने की अपनी क्षमता दिखाई है। वित्त मंत्रालय को उम्मीद है कि उपभोक्ता मुद्रास्फीति के इस अप्रैल में पिछले आठ साल में सबसे अधिक 7.8 फीसदी के स्तर पर पहुंच जाने के बाद से केंद्रीय बैंक और सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों और जिन्सों की कीमतों में हाल ही में आई गिरावट की वजह से मुद्रास्फीति के दबाव को ‘सीमित’ रखा जा सकेगा। जुलाई माह में 6.71 फीसदी की खुदरा मुद्रास्फीति भले ही एक राहत की बात हो, फिर भी यह असहज रूप से छह फीसदी की आधिकारिक सहिष्णुता सीमा से ऊपर बनी हुई है। देश के ग्रामीण इलाकों में महंगाई दर बहुत तेज रही है। यह वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले चार महीनों में औसतन 7.6 फीसदी और वर्ष 2022 के दौरान सात फीसदी से अधिक रही है। जबकि इन्हीं दो निर्धारित समय-सीमा में कुल औसत उपभोक्ता मुद्रास्फीति दर क्रमशः 7.14 फीसदी और 6.79 फीसदी रही। जहां मुख्य मासिक आंकड़े भावना को प्रभावित करते हैं, वहीं उच्च मुद्रास्फीति का एक लंबा दौर परिवारों की क्षमता और खर्च करने की प्रवृत्ति के लिहाज से बेहद नुकसानदेह है। इससे मांग और उद्योग जगत के नए निवेश को उत्प्रेरित कर सकने वाली विकास की रफ्तार को झटका लग सकता है। अब तक का असमान मानसून ग्रामीण इलाकों में मांग को और कमजोर कर सकता है, क्योंकि धान और दलहन की कम बुआई से उपजी चिंता के कारण हाल के सप्ताहों में इन अनाजों की कीमतों में तेजी दिखाई पड़ी प्रवृत्ति के खिलाफ व्यापार है।
भारतीय रिज़र्व बैंक का मानना है कि भारत में मुद्रास्फीति अपने चरम को छू चुकी है, लेकिन डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा जिन्सों की कम लागत के बावजूद कीमतों में नरमी के ‘स्थायी’ बने रहने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। उनके हिसाब से इसके ऊपर जाने का जोखिम बरकरार है। अब जबकि अगस्त माह के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) का आंकड़ा अगले सप्ताह आने वाला है, कुछ लोगों का मानना है कि यह मुद्रास्फीति को फिर से सात फीसदी के करीब ले जा सकता है। ऐसा आंशिक रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से होगा। खाद्य पदार्थों की कीमतों की सीपीआई में 45 फीसदी की हिस्सेदारी होती है और यह जुलाई माह में पांच महीने के निचले स्तर पर लुढ़क गई थी। खाद्य पदार्थों की कीमतों में फिर से उछाल आने की आशंका है। भले ही हम सब यह उम्मीद करें कि महंगाई का बुरा दौर बीत चुका है, लेकिन अभी चौकसी में ढिलाई बरतना जल्दबाजी होगी। गुरुवार को, सुश्री सीतारमण ने कहा कि अकेले ब्याज दरों में बढ़ोतरी जैसे नीतिगत मौद्रिक उपायों के जरिए मुद्रास्फीति को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। विकास की रफ्तार को बाधारहित बनाने की जरूरत के मद्देनजर उन्होंने भारतीय रिज़र्व बैंक को दुनिया के विकसित देशों के अपने समकक्षों के साथ ‘तालमेल’ नहीं बिठा पाने के लिए उलाहना दिया। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए एक बहुआयामी नजरिया अपनाने पर जोर दिया जाना सही है। इस बहुआयामी नजरिए में बेहतर लॉजिस्टिक्स का बंदोबस्त और गुरुवार की शाम लगाए गए चावल पर निर्यात शुल्क जैसे राजकोषीय एवं व्यापार नीति उपाय शामिल हैं। वित्त मंत्री द्वारा विभिन्न राज्यों की मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियों में व्यापक भिन्नताओं को कोसना और कुछ राज्यों में उच्च मुद्रास्फीति को पेट्रोलियम की कीमतों में कटौती करने में उनकी विफलता से जोड़ना एक संकीर्ण राजनीतिक हथकंडा हो सकता है। लेकिन सरकार को उनके आह्वान पर एक ऐसा तंत्र बनाने में तेजी से जुट जाना चाहिए जहां केंद्र और राज्य एक साथ मिलकर महंगाई से निपटने के उपाय करें। इससे मुद्रास्फीति में फौरी तौर आई नरमी को अधिक कारगर तरीके से टिकाऊ बनाना सुनिश्चित हो सकेगा और इसे भविष्य की नीतिगत प्रतिक्रियाओं को तेज, अधिक सुनिश्चित और समन्वित बनाने के मकसद से जरूरत पड़ने पर दोबारा सक्रिय किया जा सकेगा।
भारत, अवैध दवा व्यापार का एक प्रमुख केंद्र
1997 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) अवैध ड्रग्स और अंतरराष्ट्रीय अपराध के खिलाफ लड़ाई में एक वैश्विक नेता है। UNDOC संयुक्त राष्ट्र ड्रग कंट्रोल प्रोग्राम और सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्राइम प्रिवेंशन के विलय के साथ आया।