भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार

मुद्रा का दबाव

मुद्रा का दबाव
Edited By: India TV Paisa Desk
Published on: August 25, 2022 15:49 IST

देश में विदेशी मुद्रा के पर्याप्त भंडार, ऋण संबंधी दबाव बर्दाश्त करने में सक्षम: एसएंडपी

ग्लोबल रेटिंग्स ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है, जिससे देश ऋण संबंधी दबाव बर्दाश्त करने में सक्षम है। एसएंडपी सॉवरेन एंड इंटरनेशनल पब्लिक फाइनेंस रेटिंग्स के निदेशक एंड्रयू वुड ने वेबगोष्ठी - इंडिया क्रेडिट स्पॉटलाइट-2022 में कहा कि देश का बाह्य बही-खाता मजबूत है और विदेशी कर्ज सीमित है। इसलिए कर्ज चुकाना बहुत अधिक महंगा नहीं है।

वुड ने कहा, ‘‘हम आज जिन चक्रीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, देश ने उनके खिलाफ बफर का निर्माण किया है।’’ उन्होंने कहा कि रेटिंग एजेंसी को नहीं लगता है कि निकट अवधि के दबावों का भारत की साख पर गंभीर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘‘हम चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं।’’

उन्होंने साथ ही जोड़ा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर की गति मध्यम रही है। इस साल अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपये में लगभग सात प्रतिशत की गिरावट आई है, हालांकि रुपये का प्रदर्शन अन्य उभरते बाजारों की तुलना में बेहतर रहा है।

India के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार, लोन का दबाव बर्दाश्त करने में सक्षमः एसएंडपी

India के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार, लोन का दबाव बर्दाश्त करने में सक्षमः एसएंडपी India has enough forex reserves able to bear credit pressure S&P

India TV Paisa Desk

Edited By: India TV Paisa Desk
Published on: August 25, 2022 15:49 IST

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Highlights

  • रेटिंग एजेंसी को नहीं लगता है कि भारत की साख पर गंभीर असर पड़ेगा
  • चालू वित्त वर्ष में जीडीपी में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद
  • रुपये का प्रदर्शन अन्य उभरते बाजारों की तुलना में बेहतर

India के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है, जिससे देश ऋण संबंधी दबाव बर्दाश्त करने में सक्षम है। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने बृहस्पतिवार को यह बात कही। एसएंडपी सॉवरेन एंड इंटरनेशनल पब्लिक फाइनेंस रेटिंग्स के निदेशक एंड्रयू वुड ने वेबगोष्ठी - इंडिया क्रेडिट स्पॉटलाइट-2022 में कहा कि देश का बाह्य बही-खाता मजबूत है और विदेशी कर्ज सीमित है। इसलिए कर्ज चुकाना बहुत अधिक महंगा मुद्रा का दबाव नहीं है। वुड ने कहा, ‘‘हम आज जिन चक्रीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, देश ने उनके खिलाफ बफर का निर्माण किया है।’’

भारत की साख पर गंभीर असर नहीं

उन्होंने कहा कि रेटिंग एजेंसी को नहीं लगता है कि निकट अवधि के दबावों का भारत की साख पर गंभीर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘‘हम चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं।’’ उन्होंने साथ ही जोड़ा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर की गति मध्यम रही है। इस साल अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपये में लगभग सात प्रतिशत की गिरावट आई है, हालांकि रुपये का प्रदर्शन अन्य उभरते बाजारों की तुलना में बेहतर रहा है।

पाकिस्तान की रेटिंग घटाकर ‘नकारात्मक’ की थी

रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल ने पाकिस्तान की दीर्घकालिक रेटिंग को ‘स्थिर’ से घटाकर ‘नकारात्मक’ कर दिया था। नकदी की कमी से जूझ रहा यह देश भारी महंगाई, रुपये की कीमत में गिरावट और सख्त वैश्विक वित्तीय दशाओं से जूझ रहा है। न्यूयॉर्क स्थित एजेंसी ने पाकिस्तान पर अपनी रेटिंग लंबी अवधि के लिए ‘बी ऋणात्मक’ और छोटी अवधि के लिए ‘बी’ तय की थी। एजेंसी ने एक बयान में कहा, ‘‘वस्तुओं की ऊंची कीमतों, सख्त वैश्विक वित्तीय दशाओं और कमजोर रुपये के चलते पाकिस्तान की वाह्य स्थिति कमजोर हुई है।’’ एजेंसी ने कहा कि अगर पाकिस्तान के बाह्य संकेतकों में गिरावट जारी रहती है, तो वह अपनी रेटिंग कम कर सकता है, लेकिन अगर इसकी बाह्य स्थिति स्थिर हो जाती है और इसमें सुधार होता है तो इसे स्थिर के रूप में संशोधित किया जा सकता है। नकारात्मक दृष्टिकोण अगले 12 महीनों के दौरान बाह्य क्षेत्र में पाकिस्तान की नकदी स्थिति के बढ़ते जोखिमों को दर्शाता है।

मुद्रा दबाव: डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्यह्रास पर

प्रमुख प्रतिस्पर्धियों के साथ रुपया फिर से नए दबाव का सामना कर रहा है, क्योंकि फेडरल रिजर्व के नवीनतम जंबो 75 आधार मुद्रा का दबाव अंकों की ब्याज दर में वृद्धि और अमेरिकी केंद्रीय बैंक के स्पष्ट संदेश के मद्देनजर डॉलर में मजबूती जारी है कि यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर पूरी तरह केंद्रित है। . भारतीय मुद्रा शुक्रवार के इंट्राडे ट्रेड में पहली बार डॉलर के मुकाबले 81 अंक के पार कमजोर हुई, इससे पहले सप्ताह के अंत में एक नया रिकॉर्ड बंद हुआ। भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से अस्थिरता को कम करने के लिए रुपये की गिरावट को नरम किया गया था; 16 सितंबर से 12 महीनों में इस तरह के हस्तक्षेपों के संचयी प्रभाव ने आरबीआई के विदेशी मुद्रा भंडार के युद्ध की छाती को लगभग 94 अरब डॉलर से घटाकर 545.65 अरब डॉलर कर दिया है। तथ्य यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट अकेले नहीं है, भारतीय कंपनियों को अपने कारोबार के सुचारू कामकाज के लिए कच्चे माल या सेवाओं के आयात पर निर्भर होने से थोड़ा आराम मिल सकता है। वे ऐसे समय में बढ़ती लागत का सामना करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं जब घरेलू मांग अभी भी एक टिकाऊ महामारी के बाद की स्थिति हासिल करने के लिए है। उच्च आयात बिल भी एक अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के दबाव को जोड़ने के लिए बाध्य है जो पहले से ही लगातार बढ़ी हुई मुद्रास्फीति से घिरी हुई है और मूल्य लाभ पर लगाम लगाने के लिए मौद्रिक नीति निर्माताओं के प्रयासों को और जटिल बनाती है।

2022 में अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये का 8% से अधिक मूल्यह्रास, 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के मद्देनजर लगभग सभी कमजोरियों के साथ, इस तथ्य से होने वाले लाभ को भी काफी हद तक ऑफसेट कर दिया गया है कि कीमत कच्चे तेल की भारतीय बास्केट अब काफी हद तक पीछे हट गई है और अपने युद्ध-पूर्व स्तरों के करीब है। अगस्त में और इस महीने के अधिकांश समय के लिए स्थानीय परिसंपत्तियों की खरीद फिर से शुरू करने के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भी पिछले दो सत्रों में एक बार फिर भारतीय शेयरों और ऋण के शुद्ध विक्रेता बन गए हैं। नतीजतन, अब तक 2022 में, एफपीआई ने कुल निवेश के तीन सीधे वर्षों के बाद कुल 20.6 बिलियन डॉलर की भारतीय इक्विटी और ऋण को छोड़ दिया है। और फेड के कम से कम 125 आधार अंकों की और अधिक मौद्रिक सख्ती का अनुमान, केवल इस वर्ष की अंतिम तिमाही में अधिक बहिर्वाह की ओर ले जाने की संभावना है। रुपये की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर), या इसके मूल्य के व्यापार-भारित औसत के साथ, यह भी संकेत देता है कि भारतीय मुद्रा अभी भी अधिक है, आरबीआई के दर निर्धारण पैनल के पास अगले सप्ताह चलने के लिए एक अच्छा कसना होगा क्योंकि यह एक को बहाल करने के लिए संघर्ष करता है। विकास को रोके बिना मूल्य स्थिरता की झलक और यह सुनिश्चित करना कि रुपया बहुत तेजी से कमजोर न हो।

भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार, ऋण संबंधी दबाव बर्दाश्त करने में सक्षम: एसएंडपी

नयी दिल्ली, 25 अगस्त (भाषा) एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है, जिससे देश ऋण संबंधी दबाव बर्दाश्त करने में सक्षम है। एसएंडपी सॉवरेन एंड इंटरनेशनल पब्लिक फाइनेंस रेटिंग्स के निदेशक एंड्रयू वुड ने वेबगोष्ठी - इंडिया क्रेडिट स्पॉटलाइट-2022 में कहा कि देश का बाह्य बही-खाता मजबूत है और विदेशी कर्ज सीमित है। इसलिए कर्ज चुकाना बहुत अधिक महंगा नहीं है। वुड ने कहा, ‘‘हम आज जिन चक्रीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, देश ने उनके खिलाफ बफर का निर्माण किया है।’’ उन्होंने कहा कि रेटिंग एजेंसी को नहीं

एसएंडपी सॉवरेन एंड इंटरनेशनल पब्लिक फाइनेंस रेटिंग्स के निदेशक एंड्रयू वुड ने वेबगोष्ठी - इंडिया क्रेडिट स्पॉटलाइट-2022 में कहा कि देश का बाह्य बही-खाता मजबूत है और विदेशी कर्ज सीमित है। इसलिए कर्ज चुकाना बहुत अधिक महंगा नहीं है।

वुड ने कहा, ‘‘हम आज जिन चक्रीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, देश ने उनके खिलाफ बफर का निर्माण किया है।’’

उन्होंने कहा कि रेटिंग एजेंसी को नहीं लगता है कि निकट अवधि के दबावों का भारत की साख पर गंभीर असर पड़ेगा।

उन्होंने कहा, ‘‘हम चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं।’’ उन्होंने साथ ही जोड़ा कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर की गति मध्यम रही है।

इस साल अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपये में लगभग सात प्रतिशत की गिरावट आई है, हालांकि रुपये का प्रदर्शन अन्य उभरते बाजारों की तुलना में बेहतर रहा है।

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अर्थव्यवस्थाः साख पर लगा बट्टा

मूडीज ने रेटिंग घटाकर भारत को सबसे निचली निवेश श्रेणी में खड़ा कर दिया है और भारत के बारे में नजरिया एसऐंडपी और फिच जैसी एजेंसियों की तरह कर लिया है

इलस्ट्रेशनः सिद्धांत जुमडे

एम.जी. अरुण

  • नई दिल्ली,
  • 12 जून 2020,
  • (अपडेटेड 12 जून 2020, 3:08 PM IST)

सरकारी और व्यावसायिक इकाइयों के बॉन्ड की रेटिंग करने वाली मूडीज इन्वेस्टर सर्विसेज ने 1 जून को भारत की विदेशी मुद्रा और स्थानीय मुद्रा में दीर्घकालिक इशूअर रेटिंग एक अंक घटाकर 'बीएए2' से 'बीएए3' कर दिया है और यह भी कहा है कि नजरिया 'नकारात्मक' बना हुआ है. यह मूडीज के आकलन में निवेश के मामले में सबसे निचली रेटिंग है. बॉन्ड की क्रेडिट रेटिंग कॉर्पोरेट या सरकारी हुंडियों की साख का पता चलता है.

रेटिंग घटाने की वजह मूडीज ने 2017 से आर्थिक सुधारों पर कमजोर अमल, लगातार अपेक्षाकृत कमतर आर्थिक वृद्धि दर, सरकारों (केंद्र और राज्य) की काफी पतली वित्तीय हालत, और देश के वित्तीय क्षेत्र पर बढ़ते दबाव को बताया है.

मूडीज के भारत की रेटिंग को घटाकर बीएए3 करने से वह स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स (एसऐंडपी) और फिच की रेटिंग (बीबीबी-) के बराबर आ गई है, जो 'कचरा' वाली स्थिति से एक अंक ही ऊपर है. मूडीज ने नवंबर 2019 में ही 'नकारात्मक' नजरिया जाहिर कर दिया था, जो आज भी कायम है, जबकि एसऐंडपी और फिच का भारत के बारे में नजरिया फिलहाल 'स्थिर' बना हुआ है.

एडेलवाइस सेक्यूरिटीज की प्रमुख अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा कहती हैं, ''हमारी राय में यह तो होना ही था कि मूडीज रेटिंग घटाए और यह मोटे तौर पर मुद्रा का दबाव यह बाजारों की ही स्थिति है. इसलिए विदेशी मुद्रा और रेट मार्केट में कोई अचानक उछाल थोड़े समय के लिए ही रहने की संभावना है.'' वाकई, शेयर बाजारों ने रेटिंग घटाए जाने को तवज्जो नहीं दी क्योंकि इसे पहले से इसकी उम्मीद थी. दरअसल, 2 जून को बॉम्बे शेयर बाजार का सेंसेक्स 522 अंक बढ़कर 33,826 पर पहुंच गया. दुनिया भर के बाजारों का रुझान सकारात्मक था, क्योंकि लंबे लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्थाएं खुल रही थीं.

अरोड़ा के मुताबिक, बड़ा खतरा एसऐंडपी और फिच की रेटिंग में कमी की संभावना है. अरोड़ा कहती हैं, ''उनकी 'कचरा' श्रेणी की रेटिंग से नीचे होना बड़ा जोखिम (बाजारों के लिए) हो सकता है, लेकिन इससे पहले उनका नजरिया मौजूदा 'स्थिर' से 'नकारात्मक' होगा, जो अमूमन बड़ी बात होती है.'' केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का कहना है कि रेटिंग घटाए जाने का वक्त ''थोड़ा सही नहीं है'' क्योंकि कई देशों में असामान्य स्थितियां हैं. हालांकि सरकार को रेटिंग एजेंसियों की चिंताओं पर गौर करने की जरूरत है. सबनवीस कहते हैं, ''भारत सरकार पर इसका असर नहीं होगा क्योंकि वह विदेशी बाजारों से रकम नहीं उठाती. यह साख का सवाल है. लेकिन बाहर के व्यावसायिक बाजारों से रकम उठाने वाली भारतीय कंपनियों के लिए फंड की लागत बढ़ जाएगी.''

रेटिंग घटने का यह वाकया उसी वक्त हुजा, जब वित्त वर्ष 2020 की चौथी तिमाही के जीडीपी आंकड़े आए. चौथी तिमाही में वृद्धि दर घटकर 3.1 फीसद पर आ गई, जो 17 साल में नहीं दिखी थी. यानी निजी निवेश और मैन्युफैक्चरिंग में काफी गिरावट है. यह मंदी इस तथ्य के मद्देनजर काफी अहम है कि कोविड संक्रमण की रोकथाम के लिए लॉकडाउन तो मार्च में गिने-चुने दिनों तक ही थी. इससे जाहिर होता है कि वृद्धि दर घटने की वजहें लॉकडाउन के अलावा दूसरी थीं. वे वजहें अभी दूर नहीं हुई हैं और लॉकडाउन की रुकावटों के अलावा वे वजहें भी वृद्धि दर को नीचे खींचती रहेंगी.

मूडीज की रेटिंग घटाने के क्रम में इन कुछ गहरी वजहों की ओर इशारा किया गया है. पिछली कुछ तिमाहियों से वृद्धि दर गोता लगाती जा रही है. वित्त वर्ष 2020 की तीसरी तिमाही में देश की जीडीपी वृद्धि दर 4.5 फीसद थी जबकि दूसरी तिमाही में 4.8 फीसद. पर चौथी तिमाही में हालात बदतर हो गई. केयर रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ''वित्त वर्ष 2020 की चौथी तिमाही में सभी प्रमुख क्षेत्रों में वृद्धि की कुल रफ्तार धीमी हुई है.'' सरकारी क्षेत्र को ही इस तिमाही में आर्थिक उत्पादन और मांग को बढ़ावा देता देखा गया और वह मैन्युफैक्चरिंग तथा निर्माण जैसे क्षेत्रों में नकारात्मक वृद्धि के दौर में कुछ साज-संभाल करता दिखा.

हाल की तिमाहियों में एक अहम समस्या मांग में भारी गिरावट रही है. सरकार के हाल के दौर में उठाए ज्यादातर कदम (केंद्रीय बजट की घोषणाओं सहित) आपूर्ति पक्ष के लिए रहे हैं. खर्च या निवेश करने की कोई ख्वाहिश नहीं दिखती. अर्थव्यवस्था का इंजन माने जाने वाली निजी खपत (जो जीडीपी का 60 फीसद है) पिछले साल चौथी तिमाही में 6.2 फीसद से घटकर वित्त वर्ष 2020 की चौथ तिमाही में 2.7 फीसद पर आ गई. इस चौथी तिमाही में 6.5 फीसद की तेज सिकुडऩ देखी गई. केयर रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ''इससे आशंका होती है कि देश वायरस के प्रकोप की रोकथाम में नाकाम रहा तो आने वाले महीनों में घरेलू अर्थव्यवस्था की हालत बेहद बुरी होने वाली है.'' वैसे, सरकार की खर्च और कृषि की वृद्धि से भी मदद मिली.

लगातार अधिक सरकारी खर्च से एक समस्या यह है कि सरकार का वित्तीय गणित गड़बड़ा सकता है. आखिर, वित्त वर्ष 2020 में देश का राजकोषीय घाटा सरकार के 3.8 फीसद के संशोधित लक्ष्य को पीछे छोड़कर 4.6 फीसद पर पहुंच गया. यही नहीं, सरकारी राजस्व में कमी की वजह से वित्त वर्ष 2021 के 7.96 लाख करोड़ रु. राजकोषीय घाटे के लक्ष्य का 35 फीसद तो अप्रैल महीने में ही हो गया. लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था थमी तो सरकारी राजस्व में भारी गिरावट आई है. सरकार को अप्रैल महीने में कुल राजस्व प्राप्ति 21,412 करोड़ रु. हुई जो पिछले साल में अप्रैल के मुकाबले 70 फीसद कम है. ये तमाम मुद्दे आने वाले दिनों में दुश्वारियों की आशंका जता रहे हैं.

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