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Best Credit Card in India 2022-23, बेस्ट क्रेडिट कार्ड इन इंडिया
क्रेडिट कार्ड का अधिक से अधिक लाभ उठाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप ऐसे कार्ड का चयन करें जो आपकी खर्च करने की शैली और जीवनशैली के अनुकूल हो। हालांकि, सभी उपलब्ध विकल्पों में से सिर्फ एक क्रेडिट कार्ड चुनना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हमने विभिन्न कार्ड जारीकर्ताओं से भारत में उपलब्ध शीर्ष 10 क्रेडिट कार्डों की एक सूची तैयार की है, इसके बाद प्रत्येक श्रेणी में शीर्ष क्रेडिट कार्ड, जिनमें पुरस्कार, कैशबैक, पुरस्कार, यात्रा और प्रीमियम सुविधाओं वाले कार्ड शामिल हैं।
2022-23 के लिए शीर्ष 10 भारतीय क्रेडिट कार्ड
टॉप 10 क्रेडिट कार्ड | वार्षिक शुल्क | बसे उपयुक्त | सर्वश्रेष्ठ विशेषता |
एक्सिस बैंक ऐस क्रेडिट कार्ड | रु. 499 | कैशबैक | बिल भुगतान, डीटीएच और मोबाइल रिचार्ज पर 5% कैशबैक |
एसबीआई कार्ड एलीट | रु. 4,999 | खरीदारी, यात्रा और फिल्में | वेलकम ई-गिफ्ट वाउचर; क्लब विस्तारा और ट्राइडेंट प्रिविलेज सदस्यता; मानार्थ मूवी टिकट |
एचडीएफसी रेगलिया क्रेडिट कार्ड | रु. 2,500 | यात्रा और खरीदारी | मानार्थ लाउंज का उपयोग; 4 इनाम अंक प्रति रु। 150 खुदरा खर्च पर खर्च किए गए |
फ्लिपकार्ट एक्सिस बैंक क्रेडिट कार्ड | रु. 500 | ऑनलाइन शौपिंग | वेलकम बेनिफिट के तौर पर फ्लिपकार्ट वाउचर; फ्लिपकार्ट और मिंत्रा पर 5% कैशबैक |
अमेज़न पे आईसीआईसीआई क्रेडिट कार्ड | Nil | ऑनलाइन शॉपिंग और कैशबैक | Amazon के खर्च पर 5% तक का कैशबैक |
सिटी प्रीमियर माइल्स क्रेडिट कार्ड | रु. 3,000 | ट्रेवल | एयरलाइन लेनदेन पर 10X रिवार्ड पॉइंट तक |
एचडीएफसी मिलेनिया क्रेडिट कार्ड | रु. 1,000 | क्श्बैक | पार्टनर ब्रांड्स पर 5% तक कैशबैक |
स्टैंडर्ड चार्टर्ड डिजीस्मार्ट क्रेडिट कार्ड | रु. 49 per month | ऑनलाइन शौपिंग | पार्टनर ब्रांड्स पर 20% तक की छूट |
बीपीसीएल एसबीआई कार्ड ऑक्टेन क्रेडिट कार्ड | रु. 1,499 | फ्यूल | बीपीसीएल पेट्रोल पंपों पर खर्च किए गए ईंधन पर 7.25% वैल्यू बैक |
एचडीएफसी बैंक डायनर्स क्लब प्रिविलेज क्रेडिट कार्ड | रु. 2,500 | यात्रा और जीवन शैली | अमेज़न प्राइम, एमएमटी ब्लैक, डाइनआउट पासपोर्ट आदि की मानार्थ सदस्यता |
ऊपर बताए गए भारत में शीर्ष 10 क्रेडिट कार्डों के अलावा सबसे बड़े क्रेडिट कार्ड कई क्रेडिट कार्ड श्रेणियों में भिन्न होते हैं। इसके अलावा, हमने निम्नलिखित श्रेणियों में भारत में शीर्ष 25 क्रेडिट कार्डों की एक सूची एक उच्च समय सीमा की तुलना करें प्रदान की है: पुरस्कार, कैशबैक और खरीदारी, यात्रा, ईंधन और प्रीमियम। हमने कार्ड के मुख्य फायदों, हमारी सिफारिशों के कुछ औचित्य और प्रत्येक श्रेणी के लिए भारत में सर्वश्रेष्ठ क्रेडिट कार्ड पर चर्चा की है।
भारत में सर्वश्रेष्ठ कैशबैक क्रेडिट कार्ड Best Cashback Credit card in India
यहां शीर्ष क्रेडिट कार्ड हैं जो कुछ विशिष्ट कंपनियों के साथ-साथ अन्य सभी ऑनलाइन खरीद पर ऑनलाइन खरीदारी पर सम्मानजनक कैशबैक प्रदान करते हैं।
1. Axis Bank Ace Credit Card, एक्सिस बैंक ऐस क्रेडिट कार्ड
जोइंनिंग फी : रु. 499, एनुअल फी रु. 499
कम वार्षिक शुल्क पर उच्च कैशबैक दर चाहने वाले पहली बार कार्डधारकों के लिए, एक्सिस बैंक ऐस क्रेडिट कार्ड एक शानदार विकल्प है। हवाई अड्डे के लाउंज तक पहुंच और डाइनिंग छूट जैसे अतिरिक्त लाभों के अलावा, कार्ड बिल भुगतान और ऑनलाइन भोजन वितरण पर 5% तक कैशबैक प्रदान करता है। तथ्य यह है कि इस कार्ड से आप कितना कैशबैक कमा सकते हैं, इसकी कोई सीमा नहीं है, यह इसकी सबसे मजबूत विशेषता है।
एक्सिस बैंक ऐस क्रेडिट कार्ड के बेनिफिट्स
कब तक धर्म विशेष के कानून से शोषण होता रहेगा
आजादी के अमृत महोत्सव मना चुके भारत देश के सभी धर्मों के नागरिकों के लिये एक समान धर्मनिरपेक्ष कानून होना चाहिए। संविधान के संस्थापकों ने राज्य के नीति निदेशक तत्वों के माध्यम से इसको लागू करने की जिम्मेदारी बाद की सरकारों को हस्तांतरित कर दी थी। लेकिन पूर्व सरकारों ने वोट बैंक के चलते समान नागरिक संहिता को लागू नहीं होने दिया, अब भारतीय जनता पार्टी एवं नरेन्द्र मोदी सरकार इस बड़ी विसंगति को दूर करने के लिये तत्पर हुई है, जिसके लागू होने से देश सशक्त होगा। विडम्बना है कि मुस्लिम समुदाय को उनके शरीयत कानून से अनेक ऐसे अधिकार मिले हुए हैं, जो मानवता के विपरीत है, मानव मूल्यों एवं भारत संविधान का हनन है। यह कानून एक मुस्लिम पुरुष को अपनी मौजूदा पत्नियों की सहमति के बिना चार विवाह करने की अनुमति देता है, वहीं बाल-विवाह एवं यौन शोषण को जायज मानता है। जबकि देश में बाल विवाह कानूनन अपराध है। केरल हाईकोर्ट ने एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए समान कानून संहिता को लागू किया है।
लड़की की शादी 18 साल बाद और लड़के की शादी 21 साल के बाद ही की जा सकती है। यदि इस उम्र सीमा से कम उम्र के लड़के या लड़की की शादी की जाती है, तो शादी अवैध घोषित मानी जाती है। इतना ही नहीं बाल विवाह कराने वालों को जेल भी हो सकती है। इसी तरह यौन शोषण का मामला है। बाल विवाह एवं यौन शोषण दोनों ही अपराध है। जाहिर है कि बच्चे चाहे जिस भी धर्म के हों, उनके खिलाफ होने वाले अपराधों को समान नजर से देखना और बरतना एक स्वाभाविक कानूनी प्रक्रिया है। नाबालिग बच्चों को उनके खिलाफ यौन अपराधों और शोषण से सुरक्षा देने के लिए पाक्सो कानून बनाया गया। लेकिन भारत में मुस्लिमों के लिए शरीयत कानून को भी मान्यता मिली हुई है जिसके कारण बच्चों पर हो रहे अपराधों पर दोयम दर्जा अपनाया जाता है, इसको लेकर कई बार सामुदायिक परंपराओं के लिहाज से भी इस प्रावधान की प्रासंगिकता को कसौटी पर परखने की कोशिश की जाती है।
केरल उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के बाद इसी द्वंद्व एवं दोहरे नजरिये पर स्पष्ट राय दी है, जिसमें किसी धर्म के तहत बनाए गए अलग नियम के मुकाबले पाक्सो कानून को न्याय का आधार बनाया गया है। यह एक अनूठी पहल है जिसमें पाक्सो कानून को धर्म नहीं, इंसान को एक ही नजर से देखने का उपक्रम है। यही इंसाफ का तकाजा है और उसकी बुनियाद है।
केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि मुस्लिम कानून के तहत नाबालिगों की शादी पॉक्सो एक्ट से बाहर नहीं हो सकती है। यदि दूल्हा या दुल्हन नाबालिग है और मुस्लिम कानून के तहत उनकी शादी भले ही वैध हो, लेकिन पॉक्सो एक्ट उनपर भी लागू होगा। निश्चित ही मुस्लिम धर्म की मान्यता का हवाला देते हुए अब तक हो रहे बाल विवाह एवं बच्चों के यौन शोषण पर नियंत्रण स्थापित करने की दृष्टि से एक समानता एवं अपराध मुक्ति का परिवेश निर्मित होगा। यानी आज आवश्यकता इस बात की है कि मुस्लिम समुदाय में बाल-विवाह एवं वैवाहिक संबंध को पुन: परिभाषित किया जाए और अधिकारों और कर्तव्यों का पारदर्शी तरीके से परिमार्जन, परिवर्तन एवं संशोधित किया जाए।
मुस्लिम समाज में तलाक, बहु-विवाह, बाल विवाह की पूर्ण उन्मुक्ति अन्य समुदायों के पतियों को इस्लाम में परिवर्तित करके अपनी पत्नियों को छोड़ने, अनेक पत्नियां रखने, बाल-यौन-शोषण और उनमें जुड़ी कानूनी र्कावाई से बचने में सक्षम बनाती है। मूल्यहीनता के जिस भंवर में मुस्लिम समाज धंसता जा रहा है उसे समय रहते उससे निकाला जाए, क्योंकि इससे प्रभुत्व, प्रभाव, धार्मिक आग्रहों और वर्चस्व की लड़ाई एक उच्च समय सीमा की तुलना करें में कुंठित मानसिकता ही हावी होती है। भले ही अब बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों और शोषण के संदर्भ में पॉक्सो कानून और किसी धर्म के विशेष नियमों के बीच की स्थिति को लेकर नई बहस खड़ी हो, कानून की समानता को लागू किया ही जाना चाहिए।
केरल उच्च न्यायालय ने एक साहसिक कदम उठाते हुए न्याय की तुला में सबकी समानता की बात को उजागर किया है। कोर्ट ने बाल विवाह को मानवाधिकारों का भी उल्लंघन बताया। क्योंकि बाल विवाह के कारण बच्चा सही से विकसित नहीं हो पाता है। यह सभ्य समाज के लिए एक बुराई है। मुस्लिम कानून के जरिये बाल-अपराध को खुली छूट का फायदा यह समुदाय उठाता रहा है। लेकिन पॉक्सो एक्ट को परिभाषित करते हुए कोर्ट ने कहा कि ये कानून शादी की आड़ में बच्चों के साथ शारीरिक संबंध बनाने से रोकता है। जैसा कि अक्सर कहा जाता है, एक कानून लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति या प्रतिबिंब है। आजकल केरल न्यायालय के फैसले के साथ-साथ श्रद्धा हत्याकांड के विविध पक्षों पर बहस हो रही है और कहीं ‘लव जिहाद’ और ‘घर वापसी’ जैसे मुद्दों पर दंगल चल रहा है।
नया भारत निर्मित करने की बात हो रही है, ऐसे में एक धर्म-विशेष के अलग कानून होने की स्थितियों पर पुनर्विचार अपेक्षित है। क्यों मुस्लिम कानून के हिसाब से नाबालिग की शादी वैध मानी जाए? भले ही इस सवाल को केरल की हाईकोर्ट ने पूरी तरह से स्पष्ट करते हुए कहा पॉक्सो एक्ट एक विशेष कानून है, यह विशेष रूप से बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देने के लिए बनाया गया है। एक बच्चे के खिलाफ हर प्रकार के यौन शोषण को अपराध माना जाता है। नाबालिग विवाह को भी इससे बाहर नहीं रखा गया है। पॉक्सो एक्ट को बाल शोषण से संबंधित न्यायशास्त्र से उत्पन्न सिद्धांतों के आधार पर बनाया गया है। ये कानून कमजोर, भोले-भाले और मासूम बच्चों की रक्षा करने के लिए बनाया गया है। इस कानून के तहत बच्चों की यौन अपराधों से रक्षा की जाती है। इसमें नाबालिग विवाह को यौन शोषण के रूप में ही स्पष्ट किया गया है।
भारतीय समाज में बच्चों के खिलाफ हो रहे अत्याचार एवं हिंसा के लिए न जाने कितने लोग जिम्मेदार है। समय रहते जागना, एक उच्च समय सीमा की तुलना करें जगे रहना और दूसरों को जगाने का सिलसिला बन जाना चाहिए। किसी भी धर्म के हों, यदि हम बच्चों बच्चों के साथ खड़े नहीं होंगे, तो दरअसल अपने हिस्से की संवेदनाओं, जिम्मेदारियों एवं कर्तव्यों को घटा देंगे, अपने मासूम बच्चों को कमजोर कर देंगे। घरों में कैद बच्चियां जो परिवार, समाज रचेंगी, वह भी कमजोर ही होगा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव को केवल आंकड़े नहीं गिनाने चाहिए, बल्कि एक धर्म-विशेष के बच्चों के हो रहे शोषण एवं अत्याचार के लिये दुनिया में सार्थक मुहिम का सूत्रपात करना चाहिए। दुनिया की तमाम सरकारों से बच्चों के हाल पूछने चाहिए, उनके हो रहे बाल-विवाहों को रोकने क उपाय सुझाए जाने चाहिए।
निर्विवाद रूप से बाल विवाह मानवाधिकारों का उल्लंघन है, धर्म-विशेष का होने से उसे आरक्षण नहीं मिल सकता। समाज में प्रचलित परंपराओं और रीतियों में अगर कभी कोई खास पहलू किसी पक्ष के लिए अन्याय का वाहक होता है, तो उसके निवारण के लिए व्यवस्थागत इंतजाम किए जाने ही चाहिए। मगर ऐसे मौके अक्सर आते रहते हैं, जब परंपराओं और कानूनों के बीच विवाद एवं द्वंद्व की स्थिति पैदा हो जाती है। कानून के सामने भी ऐसा द्वंद्व रहा है।
इसलिये केरल हाई कोर्ट का ताजा फैसला बेहद अहम माना जा रहा है, क्योंकि इसी तरह के मामलों में पहले तीन अन्य उच्च न्यायालयों ने अठारह साल से कम उम्र की लड़की की शादी के मामले को पर्सनल एक उच्च समय सीमा की तुलना करें ला के तहत सही बता कर खारिज कर दिया था। पर केरल में एक सदस्यीय पीठ के सामने आए इस मामले में जांच के बाद एक अलग पहलू यह भी पाया गया कि नाबालिग लड़की के माता-पिता की जानकारी के बिना आरोपी ने उसे बहला-फुसला कर अगवा किया था। ऐसे में किसी भी धार्मिक कानून के दायरे में खुद भी इस पर विचार किया जाना चाहिए कि ऐसा विवाह कितना सही है। ऐसा संक्रमणग्रस्त समाज मूल्य और नैतिकता से परे एक बीमार समाज को जन्म देगा। ललित गर्गवरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
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बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराने की दुनिया की क्षमता खतरे मेंः एफएओ
खाद्य एवं कृषि का भविष्य (द फ्यूचर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर) शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2050 एक उच्च समय सीमा की तुलना करें तक कृषि क्षेत्र पर दुनिया की 10 अरब आबादी को खिलाने का बोझ होगा। अगर मौजूदा ट्रेंड को बदलने के विशेष प्रयास नहीं किए गए तो इतनी बड़ी आबादी के लिए भोजन उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती होगी
Team RuralVoice WRITER: Sunil Kumar Singh
बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराने की विश्व की क्षमता खतरे में पड़ती जा रही है। अगर बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरण बदलाव नहीं किए गए तो दीर्घकालिक कृषि खाद्य प्रणाली को हासिल कर पाना नामुमकिन होगा। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने शुक्रवार को जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही है।
खाद्य एवं कृषि का भविष्य (द फ्यूचर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर) शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2050 तक कृषि क्षेत्र पर दुनिया की 10 अरब आबादी को खिलाने का बोझ होगा। अगर मौजूदा ट्रेंड को बदलने के विशेष प्रयास नहीं किए गए तो इतनी बड़ी आबादी के लिए भोजन उपलब्ध करा पाना बड़ी चुनौती होगी।
रिपोर्ट में कृषि खाद्य प्रणाली की मौजूदा और उभरते ट्रेंड का विश्लेषण किया गया है। साथ ही इसमें यह भी आकलन करने की कोशिश की गई है कि भविष्य में ट्रेंड कैसा रह सकता है। रिपोर्ट में उन मुद्दों और समस्याओं की भी पहचान की गई है जिनका आने वाले दिनों में खाद्य पदार्थों के उपभोग और कृषि उत्पादन पर असर होगा।
रिपोर्ट में नीति नियंताओं से यह आग्रह किया गया है कि वे अल्पावधि की जरूरतों से ऊपर उठकर सोचें। इसके मुताबिक दूरदृष्टि की कमी, टुकड़ों-टुकड़ों में अपनाए गए दृष्टिकोण और महज तात्कालिक समाधान के उपाय सबके लिए भारी पड़ेंगे। इसलिए एक ऐसे दृष्टिकोण की जरूरत है जिसमें दीर्घकालिक लक्ष्य और सस्टेनेबिलिटी को प्राथमिकता दी गई हो।
इसमें कहा गया है कि बढ़ती आबादी, बढ़ता शहरीकरण, मैक्रोइकोनॉमिक अस्थिरता, गरीबी और असमानता, भू राजनीतिक तनाव और युद्ध, प्राकृतिक संसाधनों को लेकर बढ़ती प्रतिस्पर्धा और जलवायु परिवर्तन सामाजिक आर्थिक प्रणाली को बुरी तरह प्रभावित एक उच्च समय सीमा की तुलना करें कर रहे हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (टिकाऊ विकास के लक्ष्य) के अनेक बिंदुओं की तरफ हम नहीं बढ़ रहे हैं। इन लक्ष्यों को तभी हासिल किया जा सकता है जब कृषि खाद्य प्रणाली को उचित तरीके से बदला जाए।
रिपोर्ट में 18 सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरण कारकों की पहचान की गई है जिन्हें ‘ड्राइवर’ कहा गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे यह कारक कृषि खाद्य प्रणाली में होने वाली विभिन्न गतिविधियों को आकार देते हैं। इनमें खेती के अलावा खाद्य प्रसंस्करण और खाद्य पदार्थों का उपभोग भी शामिल है। इसमें गरीबी और असमानता, भू-राजनैतिक अस्थिरता, संसाधनों की कमी तथा जलवायु परिवर्तन को महत्वपूर्ण कारकों में रखा गया है और कहा गया है कि भविष्य का खाद्य कैसा होगा वह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इन कारकों का प्रबंधन किस तरीके से करते हैं। अगर हालात अभी की तरह बने रहे तो खाद्य असुरक्षा, संसाधनों की कमी और अस्थिर आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि विकास के टिकाऊ लक्ष्य (एसडीजी) को हासिल करने के रास्ते से दुनिया काफी अलग हट गई है। इसमें कृषि खाद्य के लक्ष्य को हासिल करना भी शामिल है। ऐसे अनेक कारण हैं जो निराशा बढ़ाने वाले हैं, लेकिन रिपोर्ट में यह उम्मीद भी जताई गई है कि अगर सरकारें, उपभोक्ता, बिजनेस, अकादमिक जगत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब भी गंभीरता पूर्वक कार्य करें तो दीर्घकालिक बदलाव लाना संभव है।
जरुरी जानकारी | हिमाचल प्रदेश में गेहूं की दो अधिक उपज देने वाली किस्में पेश
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग ने राज्य में खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए गेहूं की दो अधिक उपज देने वाली किस्में डीबीडब्ल्यू 222 और डीबीडब्ल्यू 187 पेश की हैं।
शिमला, 30 नवंबर हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग ने राज्य में खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए गेहूं की दो अधिक उपज देने वाली किस्में डीबीडब्ल्यू 222 और डीबीडब्ल्यू 187 पेश की हैं।
अधिक उपज देने वाली गेहूं की किस्में डीबीडब्ल्यू 222 और डीबीडब्ल्यू 187, मौजूदा किस्मों के 35-37 प्रति क्विंटल की तुलना में 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती हैं।
हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के संबंधित मामले के विशेषज्ञ राजीव मिन्हास ने कहा कि इन दो किस्मों के लगभग 23,000 क्विंटल बीज 50 प्रतिशत सब्सिडी पर किसानों को दिए गए हैं।
मिन्हास ने कहा कि डीबीडब्ल्यू 222 (करण नरेंद्र) में उच्च जंग प्रतिरोध और सहनशीलता है और बुवाई के समय अनुकूलन के अलावा बेहतर कृषि संबंधी विशेषताएं हैं, जबकि डीबीडब्ल्यू 187 (करण वंदना) प्रोटीन और आयरन से भरपूर है।
कृषि निदेशक बी आर ताखी ने कहा कि कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, सोलन, बिलासपुर और सिरमौर जिलों की निचली पहाड़ियों में नई किस्मों को समय पर (15 अक्टूबर से 15 नवंबर) बोया गया है क्योंकि बारिश ने मिट्टी में आवश्यक नमी पैदा की और वर्षा आधारित क्षेत्रों में भी गेहूं की समय पर बुवाई का मार्ग प्रशस्त किया।
प्रदेश में 3.30 लाख हेक्टेयर में गेहूं का उत्पादन हो रहा है और उत्पादन का लक्ष्य 6.17 लाख टन का है।
गेहूं, धान, मक्का, जौ और तिलहन मुख्य खाद्यान्न हैं।
खाद्यान्नों के अलावा आलू, सब्जियां और अदरक राज्य की मुख्य व्यावसायिक फसलें हैं और सब्जियों के तहत 82,000 हेक्टेयर क्षेत्र, आलू के तहत 15.10 हजार हेक्टेयर और अदरक (हरा) के तहत तीन हजार हेक्टेयर का खेत रकबा प्रस्तावित है।
कृषि विभाग के अधिकारियों ने कहा कि किसान अधिक लाभ प्राप्ति और सब्जियों की अधिक उपज और विदेशी किस्मों को उगाने के लिए वाणिज्यिक फसलों में विविधता ला रहे हैं। सेब उत्पादन के लिए जाना जाने वाला हिमाचल अब एक सब्जी के प्रमुख केंद्र के रूप में भी उभर रहा है।
वर्ष 2022-23 में सब्जी, आलू एवं अदरक (हरा) का उत्पादन लक्ष्य क्रमशः 1,759 हजार टन, 195 हजार टन एवं 34 हजार टन निर्धारित किया गया है।
राज्य में सब्जियों का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है और इसका उत्पादन पहले ही राज्य में खाद्यान्न उत्पादन को पार कर चुका है।
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