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सिग्नल कैसे काम करते हैं?

सिग्नल कैसे काम करते हैं?

मोबाइल सिग्नल कमजोर है, तो ये करें

फ़ोन का सिग्नल कमज़ोर होने या बंद होने की परेशानी इतनी बढ़ गयी है कि टेलीकॉम मंत्री को यह मुद्दा कंपनियों के साथ उठाना पड़ा है. हालांकि कॉल ड्राप की समस्या में अब भी कोई सुधार नहीं आया है.

अब जब भी आपको मोबाइल पर सिग्नल मिलने में परेशानी होती है तो कुछ बातों का ध्यान रखिए. ऐसा करने से मोबाइल की कनेक्टिविटी सुधरेगी.

स्मार्टफोन पर मोबाइल सिग्नल नाम का ऐप सिग्नल की स्थिति के बारे में बता सकता है. आईफोन पर भी सिग्नल को बहुत आसानी से चेक किया जा सकता है.

कभी कभी सिर्फ ऑफ करके ऑन करने पर फ़ोन बेहतर काम करने लगता है. ये परेशानी खासकर स्मार्टफोन में देखी जाती. क्योंकि उसमें कई ऐप भी साथ साथ काम कर रहे होते हैं.

अगर ऊंची बिल्डिंग के आस-पास खड़े हैं तो एक जगह से थोड़ी खुली जगह पर पहुंचते ही सिग्नल बेहतर हो जाता है.

बैटरी बहुत कम हो जाने पर जो भी बैटरी की शक्ति है वो स्मार्टफोन के बैटरी के सिग्नल को काम कराने में सबसे पहले इस्तेमाल होती है. इसलिए कॉल करते समय सिग्नल कैसे काम करते हैं? थोड़ी परेशानी हो सकती है. ऐसी स्थिति में स्मार्टफोन को चार्ज पर तुरंत लगाना चाहिए.

फ़ोन का सिग्नल अगर बहुत बढ़िया काम नहीं कर रहा है तो कालिंग के लिए कभी कभी डेटा सर्विस को व्हाट्सऐप, वाइबर, निम्बज़, स्काइप जैसे ऐप का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.

अब तो वीडियो कॉल भी एक विकल्प है और वाई फाई जोन में ये आसानी से किया जा सकता है.

अगर किसी वाई-फाई से कनेक्ट कर सकें तो ये कॉल बहुत बढ़िया क्वालिटी के साबित होते हैं. उन पर आप आसानी से बात कर सकते हैं. घर पर अगर वाई-फाई कनेक्टिविटी की परेशानी है तो वाई-फाई एक्सटेंडर से सिग्नल को सुधारिए.

कोई भी मोबाइल फ़ोन रेडियो सिग्नल को पास के मोबाइल टावर से कनेक्ट करता है. कई बार उस टावर से बहुत ज़्यादा मोबाइल फ़ोन कनेक्टेड होते हैं जिसके कारण कॉल करना मुश्किल हो सकता है.

अगर पास में ऊंची और घनी बिल्डिंग हैं या आप बेसमेंट में जाते हैं तो ये रेडियो सिग्नल से कनेक्टिविटी में परेशानी होती है. इससे बचें.

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iPhone 14: सैटेलाइट कनेक्टिविटी कैसे काम करेगी? भारत में क्या है इसका भविष्य ?

सैटेलाइट कनेक्टिविटी के इमरजेंसी कॉन्टेक्ट फीचर्स में सपोर्ट के लिए एपल ने ग्लोबलस्टार से साझेदारी भी की है। सैटेलाइट कनेक्टिविटी की मदद से यूजर्स बिना सेल्युलर कवरेज के भी कॉल्स और मैसेज भेज सकते हैं।

iphone 14 series Support Satellite Connectivity

एपल ने इस साल के अपने सबसे बड़े इवेंट में iPhone 14 सीरीज को लॉन्च कर दिया है। इस इवेंट को एपल ने ‘Far Out' नाम दिया गया था। इस इवेंट में iPhone 14 सीरीज के तहत चार नए आईफोन लॉन्च किए हैं जिनमें आईफोन 14, आईफोन 14 प्लस, आईफोन 14 प्रो और आईफोन 14 प्रो मैक्स को लॉन्च किया गया है। iPhone 14 सीरीज को ई-सिम सपोर्ट और सैटेलाइट कनेक्टिविटी के साथ पेश किया गया है। सैटेलाइट कनेक्टिविटी के इमरजेंसी कॉन्टेक्ट सिग्नल कैसे काम करते हैं? फीचर्स सिग्नल कैसे काम करते हैं? में सपोर्ट के लिए एपल ने ग्लोबलस्टार से साझेदारी भी की है। सैटेलाइट कनेक्टिविटी की मदद से यूजर्स बिना सेल्युलर कवरेज के भी कॉल्स और मैसेज भेज सकते हैं। इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे कि सैटेलाइट कनेक्टिविटी कैसे काम करती है और भारत में इसका भविष्य क्या है। चलिए जानते हैं

सैटेलाइट नेटवर्क के जरिए मोबाइल टावर नहीं होने पर भी स्मार्टफोन में सीधे सैटेलाइट के जरिए नेटवर्क कनेक्टिविटी मिलती है। इस प्रक्रिया में स्मार्टफोन लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट से कम्युनिकेशन करता है और इमरजेंसी सर्विस प्रोवाइडर्स तक फाइंड माई (Find My) एप के इस्तेमाल से अपनी लोकेशन शेयर कर सकता है या सीधे कॉल-मैसेज से भी कॉन्टेक्ट कर सकता है। हालांकि, सैटेलाइट से कम्युनिकेशन करने और सिग्नल सिग्नल कैसे काम करते हैं? मिलने में एक से दो मिनट तक का समय लग सकता है। सैटेलाइट नेटवर्क उस समय बहुत उपयोगी हो जाता है जब दूर-दराज के क्षेत्र में मोबाइल टावर से नेटवर्क कनेक्टिविटी मिलना मुश्किल होता है। इसमें यूजर्स स्मार्टफोन पर सेल्युलर नेटवर्क के बिना भी सैटेलाइट कनेक्टिविटी की मदद से कॉल और मैसेज कर सकते हैं। यानी कि फोन में नेटवर्क कनेक्टिविटी होने से यूजर्स को मोबाइल टावर से नेटवर्क की चिंता नहीं करनी पड़ती, बल्कि यूजर्स इसके बिना भी कॉल और मैसेज कर सकेंगे। बता दें कि नए आईफोन में शुरू के दो साल के लिए ही सैटेलाइट कनेक्टिविटी फ्री में उपलब्ध कराया जाएगा। दो साल के बाद एपल इसके लिए शुल्क लेना शुरू करेगी।

एपल ने सैटेलाइट कनेक्टिविटी के इमरजेंसी कॉन्टेक्ट फीचर्स में सपोर्ट के लिए ग्लोबलस्टार से साझेदारी की है। इस साझेदारी के तहत ग्लोबलस्टार और एपल के बीच में 450 मिलियन डॉलर यानी करीब 4,000 करोड़ रुपये की डील हुई है, जिसमें एपल अपने नए सैटेलाइट कनेक्टिविटी फीचर को सपोर्ट करने के लिए ग्लोबलस्टार के एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग का यूज करेगा। बता दें कि ग्लोबलस्टार लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट की मैन्युफैक्चरिंग का काम करती है और हाल ही में ग्लोबलस्टार ने टी-मोबाइल और स्पेसएक्स के सैटेलाइट को एक्वॉयर भी किया था।

बता दें कि इससे पहले गूगल और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क ने भी सैटेलाइट कनेक्टिविटी को लेकर बयान जारी किया था। एलन मस्क ने कहा था कि स्पेसएक्स अपने सैटेलाइट इंटरनेट के जरिए उन इलाकों तक भी स्मार्टफोन में सिग्नल पहुंचाएगी, जहां मोबाइल टावर काम नहीं करते हैं। इसके बाद गूगल ने भी आगामी एंड्रॉयड 14 में सैटेलाइट कनेक्टिविटी का सपोर्ट देने की बात कही थी। गूगल प्लेटफॉर्म्स और इकोसिस्टम के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट हिरोशी लॉकहाइमर ने कहा था कि नए Android 14 ऑपरेटिंग सिस्टम में सैटेलाइट कनेक्टिविटी फीचर का सपोर्ट दिया जाएगा। फिलहाल कंपनी सैटेलाइट के लिए डिजाइनिंग का काम कर रही है।

भारत में आम आदमी सैटेलाइट फोन खरीद सकता है, लेकिन इसके लिए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) लेना अनिवार्य होता है। बता दें कि भारत में भारतीय वायरलेस अधिनियम की धारा 6 और भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 20 के तहत थुरया/इरिडियम सैटेलाइट फोन का उपयोग करना प्रतिबंधित है। भारत आने वाले विजिटर्स और टूरिस्ट को भी सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल करने के लिए परमिशन और लाइसेंस लेना अनिवार्य होता है। यानी की भारत में सैटेलाइट कनेक्टिविटी फीचर का इस्तेमाल करना आसान नहीं होने वाला है। भारत में इस फीचर्स के लिए फिलहाल यूजर्स को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। बता दें कि एपल फिलहाल इस सर्विस को अमेरिका और कनाडा के लिए ही शुरू करने वाला है।

विस्तार

एपल ने इस साल के अपने सबसे बड़े इवेंट में iPhone 14 सीरीज को लॉन्च कर दिया है। इस सिग्नल कैसे काम करते हैं? इवेंट को एपल ने ‘Far Out' नाम दिया गया था। इस इवेंट में iPhone 14 सीरीज के तहत चार नए आईफोन लॉन्च किए हैं जिनमें आईफोन 14, आईफोन 14 प्लस, आईफोन 14 प्रो और आईफोन 14 प्रो मैक्स को लॉन्च किया गया है। iPhone 14 सीरीज को ई-सिम सपोर्ट और सैटेलाइट कनेक्टिविटी के साथ पेश किया गया है। सैटेलाइट कनेक्टिविटी के इमरजेंसी कॉन्टेक्ट फीचर्स में सपोर्ट के लिए सिग्नल कैसे काम करते हैं? एपल ने ग्लोबलस्टार से साझेदारी भी की है। सैटेलाइट कनेक्टिविटी की मदद से यूजर्स बिना सेल्युलर कवरेज के भी कॉल्स और मैसेज भेज सकते हैं। इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे कि सैटेलाइट कनेक्टिविटी कैसे काम करती है और भारत में इसका भविष्य क्या है। चलिए जानते हैं

कैसे काम करती है सैटेलाइट कनेक्टिविटी ?

सैटेलाइट नेटवर्क के जरिए मोबाइल टावर नहीं होने पर भी स्मार्टफोन में सीधे सैटेलाइट के जरिए नेटवर्क कनेक्टिविटी मिलती है। इस प्रक्रिया में स्मार्टफोन लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट से कम्युनिकेशन करता है और इमरजेंसी सर्विस प्रोवाइडर्स तक फाइंड माई (Find My) एप के इस्तेमाल से अपनी लोकेशन शेयर कर सिग्नल कैसे काम करते हैं? सकता है या सीधे कॉल-मैसेज से भी कॉन्टेक्ट कर सकता है। हालांकि, सैटेलाइट से कम्युनिकेशन करने और सिग्नल मिलने में एक से दो मिनट तक का समय लग सकता है। सैटेलाइट नेटवर्क उस समय बहुत उपयोगी हो जाता है जब दूर-दराज के क्षेत्र में मोबाइल टावर से नेटवर्क कनेक्टिविटी मिलना मुश्किल होता है। इसमें यूजर्स स्मार्टफोन पर सेल्युलर नेटवर्क के बिना भी सैटेलाइट कनेक्टिविटी की मदद से कॉल और मैसेज कर सकते हैं। यानी कि फोन में नेटवर्क कनेक्टिविटी होने से यूजर्स को मोबाइल सिग्नल कैसे काम करते हैं? टावर से नेटवर्क की चिंता नहीं करनी पड़ती, बल्कि यूजर्स इसके बिना भी कॉल और मैसेज कर सकेंगे। बता दें कि नए आईफोन में शुरू के दो साल के लिए ही सैटेलाइट कनेक्टिविटी फ्री में उपलब्ध कराया जाएगा। दो साल के बाद एपल इसके लिए शुल्क लेना शुरू करेगी।

एपल ने की ग्लोबलस्टार से साझेदारी

एपल ने सैटेलाइट कनेक्टिविटी के इमरजेंसी कॉन्टेक्ट फीचर्स में सपोर्ट के लिए ग्लोबलस्टार से साझेदारी की है। इस साझेदारी के तहत ग्लोबलस्टार और एपल के बीच में 450 मिलियन डॉलर यानी करीब 4,000 करोड़ रुपये की डील हुई है, जिसमें एपल अपने नए सैटेलाइट कनेक्टिविटी फीचर को सपोर्ट करने के लिए ग्लोबलस्टार के एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग का यूज करेगा। बता दें कि ग्लोबलस्टार लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट की मैन्युफैक्चरिंग का काम करती है और हाल ही में ग्लोबलस्टार ने टी-मोबाइल और स्पेसएक्स के सैटेलाइट सिग्नल कैसे काम करते हैं? को एक्वॉयर भी किया था।

सैटेलाइट कनेक्टिविटी पर गूगल और स्पेसएक्स का भी आया था बयान

बता दें कि इससे पहले गूगल और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क ने भी सैटेलाइट कनेक्टिविटी को लेकर बयान जारी किया था। एलन मस्क ने कहा था कि स्पेसएक्स अपने सैटेलाइट इंटरनेट के जरिए उन इलाकों तक भी स्मार्टफोन में सिग्नल पहुंचाएगी, जहां मोबाइल टावर काम नहीं करते हैं। इसके बाद गूगल ने भी आगामी एंड्रॉयड 14 में सैटेलाइट कनेक्टिविटी का सपोर्ट देने की बात कही थी। गूगल प्लेटफॉर्म्स और इकोसिस्टम के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट हिरोशी लॉकहाइमर ने कहा था कि नए Android 14 ऑपरेटिंग सिस्टम में सैटेलाइट कनेक्टिविटी फीचर का सपोर्ट दिया जाएगा। फिलहाल कंपनी सैटेलाइट के लिए डिजाइनिंग का काम कर रही है।

भारत में सैटेलाइट कनेक्टिविटी

भारत में आम आदमी सैटेलाइट फोन खरीद सकता है, लेकिन इसके लिए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) लेना अनिवार्य होता है। बता दें कि भारत में भारतीय वायरलेस अधिनियम की धारा 6 और सिग्नल कैसे काम करते हैं? भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 20 के तहत थुरया/इरिडियम सैटेलाइट फोन का उपयोग करना प्रतिबंधित है। भारत आने वाले विजिटर्स और टूरिस्ट को भी सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल करने के लिए परमिशन और लाइसेंस लेना अनिवार्य होता है। यानी की भारत में सैटेलाइट कनेक्टिविटी फीचर का इस्तेमाल करना आसान नहीं होने वाला है। भारत में इस फीचर्स के लिए फिलहाल यूजर्स को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। बता दें कि एपल फिलहाल इस सर्विस को अमेरिका और कनाडा के लिए ही शुरू करने वाला है।

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